Ab ki baar, 400 paar के नारे पर क्या मुहर लगा रही है 102 सीटों पर कम हुई वोटिंग? राहुल की क्यों बिगड़ी सेहत, राज्य दर राज्य आंकड़ों के हिसाब समझें असली तस्वीर

 First Phase Of Election
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Apr 22 2024 3:44PM

अगर पूरे पहले चरण के मतदान को आंकड़ों के हिसाब से देखें तो आपको असली तस्वीर अपने आप पता चल जाएगी। इसके अलावा ये पुराना इतिहास रहा है कि लोग अगर वोट डालने के लिए अधिक मात्रा में बाहर नहीं निकलते हैं तो सरकार वापस चली आती है।

हर किसी के मन में यही सवाल है कि क्या नरेंद्र मोदी वापस आएंगे या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह पीएम पद की हैट्रिक लगाने से चूक जाएंगे? आपको बता दें कि ये पांचवी सरकार है जब बीजेपी केंद्र में सत्ता में है। पहले तीन का नेतृत्व दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था - 1996 में 13 दिन के लिए, 1998-99 में 13 महीने के लिए और उसके बाद पांच साल के लिए। अपनी लोकप्रियता के चरम पर वाजपेयी को 2004 में प्रधान मंत्री कार्यालय से बाहर कर दिया गया था। इसी तरह, जैसा कि कई सर्वेक्षणों से पता चला है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेता हैं। 18वीं लोकसभा के पहले चरण की 102 सीटों पर चुनाव संपन्न हो गए। कुछ इलाकों में वोट प्रतिशत की कमी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसके साथ ही अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि 400 पार के आंकड़े के दावे वाले बीजेपी को बहुमत के लिए इस बार संघर्ष करना पड़ेगा? कांग्रेस और सपा की तरफ से 150 सीटों पर बीजेपी के सिमटने के दावे किए जा रहे हैं। कई थ्योरी दी जा रही है और इस तरह से पेश किया जा रहा है कि पूरा मामला बीजेपी के लिए बिगड़ गया है। ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी के लिए ये चुनाव साल 2004 के शाइनिंग इंडिया सरीखा साबित होने जा रहा है। 

2004 का शानिंग इंडिया वाला जिन्न

यदि वाजपेयी ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए लोकप्रिय जनादेश जीता होता, तो वह जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले पहले व्यक्ति बन जाते। वाजपेयी अपनी सरकार की वापसी को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने लोकसभा चुनाव छह महीने पहले करा लिया था। उनके शासनकाल में भारत की विकास कहानी विश्व अर्थव्यवस्थाओं के बीच चर्चा का विषय बन गई थी। विदेशी निवेशक और घरेलू कारोबारी भारत में कारोबार करने की संभावनाओं को लेकर उत्साहित थे। एनआरआई उभरते भारत के लिए मार्केटेबल ब्रांड एंबेसडर बन गए थे। सरकार और पार्टी के भीतर माहौल इतना उत्साहपूर्ण था कि भाजपा चुनाव के लिए एक नारा शाइनिंग इंडिया" लेकर आई। एग्जिट पोल में वाजपेयी शासन की जीत बताई जा रही थी। लेकिन जब 13 मई 2004 को नतीजे घोषित हुए तो यह नंबर वाजपेयी के लिए अशुभ साबित हुआ। उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला। वाजपेयी सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया था। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 8 प्रतिशत या उससे अधिक हो रही थी। मुद्रास्फीति कम थी। राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहा। निवेश में तेजी आई थी। दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे थे। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष वेंकैया नायडू (अब भारत के उपराष्ट्रपति) ने 2004 के चुनावों के लिए चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए कहा कि भारत मजबूत हो गया है और वैश्विक पटल पर उसका कद बढ़ गया है। नरेंद्र मोदी सरकार का प्रचार मॉडल भी कमोबेश ऐसा ही है। देश में विकास के दावे को बढ़ावा देना और इतिहास की कमी के लिए कांग्रेस को दोष देना। देश के पहले आम चुनाव को छोड़ दें तो आज से पहले कब आपने देखा कि लोकसभा के चुनाव जनवरी के ठंड मौसम में हुए हो। हर बार जब भी लोकसभा का चुनाव होता है चाहे वो 2004, 2009, 2014 या फिर 2019 इसी वक्त में चुनाव होते हैं। गर्मी की वजह से इस बार कम वोटिंग होने की थ्योरी समझ से परे हैं। 

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102 सीटों पर वोटिंग

पहले चरण के चुनाव के ठीक एक दिन बाद ही खबर आई कि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी की तबीयत खराब हो गई। जिसके कारण उनका मध्य प्रदेश का सतना और झारखंड के रांची दौरा रद्द हो गया है। क्या राहुल गांधी को अहसास हो गया कि 102 सीटों वाले पहले चरण के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और डांवा-डोल होने जा रही है। राहुल गांधी ने बिहार के भागलपुर से दावा किया कि एनडीए को 150 से ज्यादा सीट नहीं आएगी। लेकिन ये नहीं बताया कि कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटें आने वाली है। कई जगह से रिपोर्ट आ रही है कि कांग्रेस जहां अच्छी फाइट नहीं दे पा रही है तो उसके वोटर्स घर में बैठ जा रहे हैं। 

जम्मू और कश्मीर

जम्मू-कश्मीर की उधमपुर सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग हुई। ये सीट पहले से बीजेपी के पास है। इस सीट पर बीजेपी की तरफ से जितेंद्र सिंह उम्मीदवार है। वहीं विपक्ष की तरफ से उतारे गए उम्मीदवार का नाम अगर आप पूछ लो तो 80 प्रतिशत लोगों को पता नहीं होगा। इस सीट पर 68.27 वोटिंग हुई। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली बड़ी चुनावी लड़ाई यहां देखने को मिली। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उधमपुर में जितेंद्र सिंह को 724,311 वोट प्राप्त हुए, जो कुल मतो का 61 प्रतिशत है। कांग्रेस के उम्मीदवार को 367,059 वोट मिले थे, जो कुल मतों का 31 प्रतिशत है। यानी जीत-हार का मार्जियन 30 प्रतिशत है।

उत्तराखंड 

पहाड़ी राज्य की पांच लोकसभा सीटों में वोटिंग कम हुई है। प्रदेश के आंकड़ों को देखें तो पिछले बार के लोकसभा चुनाव में ये पांचों सीटें बीजेपी के पास थी।  टेहरी गढ़वाल से बीजेपी उम्मीदवार ने 3,00,586 वोटों से चुनाव जीता था। वहीं गढ़वाल सीट से तीरथ सिंह रावत के जीत का अंतर भी 3,02,669 का रहा। अल्मोडा (एससी) सीट से 2 लाख 32 हजार वोट से बीजेपी उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। नैनीताल-उधमसिंह नगर में तो आंकड़ा 3 लाख 39 हजार का रहा। हरिद्वार में ढाई लाख से ज्यादा बीजेपी उम्मीदवार के जीत का मार्जिन रहा। अगर प्रतिशत में देखें तो ये 24, 40, 33, 26 और 20 तक जाता है। ऐसे में 15 से 20 प्रतिशत वोटों की कमी होने पर ही बीजेपी उम्मीदवारों की राह मुश्किल हो सकती है। उत्तराखंड में इस बार 53.64 प्रतिशत वोटिंग हुई है, जबकि 2019 के चुनाव में सभी पांच सीटों पर 61.88 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई थी। 

राजस्थान

प्रदेश की 12 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। यानी 25 लोकसभा सीटों के लिहाज से लगभग आधे राजस्थान में पोलिंग संपन्न हो गई है। राजस्थान में भी वोटिंग 50.95 प्रतिशत ही हुई। साल 2019 में राजस्थान के इन 12 लोकसभा क्षेत्रों में 64.02 फीसदी मतदान हुआ था। अगर सीट वाइज जाएं तो गंगानगर में साल 2019 में बीजेपी के निहाल चंद मेघवाल ने कांग्रेस उम्मीदवार को 4 लाख से अधिक मतों से हराया था। यानी बीजेपी के कैंडिडेट को 61 प्रतिशत और कांग्रेस उम्मीदवार को 33 प्रतिशत वोट मिले थे। बाड़मेर में जीत हार का अंतर 3 लाख 23 हजार का रहा। जयपुर में ये मार्जिन 4 लाख को क्रास कर गया। बीकानेर में 2 लाख से अधिक मतों से जीत हुई। झूंझनू में भी 3 लाख से ज्यादा का अंतर रहा। चुरू में 3 लाख 34 हजार रहा अंतर। मतलब हर जगह कमोबेश जीत और हार के बीच का अंतर ढाई से तीन लाख का अंतर रहा। फिर ऐसे में वोटिंग अगर 20 से 25 प्रतिशत तक नीचे जाती तो बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती थी। 

मध्य प्रदेश

प्रदेश की 6 सीटों पर 67 फीसदी वोटिंग हुई।  पिछली बार इन सीटों पर औसत 75 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस लिहाज से करीब 8 फीसदी कम वोटिंग हुई है। छिंदवाड़ा में कांग्रेस की जीत हुई थी। बाकी की पांच सीट बीजेपी के पास रही थी। कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने ये सीट महज 37 हजार वोट से जीती थी। एमपी में इस फेज में उतनी ही कम वोटिंग हुई है जितना की छिंदवाड़ा में नकुलनाथ औऱ बीजेपी उम्मीदवार के बीच जीत-हार का अंतर रहा था। यानी 3 प्रतिशत से भी कम। जबलपुर सीट बीजेपी ने 4 लाख 44 हजार वोट से जीती थी। शहडोल में भी 4 लाख से अधिक का अंतर रहा। सीधी में 2 लाख 86 हजार मार्जिन रहा। बालाघाट में 2 लाख 42 हजार का अंतर रहा था। आंकड़े पूरी कहानी अपने आप बताते हैं। 

तमिलनाडु

सभी 39 सीटों पर वोटिंग हुई। तमिलनाडु में 62.19 वोटिंग हुई। साल 2019 में 72.44 वोटिंग हुई थी। पिछले साल बीजेपी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे कुल 3.62% वोट मिले थे। कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़कर आठ पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी का तमिलनाडु में कभी खाता नहीं खुला है। यानी उसके पास यहां गवाने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन पाने के लिए सबकुछ है। जो भी वोटिंग प्रतिशत में इजाफा या सीटों में मुनाफा होगा वो पार्टी के लिए प्ल्स प्वाइंट ही होगा। 

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छत्तीसगढ़ 

भूपेश बघेल का ये बयान आया कि जब से भाजपा की सरकार बनी है, प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ बढ़ गए हैं। खासकर शासन आते ही पुलिस-नक्सली मुठभेढ़ के मामले बढ़े हैं। भाजपा फर्जी एनकाउंटर कराती है, आदिवासियों को परेशान करती है। भूपेश बघेल की बयानबाजी से यही नजर आ रहा है कि वह लोकसभा का चुनाव नक्‍सलियों के भरोसे जीतने का सपना देख रहे हैं।  

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में आज 19 अप्रैल को पहले चरण के लिए पांच सीटों पर मतदा हुआ। 55.29 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई। नागपुर में नितिन गडकरी के जीत का अंतर 2 लाख 16 हजार रहा था। चंद्रपुर में 44 हजार वोट से कांग्रेस जीती थी। गढ़चिरौली-चिमूर में बीजेपी उम्मीदवार के जीत का मार्जिन सात प्रतिशत के आसपास रहा था। 

बिहार

प्रदेश की चार सीटों औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई में कुल 47.49 प्रतिशत वोटिंग हुई।  2019 में इन चार लोकसभा क्षेत्र में 53.47 फीसद मतदान हुआ था। बिहार में लोग राजनीतिक रूप से परिपक्व होते हैं। लेकिन माइग्रेशन की वजह से वोटिंग प्रतिशत कम रहता है। नवादा में जहां एनडीए और महागठंबधन के बीच जीत का अंतर 15.7 % रहा था। गया में जेडीयू और हम के बीच मुकाबले में नीतीश के उम्मीदवार को 15.9 % अधिक वोट मिले थे। कांग्रेस तो इस सीट में मुकाबले में दूर दूर तक नहीं थी। जमुई लोकसभा सीट एनडीए ने 25 प्रतिशत के मार्जिन से जीती थी। 

पश्चिम बंगाल

प्रदेश में तीन सीटों पर चुनाव हुआ। पश्चिम बंगाल में हिंसा के बीच 77.57 फीसदी वोटिंग हुई। 2019 में यह 86.44 फीसदी था। कूचबिहार में 83.88 फीसदी था। 2019 में जलापाईगुड़ी, कूचबिहार, अलीपुरद्वार तीनों सीटें बीजेपी के पास थी। अलीपुरद्वार में बीजेपी उम्मीदवार के जीत का मार्जिन 17.7 % रहा था। जबकि जलापाईगुड़ी में 12.2 % था। 

उत्तर प्रदेश

पहले चरण की आठ लोकसभा सीटों पर 61.11 प्रतिशत मतदान हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन आठ सीटों पर 66.41 प्रतिशत मतदान हुआ था। सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना,  मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीट पर चुनाव हुए। सहारनपुर में साल 2019 के चुनाव 4 लाख 91 हजार वोट मिले जबकि बसपा के फजलुर्रहमान को 5 लाख 14 हजार वोट मिले थे। यानी बीजेपी और बसपा उम्मीदवार के बीच हार का अंतर महज 23 हजार था। उस वक्त सपा के साथ गठबंधन में मायावती ने चुनाव लड़ा था। इस बार बसपा अकेले लोकसभा का चुनाव लड़ रही है। कैराना में  2019 में बीजेपी ने ये सीट प्रदीप ने यह चुनाव 94 हजार वोटों से जीती थी। सपा-बसरा गठबंधन उम्मीदवार और बीजेपी के विजयी उम्मीदवारों के बीच का फासला 8.2 % का रहा था। मुजफ्फरनगर में बीजेपी के संजीव बाल्यान के जीत का मार्जिन तब भले ही 0.6 प्रतिशत ही रहा था। लेकिन उस चुनाव में उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह मैदान में थे। इस बार बीजेपी और रालोद का गठबंधन है। मुराबादाबद सीट सपा ने जीती थी। फिर भी बीजेपी उम्मीदवार को पांच लाख से अधिक वोट प्राप्त हुए थे। रामपुर में आजम खान ने पिछली बार सपा को जीत दिलाई थी। लेकिन इस बार का मुकाबला बेहद ही अलग है। भाजपा प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी, सपा प्रत्याशी मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी और बसपा प्रत्याशी जीशान खां के बीच इस बार की लड़ाई है। पीलीभीत सीट से बीजेपी ने इस बार जितिन प्रसाद पर दांव लगाया है। पिछली बार बीजेपी ने ये सीट 21 प्रतिशत से ज्यादा वोटो सें जीती थी। 

बहरहाल, अगर पूरे पहले चरण के मतदान को आंकड़ों के हिसाब से देखें तो आपको असली तस्वीर अपने आप पता चल जाएगी। इसके अलावा ये पुराना इतिहास रहा है कि लोग अगर वोट डालने के लिए अधिक मात्रा में बाहर नहीं निकलते हैं तो सरकार वापस चली आती है। वोटों की संख्या ज्यादा होती है तो लोग मानते हैं कि सरकार बदलने के लिए लोग वोट कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए विपक्ष के बीच जोश भी हाई होना चाहिए। ऐसे में साल 2019 में इन 102 में से 41 सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए इस बार कम वोटिंग बड़ा असर डालेगा इस बात की संभावना नग्न नजर आ रही है। 

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