रुकावटें आई हजार, विपक्ष ने आरोप लगाए कई बार, फिर भी डटी रही सरकार, तब जाकर हुआ 100 करोड़ का आंकड़ा पार, ऐसी रही 278 दिन के सफर की दास्तान

By अभिनय आकाश | Oct 21, 2021

मशहूर शायर बशीर भद्र ने क्या खूब कहा था कभी 'कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए हिसाब का मर्ज है जरा फासले से मिला करो।' कोरोना ने इंसान को बदलाव पर इस कदर मजबूर किया कि मजबूरी का नाम ही कोरोना हो गया। सदियां बीत गई इंसान खुद को सम्राट मानकर अपना साम्राज्य बढ़ाता चला गया। लेकिन दुनिया ने ये दौर भी देखा जब सलाखों में इंसान और जानवर निडर, बेखौफ होकर सड़कों पर घूमते नजर आए।  कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को चुनौती दी, एक-एक दिन में सैकड़ों जाने ली। वैक्सीन जिसे कोरोना के खिलाफ सबसे धारदार हथियार माना जाता है। उसका पूरी दुनिया इंतजार कर रही थी। 30 जनवरी वो तारीख थी जब हिन्दुस्तान का पहला व्यक्ति संक्रमित हुआ था। जिसके बाद 10 मार्च जब पहली बार एक कोरोना मरीज ने अपने प्राण त्यागे। तब से लेकर अब तक करीब साढे चार लाख लोग कोरोना नाम की महामारी से अपने प्राण त्याग दिए। पूरा पिछला साल वैक्सीन के इंतजार में गुजरा। वो इंतजार जिसमें काश लगाकर ये कहते हैं कि अगर वैक्सीन होती तो इतनी जानें न जाती, लॉकडाउन नहीं लगाना पड़ता। फिर नया साल नई उम्मीदें और हौसला लेकर आया। जब कोरोना के खिलाफ वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी मिल गई। देखते ही देखते भारत ने  9 महीने से ज्यादा समय बाद 100 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज देने का मील का पत्थर पार कर लिया। लेकिन कोरोना महामारी के खिलाफ 100 करोड़ वैक्सीनेशन का सफर आसान नहीं था। अगर इस वैक्सीनेशन के सफर को देखें तो सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन को बनाने की थी। वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया ऐसी नहीं कि मशीन में आलू डालिए और उधर से सोना, मेरा मतलब है चिप्स पैक होकर निकल जाए। चाहे वो फ्लू हो या पोलियो  उसकी वैक्सीन बनाने के लिए एकदम शुरू से काम हुआ। जिसमें काफी वक्त भी लगता है। पहले बीमार करने वाले वायरस की पहचान की जाती है। फिर मृत कोशिकाओं को लोगों के शरीर में इंजेक्ट कर उसे प्रतिरोध करने की एक तरह से कहे कि ट्रेनिंग दी जाती है। एक लंबी जटिल और जोखिम वाली प्रक्रिया है। ऐसे में आज आपको पहली डोज से मील के पत्थर तक के सफर की पूरी कहानी बताएंगे। जिसमें मुश्किल भी है संघर्ष भी है और साथ ही ये संदेश भी छिपा है कि कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

नए साल के शोर के साये में आहिस्ते से कोरोना की आहट

पटाखों की आवाजे और आतिशबाजी की रौशनी से जगमग हुई थी दुनिया सारी। आखिर हो भी क्यों न 21वीं सदी अपने किशोरावस्था से निकलकर 20 बरस की जो हुई थी। लेकिन जश्न के शोर में एक खामोश चेतावनी जिसकी गूंज उस वक्त ठीक से लोगों को सुनाई ही नहीं दी या फिर कहे कि इसके बारे में पता ही न चला। 2019 के आखिरी महीने में चीन ने पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक खतरनाक बीमारी के बारे में बताया। उसे इस बात का भली-भांति इल्म था कि वो वायरस कहां से निकला है। पर वो इस पर पर्दा डाले बैठा था। संक्रमण के शुरुआती मामले नवंबर-दिसंबर में आए थे। चीन में कोरोना से पहली मौत का मामला 9 जनवरी को आया और 23 जनवरी को चीन में हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान को लाॅकडाउन किया गया। 30 जनवरी को भारत के केरल से कोरोना का पहला मामला सामने आया। फिर भारत समते दुनिया के अन्य देश भी धीरे-धीरे इसकी मार से बेहाल होने लगे। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को महामारी घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और फिर 25 मार्च को पूर्ण लाॅकडाउन घोषित किया गया।

पीएम केयर्स फंड का गठन और खुद प्रधानमंत्री ने की मॉनिटरिंग

27 मार्च 2020 को पीएम केयर्स फंड बनाया गया और इस फंड में भारत के प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्तमंत्री मुख्य ट्रस्टी के तौर पर शामिल किया गया। इसी पीएम केयर्स फंड से 100 करोड़ रुपये वैक्सीन रिसर्च के लिए दिए गए और यहीं से शुरू होता है वैक्सीन रिसर्च का सिलसिला। प्रधानमंत्री ने वैक्सीन निर्माण को खुद मॉनिटर किया और ट्रायल प्रोसेस में तेजी लाने के लिए अहम फैसले लिए। साथ ही साथ महामारी की भयावहता को देखते हुए प्रधानमंत्री ने वैक्सीन के इमरजेंसी यूज़ की भी इजाजत दिलवाई। हालांकि इस प्रक्रिया में पूरी तरह से वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया गया।

वैक्सीन पर काम की शुरुआत

दक्षिणी पूर्वी इंग्लैंड में एक जगह जिसका नाम है ऑक्सफोर्डशायर जहां तकरीबन हजार साल पुराना एक शिक्षण संस्थान है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी। पूर्वी ओर एक साधारण सी कांच की बिल्डिंग है जिसका नाम है जेनर इंस्टीट्यूट जिसे ये नाम मिला है एडवर्ड जेनर के नाम के एक डॉक्टर से जिसने 1796 में दुनिया की पहली वैक्सीन बनाई थी। जेनर  इंस्टीट्यूट का भी काम कुछ ऐसा ही है यानी वैक्सीन बनाना। 10 जनवरी 2020 को जब चीन ने कोरोना वायरस के जेनेटिक मैटेरियल की सिक्सवेंसिंग जारी की उसके अगले दिन से ही जेनर इंस्टीट्यूट काम में जुट गया। यानी की कोरोना की वैक्सीन बनाने में जिसकी कीमत कम से कम हो। सरकार से मिलने वाली फंडिंग का इंतजार किए बिना ये काम शुरू हो गया और सफलता भी हाथ लगी। जानवरों पर इसका ट्रायल भी किया गया। लेकिन इंसानों पर कई दौर का ट्रायल बाकी थी। वैक्सीन प्रभावी है या नहीं ये जवाब मिलने में 2020 का वक्त बीत जाना था। अगर वैक्सीन असरदार और सुरक्षित पाई जाती तो रेगुलेटर इसे मंजूरी देते। अगर ट्रायल पूरा होने, फाइनल डेटा आने और रेगुलेटर्स की मुहर लगने के बाद उत्पादन शुरू होता तो वैक्सीन की सप्लाई और लंबी खिंच जाती। इसलिए ऑक्सफोर्ड को जरूरत थी कारखानों की। ऑक्सफोर्ड ने अपनी बनाई वैक्सीन के लिए सीरम इंस्टीट्यूट के अदार पूनावाला से संपर्क किया। वैक्सीन का न ही ट्रायल पूरा हुआ था और न ही बिक्री के लिए ऑक्सफोर्ड के साथ कोई लिखित कॉन्ट्रैक्ट था। सीरम को अपनी जेब से पैसा लगाना था। देश की 24 साल पुरानी कंपनी भारत बायोटेक ने भी वैक्सीन पर अपना ट्रायल शुरू कर दियाा। भारत बायोटेक कुल मिलाकर 16 बीमारियों से बचाव के टीके बनाती है। इन टीकों को दुनिया के 123 देशों में भेजा जाता है। कोवैक्सिन को निष्क्रिय कोरोना वायरस से बनाया गया है, जो इसे सुरक्षित बनाता है। इसे बनाने वाली भारत बायोटेक ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी द्वारा चुने गए कोरोना वायरस के सैंपल का उपयोग किया है। अब बात इन दोनों वैक्सीन के कीमत की करें तो भारत में तो ये प्रधानमंत्री के घोषणा के बाद एकदम मुफ्त में है। लेकिन शुरुआती दिनों में इसको लेकर एक कीमत भी तय कि गई थी। लेकिन खास बात ये रही कि इनकी कीमत इतनी ही रखी गई जितने में एक रईस देशों में एक कप कॉफी मिलती है उतनी में ये वैक्सीन मिलती है। जिसने कोरोना से लड़ रहे गरीब देशों को जीवन रेखा दी। प्रधानमंत्री ने स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया और इसे बनाने के लिए वैज्ञानिकों को प्रेरित किया. इसके साथ ही साथ प्रधानमंत्री ने वैक्सीन निर्माण को लेकर होने वाली लालफीताशाही को भी खत्म करने का फैसला लिया।

कोविन की मदद से बिना हड़बड़ी वैक्सीनेशन 

आप पर हम बेसब्री से वैक्सीन के इंतजार में बैठे थे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि सभी को यह वैक्सीन मिलेगी कैसे। 135 करोड़ की आबादी वाले देश में सबको वैक्सीन देना वाकई बड़ी चुनौती थी। लेकिन हिंदुस्तान में इस चुनौती से पार पाने की क्षमता है और इसके लिए कमर भी कर ली। लोगों में हड़बड़ी न हो और वैक्सीनेशन का काम आराम से हो सके, इसके लिए एक प्रॉपर चैनल सबसे जरूरी था। इस चैनल का काम किया कोविन (Co-WIN) ने। कोविन प्लेटफॉर्म की मदद से ही 100 करोड़ डोज का सफर आसानी और तेजी से पूरा हो पाया है। इस प्लेटफॉर्म को ऐसे डिजाइन किया गया कि लोग आसानी से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकें। सरकार ने इसका ऐप भी बनाया। इसे एंड्रॉयड और आईओएस दोनों प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल कर सकते हैं। 

नई साल अपने साथ उम्मीदें लेकर आई

कोरोना महामारी की उम्र 1 साल हो चुकी थी। आपातकाल, बैन, लॉकडाउन आदि-इत्यादि झेलने के बाद दुनिया समाधान की तरफ बढ़ गई है। हर एक देश अपने नागरिकों के लिए सबसे बढ़िया वैक्सीन के इंतजाम में जुटा है। ऐसी वैक्सीन जो ना सिर्फ कारगर हो बल्कि लोगों को निश्चित करे और यह भरोसा दें कि- ऑल इज वेल। हम सब इस बात को जानते हैं कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन ही सबसे बड़ा हथियार है। 16 जनवरी को भारत ने हेल्थ वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्रायोरिटी के आधार पर वैक्सीन शॉट देने के साथ ही वैक्सीनेशन ड्राइव की शुरुआत की। 1 मार्च को केंद्र ने सबसे कमजोर वर्ग के लिए वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत की। इसमें 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों और 45 साल से ज्यादा उम्र के गंभीर बीमारी वाले लोगों को शामिल किया गया।

वैक्सीन को लेकर राजनीति

कोई नई चीज आए और उसको लेकर राजनीति न हो ऐसा तो हो नहीं सकती। कोरोना की वैक्सीन को लेकर भी कोई ऐसा ही आलम देखने को मिला। विरोधियों ने कहा पहले प्रधानमंत्री वैक्सीन लगवाकर दिखाए कि जहर तो नहीं, दवा ही है। किसी ने वैक्सीन से नपुंसक होने का दावा भी किया। तो किसी ने यहां तक कह डाला कि बीजेपी सरकार ने वैक्सीन बनवाई है तो हम नहीं लगवाएंगे। जिसे जो ठीक लग रहा है उसने वो कह दिया। लेकिन किसकी बातें मौलिकता की श्रेणी में आएंगी और किसकी मूखर्तापूर्ण कहलाएंगी इसका जवाब वक्त के साथ खुद ही मिलता चला गया। पीएम मोदी ने बिना किसी पूर्व सूचना के और लाव लश्कर के बिना जाकर कोरोना का टिका लगवा कर विपक्ष की बोलती बंद कर दी। 

आत्मनिर्भर भारत

अगर हम खुद स्वदेशी वैक्सीन ना बना पाते, इतनी बड़ी तादाद में वैक्सीन का प्रोड्क्शन नहीं कर पाते तो भारत की स्थिति भी अफ्रीका महाद्वीप की तरह होती। वही अफ्रीका जिसे दुनिया के बड़े देशों ने उसके हाल पर छोड़ दिया है। अफ्रीका महाद्वीप 3 करोड़ स्कॉयर किमी. के  इलाके में फैला है उसकी जनसंख्या करीब 138 करोड़ है। यानि करीब करीब भारत के बराबर। पर अफ्रीकी देशों में अब तक सिर्फ 17 करोड़ वैक्सीन ही लग पाई है। सोचिए कहां 138 करोड़ की आबादी और कहां 17 करोड़ वैक्सीन। यानि करीब 90 फीसदी आबादी को वैक्सीन का इंतजार है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अफ्रीका के पास खुद की वैक्सीन नहीं है। इसलिए उसे दूसरे देशों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है लेकिन भारत के पास मदद का हाथ बढ़ाने की शक्ति है। क्योंकि हम वैक्सीन के मामले में आत्मनिर्भर हैं।

वैक्सीन की 100 करोड़ डोज का सफर

19 फरवरी 2021- 1 करोड़

11 अप्रैल 2021- 10 करोड़

12 जून 2021- 25 करोड़

6 अगस्त 2021- 50 करोड़

13 सितंबर 2021- 75 करोड़

21 अक्टूबर 2021- 100 करोड़ 

वैक्सीन डिप्लोमेसी

कोरोना से इम्युन होने के लालच में रईस और ताकतवर देशों को स्वार्थी बना दिया। वो सबसे पहले सबसे ज्यादा वैक्सीन पाने की होड़ में जुट गए। समूचे वैक्सीन की आधी सप्लाई केवल 15 फीसदी आबादी ने हथिया लिया। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने प्रति व्यक्ति 10-11 वैक्सीन की डोज खरीद ली। जबकि इनके मुकाबले गरीब और मिडल इनकम देश वैक्सीन की रेस में सबसे पीछे हो गए। कोवैक्स ने 2021 के खत्म होते-होते कोविड वैक्सीन की एक सौ करोड़ डोज दुनिया के सबसे गरीब 92 देशों को सप्लाई करने का लक्ष्य रखा। आबादी के हिसाब से देशों को वैक्सीन दिए जाने का पैमाना तय किया गया। कोवैक्स ने इन वैक्सीन के लिए अलग-अलग उत्पादक देशों से संपर्क किया। जिसमें उसका सबसे बड़ा सप्लायर बना सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया। इसने ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन 20 करोड़ डोज देने का भरोसा दिया। एक दिन में वैक्सीन की तकरीबन 25 लाख डोज बनती है, लेकिन सरकार की वजह से सीरम ने बाकी प्रतिबद्धता पूरे कर रहा है बल्कि उसके पास भारत के लिए पर्याप्त सप्लाई मौजूद रही। 

भारत की वैक्सीन मैत्री

भारत ने अपने पड़ोसी और गरीब देशों की मदद भी की। 20 जनवरी 2021 को हमारे सबसे अच्छे दोस्त भूटान में कोरोना वैक्सीन की पहली खेप पहुंचाई। डेढ़ लाख वैक्सीन का ये पार्सल उसे भारत ने गिफ्त किया। इसी दिन भारत ने मालदीव को भी एक लाख वैक्सीन भिजवाई। बांग्लादेश को 21 लाख, नेपाल को 10 लाख वैक्सीन की डोज भिजवाई गई।

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दूसरी लहर का प्रकोप और वैक्सीनेशन के नए चरण का प्रारंभ

वैक्सीन के साए में इस अदृश्य दुश्मन के खिलाफ भारत अपनी लड़ाई की शुरुआत कर चुका था लेकिन तभी दूसरी ने दस्तक दी। दूसरी लहर के प्रकोप और ऑक्सीजन व बेड के लिए भटकते लोगों की तस्वीरों ने एक बार फिर पूरे देश की चेतना को हिला कर रख दिया। लेकिन दूसरी लहर के बीच 1 अप्रैल को देश में वैक्सीनेशन का नया चरण शुरू किया गया। इस चरण में 45 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों को वैक्सीन की डोज देने का लक्ष्य बनाया गया। जिसके बाद 1 मई को भारत ने 18 वर्ष और उससे ज्यादा आयु के सभी लोगों सहित अपने वैक्सीनेशन कवरेज का विस्तार किया।

 सभी के लिए मुफ्त वैक्सीन

भारत जैसे विकासशील देश के लिए सभी व्यक्तियों को वैक्सीन मिले इसके लिए भी प्रधानमंत्री ने सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त वैक्सीनेशन की व्यवस्था की। शुरुआत में फ्रंटलाइन वर्कर और मेडिकल स्टाफ के लिए निशुल्क वैक्सीनेशन की व्यवस्था की गई। इसके लिए मौजूदा बजट में वैक्सीनेशन के लिए लगभग 36 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया।  

कितनी आबादी कोरोना के खिलाफ फुली वैक्सीनेटेड

 यूएई  86%
 क्यूबा 86%
 कनाडा 73% 
 इटली 70%
 यूके 67%
 यूएस 56%
 भारत  21%
 पाकिस्तान  15%
 बांग्लादेश 

 12%

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किन देशों के लोगों को मिली मास्क से मिली आजादी?

ब्रिटेन, अमेरिका, स्वीडन, चीन, न्यूजीलैंड, हंगरी, इटली के बाद हाल ही में साऊदी अरब ने पूरी तरह वैक्सीनेटेड लोगों के लिए मास्क मेंडेटरी नहीं है। इजराइल दुनिया का पहला देश था जहां पूरी तरह से वैक्सीनेटेड लोगों को मास्क नहीं लगाने की छूट दी गई। हालांकि, डेल्टा वैरिएंट की वजह से मामले दोबारा बढ़ने पर मास्क लगाना फिर से अनिवार्य कर दिया गया।

वैक्सीनेशन में ये 5 राज्य सबसे आगे 

 राज्य          वैक्सीनेशन
 उत्तर प्रदेश   12.08 करोड़
 महाराष्ट्र        9.23 करोड़
 प बंगाल       6.82 करोड़
 गुजरात         6.73 करोड़
 मध्यप्रदेश      6.67 करोड़ 

बच्चों का वैक्सीनेशन अभी बाकी

वैक्सीनेशन का आंकड़ा 100 करोड़ डोज़ का हो गया है, लेकिन बच्चों के लिए वैक्सीनेशन अभी भी बाकी है। लेकिन पीएम के दृढ़ संकल्प के कारण भारत में बच्चों के लिए वैक्सीन अपने परीक्षण के अंतिम दौर में है और आने वाले कुछ ही दिनों में बच्चों को भी वैक्सीन देने की शुरुआत हो जाएगी। भारत में बच्‍चों के लिए कोवैक्‍सीन को जल्‍दी से अप्रूव किया गया है। इस वैक्‍सीन को बनाने में होल विरिओन इनएक्टिविटिड वीरो सेल का इस्‍तेमाल किया गया है। इनएक्टिविटिड टीकों के रोग जनित प्रभाव नहीं होते हैं। इसके अलावा भारत में और भी कई वैक्‍सीन को लाने की योजना बनाई जा रही है। जाइडस कैडिला नीडल लैस डीएनए वैक्‍सीन 12 साल से अधिक उम्र के बच्‍चों के लिए मंजूरी मिली है। हालांकि, इसका ट्रायल अभी भी पूरा नहीं हुआ है। 

-अभिनय आकाश 

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