यौन उत्पीड़न का सबसे अहम घटक मंशा है, त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं: उच्चतम न्यायालय
न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदीकी तीन सदस्यीय पीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए कहा कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी अन्य कृत्य पॉक्सो कानून की धारा सात के अर्थ के तहत यौन उत्पीड़न होगा।
नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
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बंबई उच्च न्यायालय आदेश दिया था कि यदि आरोपी और पीड़िता के बीच ‘त्वचा से त्वचा का सीधा संपर्क नहीं हुआ’ है, तो पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।
न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदीकी तीन सदस्यीय पीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए कहा कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी अन्य कृत्य पॉक्सो कानून की धारा सात के अर्थ के तहत यौन उत्पीड़न होगा।
न्यायालय ने कहा कि कानून का मकसद अपराधी को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने कहा है कि जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकतीं। यह सही है कि अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकतीं।’’ न्यायमूर्ति भट ने इससे सहमति रखते हुए एक पृथक फैसला सुनाया।
उन्होंने ‘पॉक्सो’ कानून के तहत ‘स्पर्श’ शब्द के अर्थ की व्याख्या करने के लिए अंग्रेजी के लेखक लेविस कैरोल की ‘एलिस इन वंडरलैंड’ का हवाला दिया और कहा कि अपील के तहत दिये गये फैसले ने उन्हें इसकी कुछ पंक्तियां याद दिला दीं। न्यायमूर्ति भट ने 13 पृष्ठों के अपने फैसले में कैरोल को उद्धृत करते हुए कहा: ‘‘जब मैं एक शब्द का उपयोग करता हूं’’, हंपटी डंपटी एक तिरस्कारपूर्ण स्वर में कहा जाता है, ‘‘इसका मतलब है-ना तो अधिक ना ही कम।’’
उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि सवाल यह है कि क्या स्पर्श करने का एक अंतर्भूत अर्थ है जैसा कि एलिस ने कहा था, या क्या इसका मतलब सिर्फ ऐसा कुछ है जो न्यायाधीशों ने कहा कि इसका अर्थ है, ना ज्यादा, ना कम।
पीठ ने कहा, ‘‘यौन उत्पीड़न के अपराध का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है और बच्चे की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं। किसी नियम को बनाने से वह नियम प्रभावी होना चाहिए, न कि नष्ट होना चाहिए।
प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट करने वाली उसकी कोई भी संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून के मकसद को तब तक प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, जब तक उसकी व्यापक व्याख्या नहीं हो।’’
न्यायालय ने कहा कि यह पहली बार है, जब अटॉर्नी जनरल ने कोई अपील दायर की है। मामले में न्याय मित्र के रूप में अपराधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए, जबकि उनकी बहन वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से पेश हुईं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बार एक भाई और एक बहन भी एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। इससे पहले, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा था कि बंबई उच्च न्यायालय का विवादास्पद फैसला एक “खतरनाक और अपमानजनक मिसाल” स्थापित करेगा और इसे पलटने की जरूरत है।
अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग की अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रहे न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में पॉक्सो कानून के तहत एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के बिना “नाबालिग के वक्ष को पकड़ने को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।” बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने दो फैसले सुनाए थे।
फैसले में कहा गया था कि त्वचा से त्वचा के संपर्क के बिना नाबालिग के वक्ष को छूना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराध नहीं कहा जा सकता। फैसले में कहा गया था कि व्यक्ति ने कपड़े हटाए बिना बच्ची को पकड़ा,इसलिए इसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह भारतीय दंड विधान (भादंवि) की धारा 354 के तहत एक महिला का शील भंग करने का अपराध है।
उच्च न्यायालय ने एक सत्र अदालत के आदेश में संशोधन किया था, जिसने 12 साल की एक बच्ची का यौन उत्पीड़न करने के अपराध में 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी।
अभियोजन के मुताबिक बच्ची के साथ यह घटना नागपुर में दिसंबर 2016 को हुई थी, जब आरोपी सतीश उसे कुछ खिलाने के बहाने अपने घर ले गया था।
सत्र अदालत ने पॉक्सो कानून और भादंवि की धारा 354 के तहत उसे तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं।
बहरहाल, उच्च न्यायालय ने उसे पॉक्सो कानून के तहत अपराध से बरी कर दिया और भादंवि की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि यौन हमले की परिमें ‘‘शारीरिक संपर्क’’ ‘‘प्रत्यक्ष होना चाहिए’’ या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए।
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