जब चंद्रशेखर के खिलाफ नारा लगा था, भिंडरवाला वापस जाओ

Chandrashekhar
Prabhasakshi

रामलीला मैदान की उस सभा में बैठने का इंतजाम नहीं था..ज्यादातर लोग खड़े ही थे...चंद्रशेखर मंच पर पहुंचे..भिंडरवाला वापस जाओ के नारे से हुए स्वागत से उन्हें भरोसा हो गया था कि स्वर्णमंदिर में हुई सैनिक कार्रवाई के चलते लोगों में उन्हें लेकर गुस्सा है।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की शोक अवधि बीतते ही चुनाव आयोग ने सातवीं लोकसभा के चुनावों का ऐलान कर दिया था...चुनाव घोषणा की वह तारीख थी, तेरह नवंबर 1984...इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई देशव्यापी सिख विरोधी हिंसा की आंच भले ही ठंडी पड़ चुकी थी, लेकिन उसकी तपिश महसूस की जा रही थी। लोगों के दिल में इंदिरा की हत्या से उपजा क्षोभ अभी ताजा था..इसी बीच चुनाव आ गए...

उन दिनों विपक्ष का सबसे बड़ा दल था, जनता पार्टी। जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर तीसरी बार अपनी पारंपरिक उत्तर प्रदेश की बलिया सीट से मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके थे। उन दिनों लोकसभा की बलिया नाम से दो सीटें थी, पहली उत्तर प्रदेश की बलिया, जो अब भी है, और दूसरी बिहार की बलिया, जो परिसीमन के बाद खत्म हो चुकी है। नवंबर 1984 के आखिरी हफ्ते की कोई तारीख थी। चंद्रशेखर नामांकन दाखिल करने के लिए बलिया आ रहे थे। तब इलाहाबाद से बरौनी तक मीटर गेज की रेल चलती थी। इसी रेल रूट पर बलिया भी पड़ता है। तब बलिया से वाराणसी के बीच छुकछुकिया यानी भाप इंजन वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस चलती थी। जो वाराणसी से चलकर करीब बारह बजे बलिया पहुंचती थी। चंद्रशेखर उसी इंटरसिटी एक्सप्रेस बलिया आ रहे थे। इसकी जानकारी उनके समाजवादी कार्यकर्ताओं के तमाम लोगों की थी। उन दिनों चंद्रशेखर को बलिया के लोग दो नामों से ज्यादा पुकारते थे, अध्यक्ष जी और दाढ़ी। चंद्रशेखर इंटरसिटी से जैसे ही बलिया के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर उतरे, उनके कार्यकर्ता फूलमालाओं के साथ उनके स्वागत में बढ़े तो कुछ दूर स्थित युवा कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने जोर-जोर से नारा लगाना शुरू कर दिया, भिंडरवाला वापस जाओ, भिंडरवाला वापस जाओ..

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जून 1984 में सिखों के तीर्थ स्थल अमृतसर के स्वर्णमंदिर में सैनिक कार्रवाई हुई थी..उस कार्रवाई में पंजाब को दहशत का केंद्र बनाने वाला जनरैल सिंह भिंडरवाला मारा जा चुका था। इसी कार्रवाई से सिख समुदाय गुस्से में था, जिसकी दुखद परिणति 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में सामने आई। चंद्रशेखर ने स्वर्णमंदिर में सैनिक कार्रवाई का जोरदार शब्दों में विरोध किया था..इंदिरा की हत्या के बाद उनका यह विरोध चर्चा में आ गया था.. तत्कालीन सहानुभूति लहर के चलते इस बयान की वजह से चंद्रशेखर भी लोगों के निशाने पर थे...

बलिया प्लेटफॉर्म पर उनके खिलाफ लगा नारा उसी क्षोभ की अभिव्यक्ति कहा जा सकता है..चंद्रशेखर नारा लगा रहे युवाओं की तरफ कुछ कदम बढ़ाए भी..कुछ देर के लिए नारा थम गया..लेकिन बाद में नारा तब तक लगता रहा, जब तक वे प्लेटफॉर्म से निकलकर अंबेसडर कार से बलिया कलेक्ट्रेट नहीं चले गए..

बलिया कलेक्ट्रेट में नामांकन दाखिल करने के बाद उनकी सभा शहर के रामलीला मैदान में हो रही थी..जाड़े की गुनगुनी धूप ढलने लगी थी..जुलूस के साथ चंद्रशेखर रामलीला मैदान पहुंचे। तब वे खादी मटका का कुर्ता, धोती और बंडी पहने थे। कंधे पर बेतरतीब चादर भी थी..उनके नामांकन को कवर करने के लिए कुछ विदेशी पत्रकार भी बलिया पहुंचे थे..

रामलीला मैदान की उस सभा में बैठने का इंतजाम नहीं था..ज्यादातर लोग खड़े ही थे...चंद्रशेखर मंच पर पहुंचे..भिंडरवाला वापस जाओ के नारे से हुए स्वागत से उन्हें भरोसा हो गया था कि स्वर्णमंदिर में हुई सैनिक कार्रवाई के चलते लोगों में उन्हें लेकर गुस्सा है। लिहाजा उन्होंने अपने भाषण में सफाई देनी शुरू की...जिस सिख कौम के लिए सिखों के गुरू तेगबहादुर ने अपने शीश चढ़ा दिया, जिसके लिए गुरू गोविंद सिंह के दो बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया..उस महान कौम के तीर्थ स्थल पर सैनिक कार्रवाई का विरोध करके मैने गलती कहां गलती की...

अभी चंद्रशेखर का वाक्य पूरा ही नहीं हुआ कि तकरीबन पूरे मैदान से विरोध के सुर फूट पड़े, कोई उन्हें भोजपुरी में दाढ़ी के संबोधन के साथ चुप रहने की नसीहत दे रहा था..तो कोई उनके सफाई देने पर सवाल उठा रहा था..

चंद्रशेखर समवेत विरोध के इस सुर से चकित रह गए.. बेशक तब तक वे बड़े नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे, लेकिन उनकी अपीलों का कोई असर नहीं हुआ..लोगों ने उनका खुलकर विरोध किया..विरोध का प्रमुख वजह रही इंदिरा की हत्या को लेकर कांग्रेस के प्रति उपजी हमदर्दी और गुस्सा...

1977 और 1980 के चुनावों में जिस बलिया ने चंद्रशेखर को अपना संसदीय ताज बनाया, उसी बलिया ने दिसंबर 1984 में हुए आम चुनावों में नापसंद कर दिया..कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी के हाथों जनता पार्टी के अध्यक्ष जी को 54 हजार 940 वोटों से हार मिली...बलिया से कांग्रेस के आखिरी नुमाइंदे जगन्नाथ चौधरी ही रहे..उसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनावों में चंद्रशेखर को लगातार जीत मिली...उनके निधन के बाद हुए 2007 के उपचुनाव में उनके बेटे नीरज शेखर समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। नीरज को 2009 में भी जीत मिली, लेकिन 2014 में वे हार गए। अब वे बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और अपने पिता की विरासत पर बीजेपी के टिकट पर दावा ठोक रहे हैं...

बलिया में जब भी चुनाव आता है, चंद्रशेखर की याद आना स्वाभाविक है और इसके साथ ही उनके खिलाफ 1984 में लगा वह नारा भी, भिंडरवाला वापस जाओ

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं। बलिया निवासी लेखक के सामने ही यह नारा लगा था...

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