उत्तराखंड में शाम होते ही क्यों बंद हो जाते हैं चुनाव प्रचार,इस डर से प्रत्याशियों ने बंद किया डोर टू डोर प्रचार
उत्तराखंड में इस समय तेजी से बारिश और बर्फबारी हो रही है जिसके कारण भारी संख्या में गुलदार और तेंदुए की आबादी जगंल के बाहर मंडरा रहे है। उत्तराखंड के पौड़ी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, नैनीताल जिलों के दूर-दूर क्षेत्र में जगंली जानवरों का आंतक मचा हुआ है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले है और कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कई तरीके की बंदिशें भी लागू कर दी गई हैं। वहीं, उत्तराखंड में प्रत्याशियों के सामने एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड में गुलदार, बाघ, तेंदुए, हाथी-भालुओं का काफी ज्यादा डेरा है और इस कारण उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार करने में मुश्किलें आ रही है। डर के कारण चुनाव प्रचार काफी प्रभावित हो रही है। जैसे ही उत्तराखंड में शाम होती है वैसे ही कई सीटों पर प्रत्याशी और उनके समर्थक चुनाव प्रचार रोक देते हैं। उम्मीदवारों का डर रहता है कि, कहीं कोई खूंखार जानवर हमला न कर दे।
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उत्तराखंड में इस समय तेजी से बारिश और बर्फबारी हो रही है जिसके कारण भारी संख्या में गुलदार और तेंदुए की आबादी जगंल के बाहर मंडरा रहे है। उत्तराखंड के पौड़ी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, नैनीताल जिलों के दूर-दूर क्षेत्र में जगंली जानवरों का आंतक मचा हुआ है और इसके कारण जैसे ही शाम होती है लोग अपने घर से बाहर नहीं निकलते है। इस कारण पूरे क्षेत्र में सन्नाटा फैल जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि, उत्तराखंड के कुल भूभाग में से 71.05 फीसदी में जंगल हैंष। यहां इस समय मादा गुलदार का भय सबसे ज्यादा बढ़ा हुआ है। लोगों के मुताबिक, कई लोग जानवरों के डक से पलायन तक करने को मजबूर हो रहे है लेकिन चुनाव में किसी भी पार्टी ने वन्य जीवों का मुद्दा नहीं उठाया। 80 फीसदी से ज्यादा हमले गुलदार के ही होते है , यहां तक की हाथी भी परेशानी खड़ कर देती है। वहीं भालू के भी हमलें भी काफी तेज हो गए है। यह न केवल लोग बल्कि खेती को भी नष्ट कर रहे है। चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ के कई इलाकों में पलायन तेजी से हो रहा है।
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