पितृ ऋण से ऐसे पाएं मुक्ति, श्राद्ध में ऐसे करेंगे पूजा तो पितृगण होंगे प्रसन्न
ऐसी मान्यता है कि इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष अनंत चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक रहता है।
श्राद्ध पक्ष 16 दिनों के होते हैं और इन दिनों में पूर्वज अपने घरों में आते हैं। मान्यता है कि इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष अनंत चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक रहता है। आश्विन मास की अमावस्या पितृ विसर्जन अमावस्या के रूप में विख्यात है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन तथा दान देने से पितर तृप्त हो जाते हैं तथा आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है उनका श्राद्ध भी अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि जाते समय पितर भूखे न जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है।
क्या है पितृ ऋण ?
शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। क्योंकि जिन माता पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख सौभाग्य की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयास किये, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। इसे उतारने में कुछ अधिक खर्च भी नहीं होता। वर्षभर में केवल एक बार अर्थात् उनकी मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न करने और गौ ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है। इसके लिए जिस मास की तिथि को माता पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध आदि करने के अलावा आश्विन कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिस स्त्री के कोई पुत्र न हो, वह स्वयं ही अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।
आप भी पा सकते हैं गलतियों के लिए माफी
वेदों के अनुसार, मनुष्यों के पास यह एक मौका होता है कि यदि उनसे अपने पूर्वजों के प्रति कोई गलती हुई हो तो वह इस दौरान उसके लिए क्षमा मांग लें। पितर भी इस दौरान अपने बच्चों की सभी गलतियों को माफ कर देते हैं और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी भोजन का अंश निकालते हैं। मान्यता है कि कुत्ता और कौवा यम के नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराती है। जो लोग जीवन रहते माता पिता की सेवा नहीं कर पाते, वह उनके इस दुनिया से जाने के बाद पछताते हैं लेकिन यदि वह चाहें तो अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा के साथ करके प्रसन्न कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
क्या है महत्व ?
मान्यता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति जब देह छोड़ता है तो तीन दिन के भीतर वह पितृलोक चला जाता है। कुछ आत्माएं तेरह दिन में पितृलोक चली जाती हैं और कुछ सवा माह अर्थात सैंतीसवें या चालीसवें दिन। फिर एक वर्ष पश्चात तर्पण किया जाता है। पितृलोक के बाद उन्हें पुनः धरती पर कर्मानुसार जन्म मिलता है। जो पूर्वज पितृलोक नहीं जा सके या जिन्हें दोबारा जन्म नहीं मिला ऐसी अतृप्त और आसक्त भाव में लिप्त आत्माओं के लिए बिहार स्थित 'गया' में मुक्ति−तृप्ति का कर्म तर्पण और पिंडदान किया जाता है। तर्पण करने से मनुष्य मातृ ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है।
-शुभा दुबे
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