Prajatantra: West Bengal में नया नहीं चुनावी हिंसा का दौर, Left के रास्ते पर ही TMC!
8 जुलाई को जो मतदान हुआ, उस दौरान पश्चिम बंगाल में आधिकारिक तौर पर 15 लोगों की मौत हो गई। हालांकि, अलग-अलग राजनीतिक दलों के दावे अलग-अलग है। कोई मौत के आंकड़े को 45 बता रहा है तो कोई 40 बता रहा है।
पश्चिम बंगाल में चाहे किसी भी स्तर का चुनाव हो वहां से हिंसा की खबर आ ही जाती है। पश्चिम बंगाल में हाल में ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हुए। इसके नतीजे भी आ चुके हैं। हालांकि इस चुनाव के दौरान भी जबरदस्त हिंसा हुई। बड़ा सवाल यही है कि आखिर पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान हिंसा हावी क्यों हो जाती है? पक्ष विपक्ष की राजनीति में क्या आमजन निशाना बनते हैं? 8 जुलाई को जो मतदान हुआ, उस दौरान पश्चिम बंगाल में आधिकारिक तौर पर 15 लोगों की मौत हो गई। हालांकि, अलग-अलग राजनीतिक दलों के दावे अलग-अलग है। कोई मौत के आंकड़े को 45 बता रहा है तो कोई 40 बता रहा है।
इसे भी पढ़ें: Prajatantra: Farooq Abdullah हो या Ghulam Nabi Azad, UCC का विरोध क्यों कर रहे Jammu-Kashmir के नेता
जारी है हिंसा की राजनीति
हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव में इस स्तर की हिंसा हुई है। इससे पहले 2013 और 2018 में भी पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा हुई थी जिसमें गोलीबारी, बमबारी, आगजनी, पत्थरबाजी और शरीर के अंगों को काटने की घटनाओं को अंजाम दिया गया था। 2018 में भी पंचायत चुनाव के दौरान 13 लोगों की मृत्यु हुई थी। 2013 में भी कई लोगों की मृत्यु हुई थी। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह घटनाएं केवल ममता बनर्जी की ही सरकार में हुई है। इससे पहले 34 सालों तक वामपंथी शासन रहा। ममता ने 2011 में वामपंथी शासन को उखाड़ फेंका था। 2003 और 2008 में वामपंथी सत्ता के दौरान भी बंगाल में क्रमशः 70 और 36 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि ऐसा नहीं है कि हिंसा में केवल एक पार्टी शामिल रहती है। सभी पार्टियां अपने अपने हिसाब से कार्यकर्ताओं को आक्रामक बनाने की कोशिश करते हैं। अपने अपने पक्ष में मतदाताओं को साधने की कोशिश में भी पार्टियां हिंसा के रास्ते पर चली जाती हैं।
बीजेपी की एंट्री
राजनीति में केंद्रीय ध्रुव बनी भाजपा ने हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल में प्रवेश किया। बनर्जी वर्तमान में मुख्यमंत्री के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल पूरा कर रही हैं, और बंगाल में राजनीतिक अशांति अब टीएमसी और भाजपा समर्थकों के बीच विवादों की विशेषता बन रही है। 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बोल रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि 300 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता मारे गए। उन्होंने इन कथित राजनीतिक हत्याओं के लिए टीएमसी को जिम्मेदार ठहराया। हालाँकि, टीएमसी ने इस आरोप का खंडन किया। आज भी हिंसा को लेकर भाजपा तृणमूल कांग्रेस पर जबरदस्त तरीके से हमलावर रहती हैं। हाल में हुई हिंसा को लेकर भाजपा ने एक कमेटी बना दी है। इसके अलावा भाजपा का साफ तौर पर दावा है कि चुनाव और हिंसा आज बंगाल में पर्यायवाची बन चुके हैं। पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या हो रही है। स्मृति ईरानी ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए आरोप लगाया कि वह (कांग्रेस) उस तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ गठबंधन कर रही है, जो पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में लोगों को मौत के घाट केवल इसलिए उतार रही है, क्योंकि वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग करने के लिए मतदान करना चाहते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि यदि संवेदनशील स्थानों पर केंद्रीय (सशस्त्र पुलिस) बलों को तैनात किया जाता, तो इतनी हिंसा नहीं होती तथा लोगों ने बिना किसी भय के स्वतंत्र रूप से अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया होता। उन्होंने कहा, ‘‘केंद्रीय बलों को जानबूझकर संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात नहीं किया गया।’’
लेफ्ट भी हमलावर
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की संलिप्तता थी। माकपा के शीर्ष नेता ने यह आरोप उस वक्त लगाया है जब कुछ दिनों पहले ही पटना में विपक्षी दलों की बैठक में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी और माकपा महासचिव येचुरी एकसाथ मौजूद थे। हालिया पंचायत चुनाव का उल्लेख करते हुए येचुरी ने आरोप लगाया कि टीएमसी की सरकार के तहत चुनाव में हिंसा होना आम बात हो गई है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की पश्चिम बंगाल इकाई के सचिव मोहम्मद सलीम ने सोमवार को आरोप लगाया कि राज्य पुलिस और केंद्रीय बल आठ जुलाई के पंचायत चुनावों के दौरान मतदाताओं की सुरक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहे। सलीम ने कहा कि चुनावी हिंसा में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उपद्रवी भी मारे गए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह अपराधियों की मदद करने की उसकी राजनीति के कारण हुआ।
कांग्रेस में कन्फ्यूजन
पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी जबरदस्त तरीके से जमीन पर मेहनत कर रहे थे। इस दौरान वे अपने कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे और तृणमूल पर जबरदस्त तरीके से निशाना साधा। हिंसा को लेकर वह ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर जबरदस्त तरीके से हमलावर रहे। उन्होंने कई याचिकाएं कोर्ट में भी डाली है। हालांकि, ऐसा लग रहा है कि 2024 का ख्वाब देखने वाला कांग्रेस आलाकमान प्रदेश कार्यकर्ताओं को लेकर उतना गंभीर नहीं है। तभी तो शीर्ष स्तर पर यह कहा जा रहा है कि लोकतंत्र में हिंसा की कोई जगह नहीं और राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस हिंसा भड़काने वालों के साथ खड़ी नहीं है। पार्टी की ओर से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि हम नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। लेकिन पार्टी के ही वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी की निगरानी में हो रही घटनाएं भयावह और अक्षम्य में है। अब जो हो रहा है वह हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
इसे भी पढ़ें: Prajatantra: यू ही नहीं पेशाब घटना के पीड़ित के शिवराज ने धोए पैर, चुनावी गणित से है इसका कनेक्शन
तृणमूल का पलटवार
वहीं, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस साफ तौर पर कह रही है कि राज्य में कांग्रेस, वाम दल और भाजपा का गठबंधन है। ममता बनर्जी कई मौकों पर कह चुकी है कि यह तीनों दल मिलकर राज्य में शांति व्यवस्था शराब करना चाहते हैं। तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि विपक्षी हमारे ऊपर हिंसा के आरोप लगा रहे हैं लेकिन हम ऐसा क्यों करेंगे? हम किसी भी कीमत पर अपने ही राज्य को बदनाम क्यों करेंगे?
पश्चिम बंगाल में हिंसा की घटनाएं हुई, कई लोगों की मौत हुई। लेकिन भाजपा पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाने वाले तमाम दल खामोश हैं। आने वाले दिनों में 17-18 जुलाई को यह सभी दल एक साथ में बैठेंगे। लेकिन इस बात की उम्मीद कम ही है कि इनमें से कोई भी दल ममता बनर्जी से पश्चिम बंगाल में हिंसा को लेकर कोई सवाल करेगा। अपने-अपने तरीके से अपने पक्ष के मुद्दे को हर राजनीतिक दल उठाते हैं। जो मुद्दा उनके खिलाफ जा सकता है, उस पर खामोश रहना ही वह बेहतर समझते हैं। हालांकि, देश की जनता तमाम मुद्दों को समझते हुए अपना फैसला करती है। यही तो प्रजातंत्र है।
अन्य न्यूज़