कई बड़े राजनीतिक पदों पर रहकर राष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे ज्ञानी जैल सिंह
पंजाब की धरती पर ज्ञानी जैल सिंह ने काफी काम किया था। उन्होंने हमेशा गलत के खिलाफ आवाज उठाई। 1947 में धर्मनिरपेक्ष तर्ज पर भारत के पुनर्गठन हुआ था जिसके बाद उन्होंने फरीदकोट राज्य के शासक हरिंदर सिंह बराड़ का विरोध किया था।
दिग्गज नेता ज्ञानी जैल सिंह (Giani Zail Singh) भारत के पहले सिख राष्ट्रपति थे। उन्होंने 1982 से 1987 तक पद को संभाला था, इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति पद की गरिमा को और बढ़ाया। राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने से पहले ज्ञानी जैल सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर भी काम किया और केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे। कांग्रेस पार्टी से ज्ञानी जैल सिंह लंबे वक्त तक जुड़े रहे और आजादी के बाद पार्टी के प्रमुख लोगों की टीम में शामिल हो गये। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ एक राजनेता के तौर पर उन्होंने कई बड़े काम किए थे जिससे पार्टी ने खुश होकर उन्हें नयी जिम्मेदारियां भी दी थी। ज्ञानी जैल सिंह भारत में कांग्रेस शासन के दौरान गृह मंत्री सहित केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई मंत्री पदों पर रहे थे। उन्होंने 1983 से 1986 तक गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1994 में एक कार दुर्घटना के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
ज्ञानी जैल सिंह का शुरूआती जीवन
ज्ञानी जैल सिंह जन्म 5 मई 1916 को फरीदकोट जिले के संघवान में किशन सिंह के घर पर हुआ था। किशन सिंह आर्थिक रूप से काफी मजबूत व्यक्ति नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने बेटे को इस कदर पाला की बड़ा होकर उनका बेटा देश का राष्ट्रपति बना। किशन सिंह गांव के बढ़ई थे। उनके पास जोतने के लिए अपना छोटा रकबा था जिससे वह अपने घर के खर्च को निकालते थे।
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जरनैल से जैल कैसे बने थे देश के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह
ज्ञानी जैल सिंह एक धर्मनिष्ठ सिख थे और अपने सरल और ईमानदार व्यवहार के लिए ग्रामीण इलाकों में जाने जाते थे। ज्ञानी जैल सिंह का नाम बचपन में उनके माता पिता ने जरनैल रखा था, जिसका मतलब होता है शांत लेकिन जैसे जैसे ज्ञानी जैल सिंह बड़े हुए और देश दुनिया की राजनीति को समझने लगे तब उन्होंने फरीदकोट के महाराजा के शासन का विरोध किया जिसके कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। माना जाता है उनका नाम यहीं से जरनैल से जैल हो गया। वह धर्म से एक सिख थे, उन्हें ज्ञानी की उपाधि दी गई थी, क्योंकि उन्होंने अमृतसर में शहीद सिख मिशनरी कॉलेज में गुरु ग्रंथ साहिब के बारे में शिक्षित और सीखा था।
पंजाब की राजनीति (1947-1972)
पंजाब की धरती पर ज्ञानी जैल सिंह ने काफी काम किया था। उन्होंने हमेशा गलत के खिलाफ आवाज उठाई। 1947 में धर्मनिरपेक्ष तर्ज पर भारत के पुनर्गठन हुआ था जिसके बाद उन्होंने फरीदकोट राज्य के शासक हरिंदर सिंह बराड़ का विरोध किया था। विरोध के कारण उन्हें पांच साल तक कैद और यातनाएं दी गईं। यहीं से उनकी लोकप्रियता और बढ़ना शुरू हो गयी। उन्हें 1949 में मुख्यमंत्री ज्ञान सिंह रारेवाला के तहत हाल ही में गठित पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ के राजस्व मंत्री के रूप में बुलाया गया और बाद में 1951 में कृषि मंत्री बने। 3 अप्रैल 1956 से 10 मार्च 1962 तक वे राज्य सभा के सदस्य थे।
पंजाब के मुख्यमंत्री (1972-77)
जैल सिंह 1972 में पंजाब के कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए। उन्होंने बड़े पैमाने पर धार्मिक सभाओं की व्यवस्था की। एक पारंपरिक सिख प्रार्थना के साथ सार्वजनिक समारोहों की शुरुआत की और उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर एक राजमार्ग का उद्घाटन किया। उन्होंने राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आजीवन पेंशन योजना बनाई। वह लंदन से उधम सिंह के अवशेष, गुरु गोबिंद सिंह से संबंधित हथियार और लेख वापस लाए। 1980 में जैल सिंह 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए, और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री के रूप में शामिल होने के लिए नियुक्त हुए।
भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह
ज्ञानी जैल सिंह भारत के राष्ट्रपति बनें। 16 सितंबर 1975 ज्ञानी जैल सिंह ने ज्ञानी धनवंत सिंह सीतल को समर्पित सीताल सम्मान समारोह के अवसर पर शिरकत की। 1982 में उन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने के लिए नामित किया गया था। बहरहाल, मीडिया में कुछ लोगों ने महसूस किया कि राष्ट्रपति को एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के बजाय इंदिरा के वफादार होने के लिए चुना गया था।
पुरस्कार
12 सितंबर 1982 को कोट्टायम नेहरू स्टेडियम में आयोजित कैथोलिक प्लेटिनम जयंती समारोह की बैठक के दौरान जैल सिंह को ऑर्डर ऑफ सेंट थॉमस (भारतीय रूढ़िवादी चर्च द्वारा प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च मानद पुरस्कार) से सम्मानित किया गया।
- रेनू तिवारी
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