Karnataka BJP Challenge: दक्षिण भारत में अपना किला मजबूत करने में कामयाब होगी बीजेपी, ऐसे बन रहे समीकऱण
कर्नाटक चुनावों में बीजेपी कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। साल 2008 में भाजपा का यहां से सबसे अच्छा प्रदर्शन था। वहीं इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा 150 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है। हालांकि दोबारा सत्ता में वापसी करने के लिए पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने सियासी दंगल को फतह करने की तैयारी शुरू कर दी है। फिलहाल राज्य में भाजपा सत्ता पर काबिज है। ऐसे में भाजपा के सामने एक बार फिर सत्ता में वापसी को लेकर बड़ी चुनौती बनी हुई है। बता दें कि कर्नाटक में भाजपा का फिर से सरकार बनाना काफी मायने रखता है। क्योंकि साल 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। ऐसे में भाजपा कर्नाटक से होकर ही दक्षिणी राज्यों में अपने विजय रथ को आगे बढ़ा सकती है। दक्षिण भारत में कर्नाटक ही एकमात्र भाजपा का गढ़ है। इस बार भाजपा का कर्नाटक में 150 सीटें जीतने का टारगेट है।
सत्ता की चाभी
कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें है। वहीं सत्ता में आने के लिए 113 सीटों की आवश्यकता होती है। विधानसभा चुनाव के नजरिए से कर्नाटक को 6 भागों में बांटा जा सकता है। जिनमें से हैदरबाद की सीमाएं जोड़ने वाला क्षेत्र हैदराबाद कर्नाटक में 40 सीटें, बॉम्बे कर्नाटक यानी महाराष्ट्र से लगे इलाकों में 50 सीटे, मैसूर के इलाके में 65 सीटें, तटीय क्षेत्रों में 19 सीटें, बेंगलुरु में 28 सीटें और सेंट्रल कर्नाटक में 22 सीटें आती हैं।
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साल 2018 में भाजपा बनी थी सबसे बड़ी पार्टी
साल 2018 के चुनावों में भाजपा ने 104 सीटें जीतीं थीं और वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस दौरान पार्टी को 36.35 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन साल 2013 के चुनावों में भाजपा को सिर्फ 40 सीटों में ही संतोष करना पड़ा था। अगर 2013 के मुकाबले में देखा जाए तो साल 2018 में भाजपा के वोटबैंक में दोगुना इजाफा हुआ था। लेकिन त्रिकोणीय समीकरण के कारण भाजपा बहुमत हासिल करने में नाकामयाब हो गई थी।
ऐसे बदले सियासी समीकरण
कर्नाटक की राजनीति में पिछले पांच साल में बहुत कुछ बदल गया है। साल 2018 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनीं तो बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में राज्य में सरकार बनीं। लेकिन बहुमत के अभाव के कारण 7 दिनों में ही येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद राज्य में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई। हालांकि गठबंधन की सरकार भी महज 14 महीने टिक पाई। ऐसे में भाजपा एक बार फिर सरकार बनाने में सफल रही। साल 2019 को बीएम येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के सीएम बनें।
2021 में बोम्मई बने नए सीएम
साल 2019 में भाजपा की सरकार बनने के बाद राज्य में जनाधार बरकरार रख पाना इतना आसान नहीं था। दो साल के अंदर ही येदियुरप्पा की जगह बसवराज सोमप्पा बोम्मई को राज्य की कमान सौंपनी पड़ी। बीजेपी नेता बसवराज सोमप्पा बोम्मई लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी दक्षिण भारत के किसी राज्य में पहली बार सरकार बनाने में बीएस येदियुरप्पा के कारण कामयाब हुई थी। लेकिन भाजपा भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर किसी नए राज्य को कमान सौंपना चाहती थी।
वोक्कालिगा वोटर
कर्नाटक में लिंगायत के बाद दूसरे नंबर पर वोक्कालिगा बड़ा समुदाय है। दक्षिण कर्नाटक के जिले जैसे टुमकुर, चिकबल्लापुर, मंड्या, हसन, मैसूर, बेंगलुरु (ग्रामीण), कोलार और चिकमगलूर में वोक्कलिगा समुदाय के वोटरों का दबदबा है। राज्य में इनकी आबादी 16 फीसदी है। लेकिन यह जेडीएस के परंपरागत समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा द्वारा लिंगायत को ज्यादा तरजीह देने के कारण वोक्कालिगा समुदाय पार्टी से खफा रहता है। ऐसे में भाजपा जेडीएस के साथ गठबंधन कर वोक्कालिगा समुदाय के दबदबे वाले पुराने मैसूर क्षेत्र की 89 सीटों के चुनावी समीकरण को साध सकती है।
लिंगायत समुदाय की नाराजगी
लिंगायत समुदाय में बीजेपी का जनाधार काफी मजबूत है। लेकिन साल 2021 में येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाए जाने के बाद लिंगायत समुदाय भाजपा से खासा नाराज है। साथ ही लिंगायत समुदाय को यह भी चिंता है कि बीजेपी जीत के बाद किसी गैर-लिंगायत को राज्य की सीएम न बना दें। बता दें कि सीएम बसवराज बोम्मई की इस समुदाय में पकड़ा इतनी मजबूत नहीं है। ऐसे में भाजपा को इस वोटबैंक को साधने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी।
दलित मतदाता
कर्नाटक में दलित मतदाता की आबादी 23 फीसदी है। इस समुदाय के लिए यहां विधानसभा की 35 सीटें आरक्षित है। पिछली बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाने का योगदान दलितों का भी रहा था। इस समुदाय का 40 फीसदी वोट बीजेपी को मिला था। इससे साफ जाहिर होता है कि एक बार फिर सत्ता में वापसी करने के लिए बीजेपी को दलितों का सहयोग चाहिए होगा। लेकिन कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर बीजेपी के इस वोटबैंक में सेंध लगाने का प्रयास किया है।
मुस्लिम और आदिवासी वोटर
राज्य में अनसूचित जनजाती की आबादी करीब 7 फीसदी के आसापस है। उनके लिए 15 सीटें आरक्षित हैं। पिछले चुनावों में भाजपा को इनका साथ मिला था। ऐसे में भाजपा को अपना किला मजबूत करने के लिए आदिवासी वोटबैंक को बंटने से बचाना होगा। इसके अलावा राज्य में मुस्लिम आबादी 12 फीसदी है। कई सीटों पर मुस्लिम वोटर चुनाव जिताने और नतीजे पटलने की ताकत रखते हैं।
मुस्लिम वोटबैंक पर कांग्रेस की पकड़ काफी मजबूत है। लेकिन इस बार AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी कर्नाटक के सियासी जंग में उतर रही है। ऐसे में कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगने का फायदा सीधे तौर पर भाजपा को हो सकता है। इसके अलावा भाजपा की नजर कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी कलह पर भी बनी हुई है। कांग्रेस के दो बड़े नेता पूर्व सीएम एस सिद्धारमैया और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष डीके शिव कुमार के बीच पिछले कुछ सालों से रार जारी है। ऐसे में बीजेपी इसका भी फायदा उठा सकती है।
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