क्या है ईश निंदा? इस कानून के तहत कई देशों में मिलती है सजा-ए-मौत
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सितंबर 2020, पाकिस्तान की एक अदालत ने एक ईसाई धर्म के व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई। लेकिन ऐसा नहीं की ये सजा तुरंत दे दी जाएगी। दोषी को पहले तीन साल की जेल काटनी होगी फिर ये कैद की मियाद खत्म होने के उपरांत उसे फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा। इतना ही नहीं मरने से पहले इस आदमी को 50 हजार का जुर्माना भी भड़ना होगा। इस आदमी का अपराध है फोन पर एक मैसेज का भेजना। ऐसा मैसेज जिसको पढ़कर उसके बॉस को लगा कि इस्लाम की तौहीन है। बॉस कि शिकायत पर उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान में ईश्वर के अपमान की दुहाई देकर किसी की जान लेने का फरमान निकलने की ये कोई एकलौती घटना नहीं रही है।
अल्लाह और पैगंबर को सम्मान दिलाने के बहाने कई मौते पहले भी हुई है। ईश्वर ने दुनिया बनाई। वो सर्वेशक्तिमान हैं। वो करुणा से भरा हुआ है। उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता नहीं डोलता। लेकिन कुछ कट्टरवादी ईश्वर के नाम पर क्रूरता करते हैं। मानों ईश्वर अपने सम्मान और रूतबे के लिए इन्हीं के आसरे बैठा हो। मशहूर लेखर शहादत हसन मंटो कहते थे मजहब जब दिलों से निकलर दिमाग पर चढ़ जाए तो जहर बन जाता है। जहर किस तरह जानलेना होता है इसका उदाहरण उदयपुर के तौर पर सबके सामने हैं। इससे पहले फ्रांस की मैगजीन शार्ली हाब्दो की कहानी हो या फिर 2016 के ही नींस में हुए लोन वुल्फ अटैक की बात। दर्जनों ऐसे उदाहरण धर्म के नाम पर चढ़े कट्टरता की जिल्द हटाते ही आंखों के सामने घूमने लगते हैं।
नूपुर शर्मा विवाद में कन्हैया लाल की हत्या के बाद से पूरे देश में आक्रोश है। एक फेसबुक पोस्ट के लिए जिस तरह से दो मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा एक हिन्दू दर्जी का सिर कलम किया गया उसे आतंकी कृत्य माना जा रहा है। इस घटना के बाद से पूरे देश में 'ईशनिंदा' पर भी बहस तेज हो गई है। हत्या कैसे हुई किसने की, किस मकसद से की इन सब से जुड़ी बातें आपने लगातार आ रही मीडिया रिपोर्ट में पढ़ी होंगी आज बात इससे आगे की करेंगे। सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये ईशनिंदा है क्या और भारत के संविधान में इसके लिए क्या प्रावधान है? कितने देशों में ईशनिंदा कानून लागू है और कहां-कहां क्या सजा मिलती है?
ईशनिंदा की उत्पत्ति
कुछ धर्म या धर्म-आधारित कानून ईश्वर के सम्मान में कमी या पवित्र या अदृश्य मानी जाने वाली किसी चीज के प्रति अपमान करना ईशनिंदा माना जाता है। ईशनिंदा को एक अपराध मानने के पीछे मूल विचार यह था कि धर्मों के विकसित होने पर उनकी पूरी श्रद्धा और रक्षा की जाए। प्राचीन काल से मध्यकाल तक शासक स्वयं को अजेय मानते थे। उन्होंने ज़िल-ए-इलाही (ईश्वर की छाया) जैसी उपाधियों के साथ धर्म और राज्य को देवत्व ग्रहण करने के लिए एक के रूप में पेश करने की मांग की। उन्होंने विरोधी आवाजों को कुचलने के लिए राजनीतिक शक्तियों और ईशनिंदा के आधार का इस्तेमाल किया।
सबसे पहले ब्रिटेन में लागू हुआ था कानून
ईशनिंदा के खिलाफ सबसे पहले ब्रिटेन ने वर्ष 1860 में कानून लागू किया था। वर्ष 1927 में इसका विस्तार किया गया। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 2019 तक दुनिया के 40 प्रतिशत देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून या नीतियां थीं। ज्यादातर मुस्लिम देशों में ये कानून लागू है। हालांकि, इस कानून के गलत प्रयोग का आरोप भी लगता रहा है। मुस्लिम देशों में इसके जरिए अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों पर काफी जुल्म होते हैं।
बाइबिल में ब्लासफेमी को लेकर क्या कहा गया
ब्लासफेमी जिसके लिए हिंदी में शब्द है ईश निंदा यानी ईश्वर की निंदा। कोई ऐसी हरकत, कोई ऐसी बात जो ईश्वर के लिए अपमान जनक मानी जाए। उनके अस्तित्व या उनकी ताकत पर शंका जाहिर करे। ब्लासफेमी का सबसे ज्यादा जिक्र बाइबिल में मिलता है। ओल्ड टेस्टामेंट में ईश निंदा करने वालों को सख्त सजा देने की ताकीद की गई है। इससे जुड़ा सबसे चर्चित पैसेज है लेबेटियस 24 कोलनसोला जिसमें लिखा है कि- कई भी आदमी जो ईश्वर की निंदा करे उसे मार दिया जाना चाहिए। पूरी सभा को चाहिए की पत्थर फेंक-फेंक कर उसकी जान ले ले। चाहे वो विदेशी हो या स्थानीय। जब वो ईश्वर की निंदा करे तो उसकी जान ले लेनी चाहिए। बाइबिल का ये नजरिया था जिसकी वजह से यूरोप के कुछ देशों से क्रिश्चिन देशों से ब्लासफेमी कानूनों की शुरुआत हुई। इनका मकसद था धार्मिक असहमति को खत्म करना और चर्चे की सत्ता को सर्वोपरि बनाना। लेकिन जैसे-जैसे वहां आधुनिकता आई। सिस्टम सहिष्णु होने लगा। ये कानून कमजोर होने लगा।
कुरान और ईश निंदा
ब्लासफेमी का आधार इस्लाम को बताया जाता है। इस्लाम की सर्वोच्च किताब कुरान है। कुरान शरीफ में ईशनिंदा के लिए कोई प्रावधान नहीं है। कुरान का गहन अध्ययन करने वाले इस्लामिक जानकार कहते हैं कि इस किताब में ईश निंदा करने वालों के लिए किसी सजा का हुक्म नहीं। जानकारों के मुताबिक कुरान की कुल 6 हजार 236 आयतों में कहीं भी नहीं लिखा कि ब्लासफेमी करने वालों को हिंसा और जोर जबरदस्ती से चुप कराया जाए। इस्लामी विद्वान और पद्मभूषण से सम्मानित मौलाना वहीदुद्दीन खान का दावा है किकुरान बताता है कि हर दौर में पैगंबर के समकालीन लोगों ने उनके प्रति नकारात्मक रवैया अपनाया। कुरान में 200 आयतें ऐसी हैं, जो बताती हैं कि पैगंबरों के समकालीन विरोधियों ने ठीक वही काम किया था, जिसे आज ईशनिंदा कहा जा रहा है। सदियों से पैगंबरों की आलोचना उनके समकालीन लोगों द्वारा की जाती रही है (कुरान 36:30)। कुरान के मुताबिक पैगंबर के समकालीन लोगों ने उन्हें झूठा (40:24), मूर्ख (7:66) और साजिश रचने वाला (16:101) तक करार दिया था। लेकिन कुरान में यह कहीं नहीं लिखा है कि जिन लोगों ने ऐसे शब्द कहे या कहते हैं उन्हें पीटा, मारा या और कोई सज़ा दी जाए।
भारत में स्थिति
भारत एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था और कई धर्मों का समाज है जो अदालतों में मायने रखने वाली एकमात्र पुस्तक: संविधान द्वारा शासित है।जो बात ईशनिंदा के विचार को भारत के कानून के शासन के खिलाफ खड़ा करती है, वह यह है कि संविधान अपने लोगों को उचित प्रतिबंधों के साथ भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। भारत में ईशनिंदा से निपटने के लिए समर्पित कोई कानून नहीं है। हालांकि, 1927 में भारतीय दंड संहिता में धारा 295A जोड़कर प्रावधान किया गया है कि यदि कोई जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा या फिर उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वास का अपमान करेगा तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में एक धार्मिक समूह या सांप्रदायिक तनाव और हिंसा के अपमान से निपटने के लिए प्रावधान (धारा 154, 295, 295 ए, 296, 297 और 298, एक साल से तीन साल तक की जेल की सजा के साथ) हैं।
हालांकि, भारत में भी ईशनिंदा कानून की मांग की जाती रही है। पिछले साल ही नवंबर में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून को लाने की मांग की थी। पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां कुछ हद तक इस तरह का कानून है। यहाँ भगवतगीता या बाइबल या गुरुग्रंथ साहिब, कृपाण या इससे जुड़े चीजों का अपमान करता है तो ये 'बेअदबी' माना जाएगा और फिर उसी के तहत आरोपी व्यक्ति को सजा दी जाती है। अंत में अगर ईश निंदा का आरोपी होना है तो मैं भी हूं जाऊं ये कहकर कि जो ईश्वर क्रूरता सीखाता है जो ईश्वर हिंसा सीखाता है। जो ईश्वर बेगुनाहों का कत्ल करना सीखाता है वो ईश्वर नहीं है, कुछ और है। क्योंकि ईश्वर की अवधारणा तो करुणा, दया, प्रेम और सद्भाव से जुड़ी है।
Story: अभिनय आकाश
Creative Director: नेहा मेहता
Photo Researcher: एकता
UI Developer: सुमित निर्वाल