Karnataka Assembly Elections: कर्नाटक में JDS बनेगी किंगमेकर या लड़ेगी अपने अस्तित्व की लड़ाई, यहां समझें पूरा समीकरण

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कर्नाटक विधानसभा में जेडीएस की स्थिति चुनाव दर चुनाव गिरती जा रही है। ऐसे में जेडीएस एक बार फिर किंगमेकर बनेगी या अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी। जेडीएस की स्थिति को लेकर लंबे समय से यह सवाल राजनीतिक गलियारे में बना हुआ है।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों को लेकर चुनाव आयोग ने बुधवार यानि की 29 मार्च को आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की तारीखों का एलान कर दिया है। बता दें कि कर्नाटम में 10 मई को वोटिंग होगी और 13 मई को चुनाव के नतीजे घोषित होंगें। हालांकि कर्नाटक में असली लड़ाई तो भाजपा और कांग्रेस के बीच मानी जा रही है। लेकिन जेडीएस भी अपने पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। इस दौरान कौन सी राजनीतिक पार्टी किस पर भारी पड़ने वाली है। यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगें। लेकिन इससे पहले राज्य में जेडीएस की स्थिति और जातीय समीकरण को समझना जरूरी है।

किंगमेकर या अस्तित्व की लड़ाई

हालांकि कर्नाटक चुनाव में इस बार जेडीएस की स्थिति क्या होगी, इस पर भी बड़ा सवाल बना हुआ है। जेडीएस विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनेगी या फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी। राजनीतिक गलियारे में जेडीएस की स्थिति को लेकर लंबे समय से यह सवाल बना हुआ है। बता दें कि कुमारस्वामी भी खुद को इस स्थिति में रखना चाहते हैं कि एक बार फिर से राज्य में सरकार बनाने में उनका योगदान जरूर रहे। वहीं एचडी कुमारस्वामी 'पंचतंत्र' यात्रा के माध्यम से एक बार फिर जेडीएस को किंगमेकर बनाए जाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। 

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राज्य में JDS की स्थिति

एचडी कुमारस्वामी द्वारा जेडीएस को किंगमेकर बनाए जाने में सबसे ज्यादा भाजपा और कांग्रेस रोड़ा डाल रही हैं। क्योंकि कांग्रेस और भाजपा कोर वोटबैंक और वोक्कालिगा समुदाय पर अपनी नजरें बनाए हुए हैं। ऐसे में कुमारस्वामी के सामने अपने वजूद को बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। अब ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प होगा की जेडीएस इस बार के विधानसभा चुनाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी या फिर सत्ता की चाभी को अपने हाथ में रखेगी।

JDS कब बनी किंग मेकर

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने जनता दल से अलग होने के बाद साल 1999 में जेडीएस का गठन किया था। जेडीएस पिछले ढाई दशक में कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है। लेकिन यह पार्टी इतनी सीटें जरूर हासिल कर लेती है। जितने में उनके समर्थन के बिना राज्य में किसी भी पार्टी के लिए सरकार बनाना मुश्किल होता है। अलग-अलग समय पर जेडीएस अन्य राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के साथ सफलता का स्वाद चखती रही है। इसी के साथ ही देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी कर्नाटक के सीएम बनते रहे।

वहीं साल 2004 में जब कर्नाटक विधान सभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। इस दौरान भाजपा ने 79 सीटें और कांग्रेस ने 65 सीटें जीती थीं। वहीं इस दौरान जेडीएस ने किंगमेकर की भूमिका निभाते हुए 58 सीटें जीतीं। ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर कर्नाटक में सरकार बनाईं। लेकिन पौने दो साल के अंदर ही यह गठबंधन टूट गया। इसके साथ ही एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा से हाथ मिला लिया। इसके बाद साल 2018 में भाजपा कर्नाटक की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। जिसके बाद एक बार फिर जेडीएस किंगमेकर बनी थीं।

राज्य में कमजोर पड़ती जा रही JDS

कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति के बाद भले ही एचडी कुमारस्वामी की किस्मत बुलंदियों पर होती जा रही है। लेकिन चुनाव दर चुनाव राज्य में जेडीएस का ग्राफ गिरता जा रहा है। जेडीएस अब तक के विधानसभा चुनावों में सबसे बेहतर प्रदर्शन सिर्फ साल 2004 में ही कर सकी थी। इसके बाद जेडीएस की सीटें लगातार कम होती चली गईं। ऐसे में एक बार फिर जेडीएस के सामने अपना अस्तित्व बचाए रखने की चुनौती सामने है।

जातीय समीकरण 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक में कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है। इनमें से सबसे ज्यादा आबादी हिंदू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी है। इसके बाद मुस्लिम जिनकी आबादी 79 लाख यानी की 12.91 फीसदी है। वहीं 11 लाख यानी की 1.87 फीसदी ईसाई और 4 लाख यानी की 0.72 फीसदी जैन है।

लिंगायत समुदाय 

कर्ना्टक राज्य में लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय है। इसकी जनसंख्या राज्य में करीब 17 फीसदी के आसपास है। इसके बाद सबसे बड़ा समुदाय वोक्कालिगा, जिसकी आबादी 12 फीसदी है। फिर कुरुबा 8 फीसदी, एससी 17 और एसटी 18 फीसदी हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में सत्तारूढ़ बीजेपी अपने पूरे दम के साथ मैदान में उतरी है। वहीं इस बार कांग्रेस और जेडीएस भी अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। 

मुस्लिम वोट

राज्य की दलित आबादी के वोट सभी दलों में विभाजित होते हैं। लेकिन वोटरों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस अपनी ओर करने में कामयाब होती आई है। वहीं मुस्लिम वोट कांग्रेस और जेडीएस के बीच विभाजित हो जाता है। कांग्रेस और जेडीएस को वोक्कालिगा वोटरों का भी वोट मिलता है। लेकिन इस बार भाजपा इस वोटबैंक में भी सेंधमारी करने का प्रयास कर रही है। जहां जनता दल (एस) एक त्रिशंकु विधानसभा की उम्मीद लगा रही है। ताकि वह किंगमेकर की भूमिका को निभा सके। तो वहीं भाजपा पीएम मोदी की लोकप्रियता के जरिए राज्य में दोबारा वापसी की उम्मीद लगा रही है।

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