Karnataka Polls: नेताओं की रार के बीच कांग्रेस के लिए कर्नाटक में पंजाब जैसे हालात, आसान नहीं है सत्ता की ये डगर

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद राजनीतिक पार्टियां पूरी तैयारियों के साथ जुट गई हैं। लेकिन कर्नाटक कांग्रेस में सीनियर नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी है। ऐसे में कांग्रेस के आलाकमान के सामने इस द्वंद से बाहर निकल पाना सबसे बड़ा टास्क बन गया है।

कर्नाटक के दावणगेरे में 3 अक्टूबर 1990 को हिंदुओं ने मुस्लिम इलाके में एक शोभायात्रा निकाली। जिसके बाद राज्य में दंगे भड़क गए। तभी कर्नाटक के चन्नपटना में एक मुस्लिम लड़की को एक हिंदू लड़के द्वारा छेड़ा गया। इस बात के फैलते ही राज्य में साम्प्रदायिक हिंसा होने लगी। इस हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए। बता दें कि इस दौरान कर्नाटक में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार थी और सीएम पद की जिम्मेदारी वीरेंद्र पाटिल संभाल रहे थे। इन सारी घटनाओं के कुछ दिन पहले सीएम पाटिल को दिल का दौरा पड़ा था। जिस कारण वह बिस्तर पर थे। 

वहीं दंगो के कारण जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था। इस दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष राजीव गांधी डैमेज कंट्रोल के लिए कर्नाटक के बेंगलुरु पहुंचे और थोड़े समय बाद राजीव गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को सीएम पद से हटाए जाने का ऐलान कर दिया। इस घटना पर दो तरह की थ्योरी सामने आईं। जिनमें पहली थ्योरी थी कि राजीव गांधी ने बीमार वीरेंद्र पाटिल को आराम देने के लिए सीएम पद से हटाया। वहीं दूसरी थ्योरी यह कहती थी कि राजीव गांधी ने पाटिल से मुलाकात भी जरूरी नहीं समझी। उन्होंने एयरपोर्ट से ही उन्होंने पाटिल को सीएम पद से हटाने का फैसला ले लिया था।

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लिंगायत समुदाय की कांग्रेस से नाराजगी

आपको बता दें कि पूर्व सीएम पाटिल लिंगायतों के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे। राज्य में लिंगायत समुदाय की आबादी करीब 17 फीसदी के आसपास है। वहीं राजीव गांधी द्वारा वीरेंद्र पाटिल को हटाए जाने का फैसला विपक्षी दलों ने लिंगायतों के अपमान से जोड़ दिया। वहीं लिंगायत समुदाय ने भी इसे अपना अपमान समझा और यहीं से कर्नाटक में दाखिल होने के लिए BJP को जमीन मिल गई। इसके बाद से साल दर साल भाजपा कर्नाटक में अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही है और कांग्रेस सिमटती जा रही है। इस घटना के बाद से भाजपा लिंगायत समुदाय के वोटबैंक के एक बड़े हिस्से पर कुंडली मार कर बैठी है।

पीएम मोदी ने कर्नाटक रैली में कांग्रेस पर साधा निशाना

पीएम मोदी ने भी कर्नाटक की एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इस घटना का जिक्र किया था। जिसमें पीएम मोदी ने कहा था कि वह कर्नाटक की जनता को याद दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस कर्नाटक से कितना नफरत करती है। पीएम मोदी ने रैली में कहा कि कांग्रेस ने कर्नाटक के नेताओं का अपमान किया है। नेताओं का अपमान करना कांग्रेस की परंपरा में शामिल हैं। इसके साथ ही पीएम मोदी ने कहा था कि एस निजलिंगप्पा से लेकर वीरेंद्र पाटिल तक को कांग्रेस में अपमानित किया गया है। इस बात को कर्नाटक की जनता को भूलना नहीं चाहिए।

नेताओं के बीच की रार

लेकिन कहते हैं कि परिस्थिति कितनी भी विपरीत क्यों न हो, अच्छे की उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। उम्मीद की एक किरण कांग्रेस के लिए कर्नाटक से दिखाई दे रही है। कर्नाटक में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ कर्नाटक में भी वही समस्या है जो उसके सामने पंजाब और राजस्थान में थी। कांग्रेस नेताओं के बीच होने वाली रार के कारण ही पार्टी को पंजाब से हाथ धोना पड़ा। वहीं राजस्थान में भी सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच गहमा-गहमी पिछले तीन सालों से दिखने को मिल रही है। ऐसे में कर्नाटक में पूर्व सीएम सिद्दारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच सालों से चली आ रही अनबन चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए बड़ा संकट है।

कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण

कर्नाटक दक्षिण भारत की राजनीति का गेटवे कहा जाता है। यहां पर विधानसभा की 224 सीटें हैं। जबिक लोकसभा की 28 सीटें और राज्यसभा में यहां से 12 सांसद जाते हैं। वर्तमान में कर्नाटक में भाजपा की सरकार है। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण कर्नाटक की जनता का झुकाव कांग्रेस की ओर जाता दिख रहा है। लेकिन कांग्रेस जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है और इस बढ़त को कांग्रेस कैसे ईवीएम तक ले जा पाती है। इसमें अभी भी संशय बरकरार है।

कांग्रेस के लिए मुश्किलें

कर्नाटक राज्य के दो बड़े नेताओं डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्दारमैया के बीच आपस में नहीं बनती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी दोनों नेताओं के बीच चले आ रहे मनमुटाव को साफ देखा जा सकता था। वहीं जब भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक पहुंची थी। तब डीके शिवकुमार ने सिद्दारमैया गुट पर भारत जोड़ो यात्रा के सफल होने में मदद नहीं करने का आरोप लगाया था।

कांग्रेस की दूसरी लिस्ट के बाद विवाद

कांग्रेस अब तक कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए 166 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। वहीं पार्टी के दोनों नेता अपने-अपने चहेतों को टिकट दिलाने के लिए आलाकमान से वकालत कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की दूसरी लिस्ट जारी होने के बाद विवाद होने लगा है। कई विधानसभा क्षेत्रों से बगावत के सुर देखने को मिलने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी में नेताओं के बीच चली आ रहे मनमुटाव का असर नतीजों में भी देखने को मिल सकती है।

मतभेद

राहुल गांधी ने भले ही भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक हाथ डीके शिवकुमार और दूसरा हाथ सिद्दारमैया का थामा था। इस दौरान राहुल ने यह संदेश देने का प्रयास किया था कि कर्नाटक में सब ठीक है। लेकिन इस दौरान दोनों नेताओं के बीच राहुल गांधी का हाथ था। ऐसे में अगर कांग्रेस की राज्य में सरकार बनने पर पार्टी डीके शिवकुमार को सीएम पद सौंपती है तो सिद्दारमैया इसे कैसे बर्दाश्त करेंगे। वहीं अगर सिद्दारमैया को फिर से सीएम की कुर्सी मिलती है तो डीके शिवकुमार आलाकमान से नाराज हो जाएंगे। हांलाकि आलाकमान की पहली पसंद शिवकुमार हैं। क्योंकि उन्होंने कई मौकों पर रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का नमूना भी पेश किया है।

खरगे कार्ड

डीके शिवकुमार ने ऐन मौके पर ट्रंप कार्ड खेल दिया है। इसका काट तो पूर्व सीएम सिद्दारमैया के पास भी नहीं होगा और डीके का यह सुझाव आलाकमान को भी पसंद आ सकता है। शिवकुमार का कहना है कि कर्नाटक में कांग्रेस सीएम पद के लिए मल्लिकार्जुन उपयुक्त हैं। क्योंकि वह सीनियर लीडर हैं। डीके शिवकुमार का कहना है कि मल्लिकार्जुन ने पार्टी के लिए बहुत कुछ किया है। ऐसे में यदि उनको राज्य का सीएम बनाया जाता है तो वह मल्लिकार्जुन खरगे के दिशा निर्देश में काम करेंगे। हांलाकि सिद्दारमैया ने इस पर कहा कि यदि मल्लिकार्जुन को सीएम बनाया जाता है तो पार्टी के सामने एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी कि पार्टी का अध्यक्ष कौन बनेगा।

कर्नाटक में मुश्किल में कांग्रेस

इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति ठीक वैसी है जैसे मंजिल और रास्ता दोनों पता हैं। लेकिन जिस ड्राइवर को वाहन ले जाना है। वह ड्राइवर ही बागी है। वहीं भाजपा चाहती है कि कर्नाटक में पूर्म बहुमत की सरकार बनें। वहीं लिंगायत समुदाय भी बीएस येदियुरप्पा के साथ है। क्योंकि वह इस समुदाय के लीडर हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस ने भी लिंगायत समुदाय को खूब रिझाया है। ऐसे में अब दोनों पार्टियों की नजर वोकलिग्गा वोटबैंक पर टिकी हुई हैं। लेकिन इन सब में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा द्वंद अपने नेताओं के बीच चली आ रही रार है। 

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