विशाल भारत की कल्पना बिना सरदार वल्लभ भाई पटेल के पूरी नहीं हो पाती

Sardar Vallabhbhai Patel
Prabhasakshi
अंकित सिंह । Dec 15 2022 10:32AM

1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद सरदार वल्लभ भाई ने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्रित किया।

जब-जब मजबूत और अखंड भारत के बाद आएगी तब तक पर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जिक्र जरूर आएगा। देश को एकता और अखंडता के सूत्र में पिरोने वाले पहले उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल अपने मजबूत संकल्प शक्ति के लिए हमेशा जाने गए। वह सरदार पटेल ही थे जिन्होंने बिखरे भारत को एक करने की कोशिश की। वह सरदार पटेल ही थे जिन्होंने छोटे-छोटे राजवाड़े और राजघरानों को भारत में सम्मिलित किया। दूसरे शब्दों में कहे तो विशाल भारत की कल्पना बिना वल्लभ भाई पटेल के शायद पूरी नहीं हो पाती। सरदार पटेल की विशाल व भव्य भारत की कल्पना हमेशा इतिहास में अंकित रहेगा। नवीन भारत के निर्माता सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले गृह मंत्री थे और अपने शांत स्वभाव तथा सुदृढ़ व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। 

वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ था। वह एक सधारण किसान परिवार के थे। नवीन भारत का निर्माता तथा राष्ट्रीय एकता के शिल्पी के रुप में प्रसिद्ध सरदार पटेल ने गांधी जी के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था। बचपन से ही वह बहुत मेधावी थे। उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली। उनके जीवन से जुड़े अनेक ऐसे किस्से सुनने-पढ़ने को मिलते रहे हैं, जिससे उनकी ईमानदारी, दृढ़ निश्चय, समर्पण, निष्ठा और हिम्मत की मिसाल मिलती हैं। सरदार पटेल बचपन से अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। नडियाद में उनके स्कूल में अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे तथा छात्रों को बाहर से पुस्तक खरीदने से रोकते थे। सरदार पटेल ने इसका विरोध किया तथा साथी छात्रों को आंदोलन के प्रेरित किया। इस तरह छात्रों के विरोध के कारण अध्यापकों को अपना व्यापार बंद करना पड़ा।

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1909 में जब वे वकालत करते थे, उस दौरान तो उनकी कर्त्तव्यपरायणता की मिसाल देखने को मिली, जिसकी आज के युग में तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उस समय उनकी पत्नी झावेर बा कैंसर से पीडि़त थी और बम्बई के एक अस्पताल में भर्ती थी लेकिन ऑपरेशन के दौरान उनका निधन हो गया। उस दिन सरदार पटेल अदालत में अपने मुवक्किल के केस की पैरवी कर रहे थे, तभी उन्हें संदेश मिला कि अस्पताल में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई है। संदेश पढ़कर उन्होंने पत्र को चुपचाप जेब में रख लिया और अदालत में अपने मुवक्किल के पक्ष में लगातार दो घंटे तक बहस करते रहे। आखिरकार उन्होंने अपने मुवक्किल का केस जीत लिया। केस जीतने के बाद जब न्यायाधीश सहित वहां उपस्थित अन्य लोगों को मालूम हुआ कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया है तो सभी ने सरदार पटेल से पूछा कि वे तुरंत अदालत की कार्रवाई छोड़कर चले क्यों नहीं गए? पटेल ने जवाब दिया कि उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय पाने के लिए मुझे दिया था और मैं उसके साथ अन्याय नहीं कर सकता था।

1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्रित किया। अपने इस काम की वजह से देखते ही देखते वह गुजरात के प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गए। गुजरात के बारदोली ताल्लुका के लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे। बताया जाता है कि बारडोली में सरदार पटेल की सूझबूझ से सत्याग्रह आंदोलन की सफलता पर महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि से विभूषित किया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को क्रियात्मक तथा वैचारिक रूप में नई दिशा देने में उनका विशेष योगदान रहा है। 

500 रियासतों को मिलाने का किया था कार्य 

सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पहले पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देशी रियासतों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप तीन राज्यों को छोड़ सभी भारत संघ में सम्मिलित हो गए। 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो चुकी थी। ऐसे में जब जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध विद्रोह हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया।

- अंकित सिंह

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