AIADMK बनाम AIADMK: पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम के बीच की जंग की क्या है वजह?
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17 अक्टूबर 1972 की वो तारीख जब अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम (एआईएडीएमके) की स्थापना एमजी रामचंद्रन ने डीएमके से अलग होकर की थी तो उस वक्त वो एक लोकप्रिय फिल्म अभिनेता थे। उस समय मुख्यमंत्री और डीएमके के नेता एम करुणानिधि ने जब एमजीआर को पार्टी से निलंबित किया था तो उदूमलपेट में एक युवक ने आत्मदाह कर लिया था। इस घटना के पचास साल बाद एमजीआर की पार्टी में एक और निष्कासन देखने को मिला। जब ई पलानीस्वामी ने ओ पनीरसेल्वम को अलग किया तो सड़कों पर संघर्ष देखने को मिला।
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु की बात जब भी होती है तो वहां की राजनीति के मुख्य किरदार एम करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता की जरूर होती है। वजह भी है 1967 के बाद से इन्हीं दोनों पार्टी के बीच सत्ता की अदला-बदली होती रही है। यानी की पिछले पांच दशक में राष्ट्रीय दल के लिए अपने बलबूते सत्ता कायम करना ख्वाब सरीखा ही रहा है। वहीं तमिलनाडु की सियासत और रुपहले पर्दे का कनेक्शन हमेशा से रहा है। लेकिन रजनीकांत की सियासत में एंट्री से इनकार के बाद सूबे में एक पॉलिटिकल वैक्यूम सा बन गया है। ऐसे में क्षेत्रिय क्षत्रपों के कब्जे वाले प्रदेश पर राष्ट्रीय पार्टी को अपना आधार मजबूत करने का अवसर भी दिख रहा है।
तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके में वर्चस्व की लड़ाई और तेज हो गई है। पार्टी के नेता ई पलानीस्वामी को अंतरिम सचिव बनाए जाने के बाद ओ पन्नीरसेल्वम को पार्टी के पद से हटा दिया गया है। सीनियर लीडर ओ पन्नीरसेल्वम के समर्थक जेसीडी प्रभाकर, आर वैथलिंगम और पीएच मनोज पांडियन को भी एआईएडीएमके से बर्खास्त कर दिया गया है। बर्खास्त किए जाने के बाद पन्नीरसेल्वम में पलटवार करते हुए कहा कि वे ई पलानीस्वामी को पार्टी से हटाते हैं। ओ पन्नीरसेल्वम ने आगे कहा कि वे कोर्ट जाएंगे क्योंकि पार्टी के डेढ़ करोड़ कैडर्स की तरफ से कोर्डिनेटर नियुक्त किए गए थे। इस बीच, ओ पन्नीरसेल्वम समर्थकों ने पोस्टर लगाकर दावा किया है कि उनके आदमी को अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे जयललिता ने चुना था। याद रखें, जयललिता की मृत्यु के बाद महासचिव का पद समाप्त कर दिया गया था - ओपीएस को समन्वयक और ईपीएस को संयुक्त समन्वयक नामित किया गया था। हालांकि, द ट्रिब्यून के अनुसार, ईपीएस पक्ष का दावा है कि ये स्थिति "कैडरों को भ्रमित" कर रही है। ई पलानीस्वामी ने एक-एक कर अपने सभी विरोधियों को किनारे लगाना शुरू किया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पलानीस्वामी खेमे में उत्साह
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उसने पार्टी के एकल नेतृत्व के मुद्दे पर अन्नाद्रमुक की एक हालिया बैठक में किसी अघोषित प्रस्ताव को पारित करने पर रोक लगा दी थी। एडप्पाडी के पलानीस्वामी (ईपीएस) खेमा न्यायालय के इस निर्णय से उत्साहित है जो सक्रिय रूप से एकल नेतृत्व की कमान उनके हाथ में होने पर जोर दे रहा है। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 11 जुलाई, 2022 को होने वाली अन्नाद्रमुक की आम परिषद की बैठक कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है। ईपीएस खेमा शीर्ष अदालत के आदेश से इसलिए खुश है क्योंकि 23 जून को हुई आम परिषद की बैठक नेतृत्व के विषय के बारे में थी। उस दिन लिए जाने वाले सभी 23 प्रस्तावों को खारिज कर दिया गया था। गत 23 जून को हुई आम परिषद की बैठक में 11 जुलाई को फिर से बैठक करने का फैसला किया था।
पलानीस्वामी बनाम पन्नीरसेल्वम जंग की वजह
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि ये दो गुटों गौंडर थेवर की लड़ाई है। पलानीस्वामी गौंडर हैं और पनीरसेल्नम थेवर जाति से आते हैं। अम्मा जयललिता के जीवनकाल तक उनकी पकड़ पार्टी काडर पर इतनी मजबूत थी कि कभी भी गुटबाजी की कोई भी सूरत उत्पन्न नहीं हो पाई। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद से ही ये विवाद खुलकर सामने आ गया। पीएम मोदी की भी भूमिका का जिक्र राजनीतिक जानकारों की तरफ से किया जाता है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि पीएम मोदी ने दोनों गुटों को मिलाकर रखा और चार साल तक सत्ता भी चली। लेकिन डीएमके की सत्ता में वापसी और उसमें के अधिकांश मंत्रियों का बैकग्राउंड एआईएडीएमके का ही रहा है। कहा जा रहा है कि उन्ही की तरफ से इस भिड़ंत को हवा दी जा रही है। ताकी 2026 के चुनाव में एआईएडीएमके की फूट का फायदा स्टालिन की पार्टी को मिले और चुनाव में जीत हासिल हो।
सिंगल नेतृत्व
वैसे तो चाहे पार्टी कोई सी भी हो उसके कमांडिंग ऑफिसर का होना बेहद ही जरूरी है। लेकिन तमिलनाडु की एआईएडीएमके जो 2021 से पहले कभी दस साल तक लगातार सत्ता में रही। जयललिता की बदौलत पार्टी ने पहले 2011 फिर 2016 के चुनाव में जीत दर्ज की। लेकिन जयललिता के निधन के बाद से ही पार्टी में खींचतान लगातार देखने को मिली। कई सारे धड़े उत्पन्न हो गए। शशिकला, पनीरसेल्वम, पलानीस्वामी धड़ा। जिसकी वजह से विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी शिकस्त भी हुई। आलम ये हो गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को केवल एक सीट नसीब हुई। जिसकी सबसे बड़ी वजह अंदरूनी लड़ाई है। जिसे पार्टी के नेता खत्म करना चाहते हैं।
बीजेपी की पैनी निगाह
अन्नाद्रमुक की सहयोगी बीजेपी इस पर करीब से नजर रखे हुए है। द्रविड़ दल में जारी इस नाटक में बीजेपी भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है। पन्नीरसेल्वम तो बीजेपी को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है लेकिन बीजेपी पलानीस्वामी को नाराज नहीं करना चाहती है। बता दें जयललिता के निधन के बाद वो बीजेपी ही है जिसने पार्टी को एकजुट करने में कड़ी का काम किया। पन्नीरसेल्वम ने कहा भी था कि वो पीएम मोदी के कहने पर ही अगस्त 2016 में अपने गुट को पलानीस्वामी के धड़े में विलय को राजी हुए थे और राज्य में उप मुख्यमंत्री का पद भी स्वीकार किया था। द ट्रिब्यून के अनुसार, हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 'हिंदी थोपने' पर चल रही बहस को खत्म करने की कोशिश की, माना जाता है कि कैडर भाजपा के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं। अन्नाद्रमुक के संगठन सचिव सी पोन्नईयन ने हाल ही में भाजपा नीत केंद्र सरकार पर खुलेआम आरोप लगाए थे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विश्लेषकों को संकट का जल्द ही कोई अंत नहीं दिख रहा है। ईपीएस गुट जिस तरह भाजपा से दूरी बना रहा है उसके कारण एआईएडीएमके से भाजपा के रिश्ते निरंतर खराब हो सकते हैं। ईपीएस गुट भाजपा से अलग होने का फैसला करता है, भाजपा ओपीएस गुट से रिश्ता जोड़ सकती है और शशिकला और दिनकरन को भी साथ ले सकती है। ईपीएस की तरह अन्नामलाई भी गौंडर हैं और वे पश्चिमी तमिलनाडु में ईपीएस के प्रभाव को कमजोर कर सकते हैं। कह सकते हैं कि यह राष्ट्रीय पार्टी तमिलनाडु में द्रविड़ पार्टी एआईडीएमके द्वारा विपक्ष की जगह खाली करने पर उसे भरने की गुंजाइश देख रही होगी. लेकिन इसके साथ कई अगर-मगर जुड़े हैं।
Story: अभिनय आकाश
Creative Director: नेहा मेहता
Photo Researcher: एकता
UI Developer: सुमित निर्वाल