अरविंद केजरीवाल के निशाने पर संघ क्यों?
बीते लोकसभा चुनाव अभियान के बीच केजरीवाल ने कुछ ऐसा ही सवाल जनता के बीच उछाला था। तब उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी गृहमंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं। लगे हाथों उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर भी मोदी पर हमला बोला था।
दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो चुके अरविंद केजरीवाल के सवालों के घेरे में इन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के ताजपोशी के अगले ही दिन ‘जनता की अदालत’ में पहुंचे केजरीवाल ने सीधे-सीधे संघ प्रमुख मोहन भागवत से पांच सवाल पूछ लिया। लोकतांत्रिक भारतीय समाज किसी से भी तार्किक सवाल पूछने की अनुमति देता ही है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या केजरीवाल के निशाने पर सचमुच मोहन भागवत ही हैं? इसका जवाब केजरीवाल के अतीत के ऐसे ही कुछ सवालों के जरिए तलाशा जा सकता है।
बीते लोकसभा चुनाव अभियान के बीच केजरीवाल ने कुछ ऐसा ही सवाल जनता के बीच उछाला था। तब उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी गृहमंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं। लगे हाथों उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर भी मोदी पर हमला बोला था। तब उन्होंने कहा था कि योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नहीं बनाया जाएगा। साफ है कि केजरीवाल के निशाने पर मोदी हैं। लेकिन अतीत के जितने चुनावों में उन्होंने सीधे मोदी पर हमला बोला, उन चुनावों में केजरीवाल को फायदे की बजाय उलटा नुकसान ही हुआ। 2014 के आम चुनावों में वे सीधे ही वाराणसी के चुनावी मैदान में मोदी से दो-दो हाथ करने उतर गए थे। तब मीडिया के एक वर्ग और राजनीति के एक हिस्से ने उन्हें खूब तवज्जो दी थी। लेकिन मोदी के सामने वे कहीं ठहर नहीं पाए थे। अपवाद दिल्ली विधानसभा के अतीत के दोनों चुनाव रहे, जिसमें उन्होंने सीधे मोदी को निशाना बनाया और लोगों का रिकॉर्ड समर्थन हासिल करते रहे। चूंकि कुछ ही महीने बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं। इस बीच केजरीवाल अपनी आधी कैबिनेट के साथ जेल यात्रा कर आए हैं। उनके मंत्री रहे सत्येंद्र जैन अब भी जेल में ही हैं। मनीष सिसोदिया 14 महीने के बाद जमानत पर जेल से बाहर हुए हैं। उनके तेज-तर्रार सांसद संजय सिंह भी जेल यात्रा कर चुके हैं। शराब नीति घोटाले में इतनी जेल यात्राओं के बाद केजरीवाल और उनकी पार्टी की वैसी छवि नहीं रही, जैसी 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में रही। दिल्ली का सार्वजनिक परिवहन हांफ रहा है। दिल्ली के लोग सार्वजनिक सहूलियतों के लिए तरस रहे हैं। एमसीडी में केजरीवाल के नारे के साथ दिल्ली नगर निगम पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो चुका है। लेकिन एमसीडी की कार्यप्रणाली में गुणवत्तापूर्वक बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है। बारिश में तकरीबन पूरी दिल्ली तालाब बनी रही। राजधानी दिल्ली के लिए शर्म की ही बात कही जाएगी कि 48 लोग बारिश के पानी से तालाब बनी दिल्ली में डूबकर मर गए। इन घटनाओं के चलते केजरीवाल के पुराने जलवे की दीवार में दरार पड़ चुकी है। इसी दरार के साथ केजरीवाल को विधान सभा के चुनाव में उतरना है, इसलिए उन्होंने अपने आजमाए नुस्खे को एक बार फिर आजमाने का फैसला किया है। इसलिए मोदी पर वे हमलावर तो हैं, लेकिन सीधे हमले से बच रहे हैं। पहले योगी आदित्य और अब मोहन भागवत का बहाना, केजरीवाल की उसी रणनीति का हिस्सा है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आमतौर पर ऐसे आरोपों और सवालों की ना तो सफाई देता है और नही जवाब। इसलिए उम्मीद कम ही है कि केजरीवाल के आरोपों और सवालों का मोहन भागवत या संघ का कोई अन्य जिम्मेदार पदाधिकारी जवाब देगा। संघ को ऐसी बातों को नजरंदाज करने का परीक्षित अभ्यास है। आशा की जाती है कि संघ केजरीवाल के किसी भी आरोप और सवाल का जवाब नहीं देगा।
केजरीवाल ने कहा है कि संघ का ही अंग भाजपा है। वह भाजपा विपक्षी दलों की सरकारों और नेताओं को साजिश के तहत जेल भेज रही है। केजरीवाल पूछ रहे हैं कि क्या मातृसंगठन होने के नाते बीजेपी के हर कामों में संघ की भी सहमति है। केजरीवाल ने संघ से यहां तक पूछा है कि क्या बेटा, मां से भी बड़ा हो गया है। केजरीवाल एक तरह से संघ और बीजेपी को एक-साथ जोड़कर बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि बीजेपी में संघ की विचारधारा में दीक्षित तमाम लोग तमाम स्तरों पर सक्रिय हैं। लेकिन संघ ने कभी नहीं स्वीकार किया है कि भाजपा उसका अंग है। संघ ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया है कि बीजेपी उसका राजनीतिक अंग है। संघ उसे अपने आनुसंगिक संगठन के तौर पर भी स्वीकार नहीं करता। इसलिए यह तय है कि केजरीवाल के आरोप या सवाल का संघ कोई जवाब नहीं देने जा रहा। भरसक संघ की कोशिश होगी कि केजरीवाल के सवाल अनदेखे रह जाएं।
वैसे यह भी सच है कि संकेतों में संघ आम चुनाव नतीजों के बाद भाजपा को संदेश देता रहा है। संगठन को मजबूत बनाने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की भावनाओं की कद्र करने को लेकर भी संघ बीजेपी को संकेतों में सुझाव दे चुका है। शायद एक यह भी वजह है कि केजरीवाल बीजेपी की बजाय संघ से ही सीधे सवाल पूछ रहे हैं? केजरीवाल को शायद लगता है कि संकेतों में ही सही, उनके प्रश्नों का जवाब संघ दे दे। केजरीवाल बेहद चतुर राजनेता हैं। उनके अगले कदम की थाह लगाना आसान नहीं है। लेकिन यह तय है कि अगर संघ ने कोई जवाब दिया तो उसे वह ले उड़ेंगे और बीजेपी को नीचा दिखाने के लिए उसकी अपने ढंग से व्याख्या जरूर करेंगे। अगर ऐसा हो गया तो तय मानिए, केजरीवाल अपनी अतीत की राजनीति के हिसाब से नया वितंडा खड़ा करेंगे और इसके बीच से नई चुनावी राह बनाने की कोशिश करेंगे।
केजरीवाल एक और काम इन दिनों कर रहे हैं। वे जनता से पूछ रहे हैं कि वे ईमानदार हैं कि नहीं। चारा घोटाले के आरोपी और बाद में सजायाफ्ता रहे लालू प्रसाद यादव ने कभी जनता से नहीं पूछा कि वे ईमानदार हैं या नहीं। अलबत्ता आरोपी होने और सजायाफ्ता होने के बावजूद उनका दल चुनाव जीतता रहा है। केजरीवाल को अगर इन सवालों के बावजूद जीत मिली तो वे खुद को ईमानदार घोषित करने में पीछे नहीं रहेंगे। हालांकि लालू यादव ने चुनाव जतने के बावजूद कभी ऐसा दावा नहीं किया। इन अर्थों में देखें तो लालू और केजरीवाल में समानता नहीं है। हां, संघ पर हमले के संदर्भ में देखें तो लालू और केजरीवाल की रवायत एक जैसी दिखती है।
केजरीवाल ने ऐसे ही हमले करते हुए अतीत में अपनी ताकत बढ़ाई है। पहले उन्होंने कांग्रेस और शीला दीक्षित पर हमला बोला। शुरूआती दौर में उनका आंदोलन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ था। तब के सत्ताधारी गठबंधन का शायद ही कोई नेता होगा, जो तब केजरीवाल और उनकी टीम की नजर में भ्रष्टाचारी नहीं था। उनका नाम जपते-जपते केजरीवाल राजनीति के विशेष मुकाम तक पहुंच गए। लेकिन अब वे उन्हीं नेताओं के साथ मंच साझा करते हैं, उनके साथ चुनावी मैदान में उतरने की जोड़-जुगत भिड़ाते रहे हैं। चूंकि अभी बीजेपी उनकी दुश्मन नंबर एक पार्टी है, लिहाजा बीजेपी को छोड़ तमाम बड़ी पार्टियों के साथ वे गठबंधन की राह या तो तलाशते हैं या फिर किसी खास इलाके या राज्य में गठबंधन बना भी लेते हैं। हालांकि लोकसभा चुनावों में उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई है। आज की राजनीति का आखिरी लक्ष्य सत्ता रह गई है। अगर सत्ता नहीं मिलती तो लंबी राजनीति के लिए राजनीतिक तौर पर जिंदा रहना जरूरी होता है। केजरीवाल को शायद लगता है कि मोहन भागवत और संघ का नाम उनकी सत्ता की राह बरकरार रखने में मददगार हो या नहीं, राजनीति में उन्हें प्रासंगिक बनाए रखने की जड़ी जरूर है।
-उमेश चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)
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