भक्ति के साथ-साथ प्रकृति का भी अद्भुत खजाना है तिरुपति बालाजी

By रेनू तिवारी | Jan 11, 2020

तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुमाला की पहाड़ियों पर स्थित है। तिरुपति बालाजी को भक्त अगल- अलग नामों से पुकारते हैं। कोई उन्हें वेंकटेश्वर कहता है तो कोई श्रीनिवास। श्रद्धा से महिलाएं उन्हें प्यार से गोविंदा कहती हैं। भारत के सभी मंदिरो की तुलना में तिरुपति बालाजी के मंदिर को सबसे अमीर मंदिर माना जाता है। यहां हर वर्ग के लाखों श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद लेने आते हैं। फिल्मी सितारों से लेकर राजनेता आदि सभी तिरुपति बालाजी के दर्शन करने यहां आते हैं। गोविंदा के मंदिर तिरुपति बालाजी से जुड़ी कई मान्यताएं और विश्वास है। यहां कई ऐसी चीजें है जिनपर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होता है, वैज्ञानिक भी इन रहस्यों के पीछे की वजह तलाश रहे हैं। वैज्ञानिक कुछ भी कहें लेकिन वेंकटेश्वर के भक्त इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं। आइये आपको बताते हैं कि तिरुपति बालाजी का ये मंदिर आखिर क्यों इतना प्रसिद्ध है।

 

मंदिर में रखी बालाजी की मूर्ति अपना स्थान बदलती है। मंदिर में मूर्ति को देखकर तब आश्चर्य होता है जब बाला जी की मूर्ति को गर्भ-गृह से देखने पर वह मंदिर के मध्य में दिखाई देती है और जब मंदिर से बाहर आकर देखें तो वह अपना स्थान बदलकर दाई ओर दिखाई देने लगती है।

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तिरुपति बालाजी के मंदिर में भगवान को एक पिचाई कपूर चढ़ाया जाता है। ये वह कपूर है जिसको अगर किसी और पत्थर पर लगाया जाता है तो वह पत्थर कुछ समय बाद चटक जाता है लेकिन भगवान की मूर्ति पर इसका कोई असर नहीं होती। 

 

कहते हैं कि तिरुपति बालाजी के मंदिर में जो भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति रखी है उस पर जो बाल लगे हैं वह अलसी है। यह बाल कभी भी नहीं उलझते। भक्तों की मान्यता है कि यहां भगवान स्वयं रहते हैं। 

 

तिरुपति बालाजी के मंदिर के इतिहास को देखें तो कहा जाता है कि 18 शताब्दी में मंदिर के मुख्य द्वार पर 12 लोगों को फांसी दी गई थी तब से लेकर आज तक वेंकटेश्वर स्वामी जी मंदिर में समय-समय पर प्रकट होते हैं। 

 

मंदिर में एक और अजीब घटना होती है जिसे लेकर लोग कहते हैं की सच में यहां भगवान रहते है। मंदिर में बालाजी की मूर्ति पर अगर कान लगाया जाए तो उसके अंदर से आवाज आती है। ये आवाज समुद्र की लहरों की होती है। एक बात और आश्चर्य करती है वो यह है कि मंदिर में बालाजी की मूर्ति हमेशा पानी से भीगी रहती है। जैसे समुद्र के पास एक शांति सी महसूस होती है वैसा ही एहसास मंदिर में होता है।

 

मंदिर में मुख्य द्वार के दरवाजे के पास एक छड़ी रखी है। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बालाजी के बाल रूप में इस छड़ी से उनकी पिटाई की गई थी। पिटाई के दौरान उनकी ठोड़ी पर चोट लग गयी थी। मंदिर के सेवक उनकी चोट जल्दी ठीक हो जाए इसलिए चंदन का लेप लगाते हैं। 

 

मंदिर में सबसे हैरान करता है बिना तेल के जलने वाला दिया। मंदिर में एक दिया है जिसमें कभी भी तेल नहीं डाला जाता और न ही उसमें कोई ज्वलनशील पदार्थ डाला जाता है, लेकिन तब भी दिया हमेशा जलता रहता है। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है कि इस दिए को किसने जलाया था।

 

तिरुपति बालाजी के मंदिर की मान्यता के अनुसार भगवान को जो फूल, पत्ती, तुलसी चढ़ाई जाता है उसे भक्तों को नहीं दिया जाता बल्कि उसे बिना देखे मंदिर के पीछे के कुंड में विसर्जित कर दिया जाता है। मान्यता है की इन फूलों को देखना शुभ नहीं होता।

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प्रत्येक गुरुवार के दिन तिरुपति बालाजी पर चंदन का लेप लगाया जाता है। लेप को जब मूर्ति से हटाते है तो उनके अंदर माता लक्ष्मी की प्रतिमा उभर आती है। ऐसा क्यों होता है इसके बारे में कोई नहीं जानता। प्रतिदिन भगवान की प्रतिमा को नीचे धोती और उपर साड़ी पहनाई जाती है।  

 

तिरुपति बालाजी में जो कुछ चढ़ाया जाता है जैसे दूध, घी, माखन आदि को मंदिर से 23 किलोमीटर दूर स्थित गांव से लाया जाता है। इस गाव में बाहरी व्यक्ति नहीं जा सकता। इस गांव से लोग बाहरी लोगों को चढ़ाने का सामान देते हैं।

 

- रेनू तिवारी

 

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