माटी के लाल के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्से और मौत से जुड़ा रहस्य
लाल बहादुर शास्त्री 19 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, इन 19 महीनों में उन्होंने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया। ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देते हुए शास्त्री जी ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के अहंकार और भ्रम को हमेशा के लिए तोड़ दिया था और ताकत के जोर पर पाकिस्तान का कश्मीर को हथियाने का सपना चूर-चूर कर दिया था।
मौत एक शाश्वत सत्य है लेकिन कुछ मौतें ऐसी होती हैं जिस पर रहस्य का कफन लिपटा होता है। ऐसी ही मौत देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की थी। जिनकी मौत पर पड़ा पर्दा आज तक नहीं हट पाया है। आज देश भर में लाल बहादुर शास्त्री की 115वीं जयंती मनाई जा रही है। लेकिन शास्त्री जी की मौत को लेकर कई बार सवाल उठे कि ये मौत साजिश के तहत हुई थी या स्वाभाविक। लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर आज हम उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के साथ ही उनकी मौत से जुड़े कुछ रहस्यों का भी उल्लेख करेंगे।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे थे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया था। 1940 का दौर था और उस दौरान लाला लाजपत राय की संस्था लोक सेवक मंडल स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की आर्थिक मदद किया करती थी। उसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे तो उन्होंने अपनी मां को एक ख़त लिखा। इस खत में उन्होंने पूछा था कि क्या उन्हें संस्था से पैसे समय पर मिल रहे हैं और वे परिवार की जरुरतों के लिए पर्याप्त हैं। शास्त्री जी कि मां ने जवाब दिया कि उन्हें पचास रुपए मिलते हैं जिसमें से लगभग चालीस खर्च हो जाते हैं और बाकी के पैसे वे बचा लेती हैं। जिसके बाद शास्त्री जी ने लोक सेवक मंडल को भी एक पत्र लिखा और धन्यवाद देते हुए कहा कि अगली बार से उनके परिवार को चालीस रुपए ही भेजे जाएं और बचे हुए पैसों से किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए।
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शास्त्री जी के जीवन से जुड़ा एक और दिलचस्प किस्सा यह है कि जब स्वतंत्रता की लड़ाई में जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए दो आम छिपाकर ले आई थीं। इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया। शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है।
नैतिकता के सागर में डूबे शास्त्री जी को एक बार जेल से बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन के पैरोल पर छोड़ा गया। लेकिन बीच में ही उसके गुजर जाने की वजह से शास्त्री जी 15 दिन के पैरोल अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस आ गए।
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लाल बहादुर शास्त्री 19 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, इन 19 महीनों में उन्होंने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया। ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देते हुए शास्त्री जी ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के अहंकार और भ्रम को हमेशा के लिए तोड़ दिया था और ताकत के जोर पर पाकिस्तान का कश्मीर को हथियाने का सपना चूर-चूर कर दिया था। शास्त्री जी कद में छोटे थे और उनकी आवाज बेहद नर्म और सौम्य थी। लेकिन उनके इरादे और काम करने का तरीका फौलादी था।
1965 के युद्ध में पाकिस्तान के जनरल अयूब खान को कदमों में झुकाकर उन्होंने अपना कद सबसे ऊंचा कर लिया था। शास्त्री जी को उनकी सादगी के लिए जाना जाता था। 1965 के बाद वो वक्त था जब पाकिस्तान को अपने फौलादी इरादे से करारा जवाब देने वाले शास्त्री जी का कद और ताकत दोनों बढ़ चुके थे। उनके कद और नेतृत्व क्षमता की हंसी उड़ाने वाले ये देख रहे थे कि शास्त्री जी को देश के नए हीरो की तरह देखा जाने लगा था। उनका नारा ‘जय जवान जय किसान’ काफी लोकप्रिय हो चुका था। एक बार जब उनके बेटे को गलत तरह से प्रमोशन दे दिया गया तो शास्त्री जी ने खुद उस प्रमोशन को रद्द करवा दिया।
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बतौर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडक्टर लाने की शुरुआत की। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उन्होंने लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार का सुझाव भी उन्हीं की देन है। परिवहन में जो महिलाओं के लिए आरक्षित सीट देखते हैं उसकी शुरूआत भी लाल बहादुर शास्त्री ने की थी।
मौत का रहस्य
1965 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया था। 23 सितम्बर को युद्ध विराम का ऐलान हो गया। लेकिन अभी भी सीमा पर तनाव बरक़रार था। दोनों देशों के बीच मध्यस्थता के लिए रूस आगे आया और ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान को समझौते के लिए बुलाया गया। पाकिस्तान समझौते में कश्मीर पर जोर डालना चाहता था। लेकिन शास्त्री जी टस से मस नहीं हुए। हालांकि एक बात जो शास्त्री जी को अंदर ही अंदर खाई जा रही थी कि समझौते के मुताबिक भारतीय सेना को महत्वपूर्ण इलाकों से हटना पड़ेगा जिन्हें भारत ने युद्ध में जीता था। यानी युद्ध में भारत को जो बढ़त मिली वह कायम नहीं रहती। शास्त्री जी इस बात पर देश की प्रतिक्रिया से थोड़े चिंतित थे।
ताशकंद में 10 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति के बीच 9 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इसमें कहा गया कि 25 फरवरी तक दोनों देशों की सेनाएं 5 अगस्त के पहले की स्थिति में लौट जाएंगी। इसमें कश्मीर की कोई चर्चा नहीं की गयी थी। इस समझौते के बाद ताशकंद में एक पार्टी रखी गई, पार्टी में शामिल होने के बाद रात करीब 10 बजे शास्त्री जी अपने होटल के कमरे में आ गए। अगले दिन सुबह 7 बजे शास्त्री जी का विमान काबुल के लिए रवाना होने वाला था। लेकिन शास्त्री जी के लिए वह सुबह कभी नहीं आई। रात 11 बजे शास्त्री जी ने दिल्ली फ़ोन मिलाकर अपनी बेटी कुसुम से बात की। शास्त्री जी ने घरवालों से कहा की वो भारतीय अख़बार काबुल भिजवा दें, जहां उन्हें अगले दिन पहुंचना था। रात के करीब 1 बजकर 20 मिनट पर शास्त्री जी की हालत बिगड़ गयी और डाक्टरों को बुलाया गया। लेकिन शास्त्री जी दुनिया से चले गए थे। उस समय ताशकंद में रात के 1 बजकर 30 मिनट हो रहे थे और भारत में समय था रात के 2 बजे का। उनकी मौत की खबर फैलते ही छोटे से कद के इस बड़े नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए एयरपोर्ट पर लोगों का तांता लग गया।
समय गुजरने के साथ ही यह संदेह भी गहरा होता गया कि शास्त्री जी की मौत कैसे हुई? क्या वाकई उन्हें दिल का दौरा पड़ा था या फिर उन्हें जहर दिया गया था? जिसकी वजह से उनका शरीर नीला पड़ गया था। शास्त्री जी की मौत के कुछ सालों बाद एक सांसद ने लोकसभा में आरोप लगाया था कि शास्त्री जी को जहर दिया गया था। प्रधानमंत्री शास्त्री जी के साथ ताशकंद में ही मौजूद उनके प्रेस सलाहकार रहे कुलदीप नैय्यर ने अपनी आत्मकथा बीयंड द लाइंस में लिखा है कि ताशकंद से लौटने के बाद शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने उनसे पूछा था कि शास्त्री जी का शरीर नीला क्यों पड़ गया था? नैय्यर ने कहा कि शरीर पर लेप किया जाता है तो वो बाद में नीला पड़ जाता है। उसके बाद उन्होंने शास्त्री जी के शरीर पर कुछ चीरों के निशान के बारे में पूछा? जिसके जवाब में नैय्यर ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता है।
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शास्त्री जी की मौत पर इसलिए भी सवाल उठते रहे हैं क्योंकि भारत सरकार इससे जुड़े कागजात दिखाने से हमेशा इंकार करती रही। लाल बहादुर की मौत के करीब छठे दशक में पहुंच चुके वक्त में लाल किले से लाल बहादुर की वो हुंकार आज भी प्रत्येक देशवासी के दिलों में जोश भर देती है और इतने साल बाद भी लोगों की आंखें भारत के लाल की याद में नम हो जाती हैं। धीरे-धीरे समय का पहिया आधी सदी आगे बढ़ चुका है। लेकिन मौत का राज उस वक्त की तरह आज भी घना और गहरा है।
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