Shaurya Path: Syria Crisis, Russia-Ukraine War, Israel-Hamas Conflict और Bangladesh से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि हमास इजरायली सैनिकों को गाजा में रहने की अनुमति देने पर सहमत हो गया है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह ने अमेरिकी नागरिकों सहित बंधकों की एक सूची भी सौंपी है, जिन्हें युद्धविराम समझौते के तहत मुक्त किया जाएगा।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह सीरिया के हालात, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष और बांग्लादेश के हालात से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. सीरिया के हालात को आप कैसे देखते हैं? विद्रोहियों की जीत और राष्ट्रपति के देश छोड़कर भागने से दुनिया में क्या संदेश गया है? एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि बशर अल असद का जो हश्र हुआ है वैसा ही कुछ अब ईरान के सर्वोच्च नेता का भी होने वाला है?
उत्तर- सीरिया में बशर अल-असद शासन के पतन से पूरे क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव के लिए एक रणनीतिक चुनौती पेश होगी। उन्होंने कहा कि 1979 में इस्लामिक गणराज्य के गठन के बाद से, दमिश्क तेहरान का प्रमुख रणनीतिक साझेदार रहा है। उन्होंने कहा कि सीरिया उस क्षेत्र में ईरान के लिए एक आवश्यक गलियारे के रूप में कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस साझेदारी ने ईरान को लेबनान तक पहुंच की सुविधा प्रदान की और तेहरान को शिया मिलिशिया हिजबुल्लाह को वित्तीय और सैन्य सहायता प्रदान करने की अनुमति दी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हाफ़िज़ अल-असद (1971-2000) के तीन दशक के शासन के दौरान शुरू हुए रिश्ते को हाफ़िज़ के बेटे बशर अल-असद के राष्ट्रपतित्व के दौरान मजबूती मिली। उन्होंने कहा कि असद और ईरान की सरकारों के बीच रणनीतिक संबंध का मुख्य रूप से सुन्नी अरब देशों द्वारा विरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि सीरिया अरब दुनिया का हिस्सा है, लेकिन अल-असद परिवार अलावित है, जो शियावाद का एक संप्रदाय है। उन्होंने कहा कि सात अक्टूबर 2023 के हमलों के जवाब में इज़राइल द्वारा गाजा पट्टी में अपना सैन्य अभियान शुरू करने के बाद से ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई है।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तेहरान ने पहले ही सीरिया के भीतर अपने सैन्य बलों में कटौती शुरू कर दी थी, जो उसके रणनीतिक आकलन पर आधारित था कि देश में कुछ हद तक स्थिरता लौट रही थी, जहां 2011 की शुरुआत में एक खूनी गृह युद्ध छिड़ गया था। उन्होंने कहा कि असद शासन के पतन के बाद अब ईरान के लिए इजराइल सीमा तक मैदानी इलाकों से पहुँचना बहुत मुश्किल हो जायेगा। उन्होंने कहा कि जहां तक सीरिया जैसा हश्र ईरान का भी होने का सवाल है तो इसके आसार काफी प्रबल नजर आ रहे हैं क्योंकि ईरान में बड़ी संख्या में लोग सर्वोच्च धार्मिक नेता खामेनेई और वहां की सरकार के फरमानों से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह महिलाएं लगातार अपने अधिकारों को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं वह दर्शाता है कि ईरान में भी विद्रोह की चिंगारी सुलग रही है। उन्होंने कहा कि जिस तरह विद्रोहियों ने असद शासन को गिरा दिया उससे ईरान में असंतुष्टों का मनोबल बढ़ा है। उन्होंने कहा कि लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि असद को तो फिर भी रूस ने पनाह दे दी लेकिन खामेनेई को भागना पड़ा तो उन्हें कहां पनाह मिलेगी? क्योंकि उन्होंने तो सभी से अपने संबंध बिगाड़ ही रखे हैं।
प्रश्न-2. यूक्रेन के राष्ट्रपति युद्ध का अंत करवाने के लिए अब दूसरों से सैन्य मदद मांगने की बजाय राजनय और कूटनीति के जरिये हल तलाश रहे हैं। क्या उनकी यह पहल सफल होगी?
उत्तर- यूक्रेन के राष्ट्रपति अब समझ चुके हैं कि युद्ध के लिए उन्हें आर्थिक और सैन्य मदद ज्यादा समय तक नहीं मिलने वाली है इसलिए वह बीच बचाव का रास्ता तलाशने में जुट गये हैं। उन्होंने कहा कि यह पहले से तय था कि इस युद्ध में समझौते के लिए आखिरकार यूक्रेन को ही मजबूर होना पड़ेगा और ऐसा लगता है कि वह घड़ी आ गयी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्राथमिकता भी यही है कि यह युद्ध समाप्त करवाया जाये ताकि इस पर हो रहा खर्च बंद हो। उन्होंने कहा कि अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने दावा किया था कि वह 24 घंटे के भीतर यूक्रेन में युद्ध समाप्त कर देंगे। उन्होंने कहा कि देखना होगा कि युद्ध समाप्त करवाने के लिए ट्रंप क्या कदम उठाते हैं।
प्रश्न-3. क्या इजराइल-हमास के बीच भी युद्धविराम संभव है? ट्रंप की चेतावनी के बाद ऐसी चर्चाएं शुरू हुईं हैं कि दोनों पक्षों के बीच बंधकों की रिहाई के लिए वार्ता जारी है।
उत्तर- सबको इंतजार 20 जनवरी का है जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालेंगे। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि हमास को बंधकों को छोड़ देना चाहिए नहीं तो बुरा हश्र होगा। उन्होंने कहा कि हमास ट्रंप के तेवरों को देखते हुए इस प्रयास में है कि किसी तरह कोई समझौता हो जाये वरना उसका पूरी तरह खात्मा निश्चित है। उन्होंने कहा कि हमास की पहली और दूसरी पंक्ति की लीडरशिप को इजराइल खत्म कर चुका है और उसने यदि बंधकों को नहीं छोड़ा तो बाकी हमास पदाधिकारियों का मारा जाना भी निश्चित है। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि हमास एक बड़े बदलाव के तहत इजरायली सैनिकों को गाजा में रहने की अनुमति देने पर सहमत हो गया है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थों के अनुसार, फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह ने अमेरिकी नागरिकों सहित बंधकों की एक सूची भी सौंपी है, जिन्हें युद्धविराम समझौते के तहत मुक्त किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे उम्मीद जगी है कि एक साल से अधिक की लड़ाई के बाद अंततः एक समझौता हो सकता है।
प्रश्न-4. बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार जारी है। विदेश सचिव ढाका की यात्रा भी कर आये लेकिन हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। क्या भारत इस स्थिति में है कि वहां सीधा दखल देकर हिंदुओं को बचा सके?
उत्तर- जब बांग्लादेश का गठन नहीं हुआ था तब पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जिस तरह पाकिस्तान की सेना और सरकार अत्याचार कर रही थी उस मुद्दे को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरी दुनिया के समक्ष रखा था लेकिन जब किसी ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी तो इंदिरा सरकार ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश का गठन कर दिया था। उन्होंने कहा कि यदि भारत के पड़ोस में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते रहे तो हम ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकते क्योंकि दुनिया हमसे पूछेगी कि हमने हिंदुओं को बचाने के लिए क्या किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हालात किस कदर खराब हैं इसका अंदाजा मानवाधिकार संगठन ‘सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लुरलिज्म एंड ह्यूमन राइट्स’ (सीडीपीएचआर) की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है जिसमें अगस्त 2024 में बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद अल्पसंख्यकों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में कट्टरवाद में वृद्धि पड़ोसी भारत के लिए संभावित सुरक्षा खतरा पैदा करती है इसलिए हमें बेहद सतर्क रहने की जरूरत है।
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