पारिवारिक समृद्धि की राह पर (व्यंग्य)
पतियों ने, ‘वर्क फ्रॉम होम योजना’ के तहत बहुत मेहनत की, खाना बनाना, कपडे धोना, सुखाना व इस्त्री करना भी सीखा। पहले पत्नी के प्रेस किए कपड़े पसंद नहीं आते थे अब दोनों के करते हैं। ससुराल से मिले, पसंद न आने वाले वस्त्र खुद ही अटैची से निकालकर पहनने लगे हैं।
कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया है और निरंतर सिखा भी रहा है। इसने इंसान की अनेक गलत आदतें छुड़वा दी और अनुशासन जैसी बढ़िया आदत उसकी ज़िंदगी में स्थापित कर दी। इसके मद्देनज़र मैं अब कोरोना के साथ जी का प्रयोग करना चाहता हूं। जब हम दिल खोलकर कोरोनाजी के साथ रहना, जीना व खाना पीना सीख जाएंगे तो पाएंगे कि हमारी पारिवारिक समृद्धि में नयापन आया है। तब पति और पत्नी के संबंधों में काफी बदलाव आ चुके होंगे। आपसी, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आर्थिक रिश्तों की नई शाखाएं विकसित हो चुकी होंगी। सच कहूं तो मेरी पत्नी, मेरा ‘पति’ बन चुकी होगी और मैं उनकी ‘पत्नी’।
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अभी शायद कोई न माने लेकिन ऐसे बदलाव दूसरे दम्पतियों में निश्चित ही आने वाले हैं। संजीदा मूल्यांकन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि पत्नियों ने पति की तरह बात करनी शुरू कर दी है। अधिकांश पत्नियों को स्वामीभक्त माना जाता रहा और जो पति, पत्नी की बात मानते रहे उन्हें जोरू का गुलाम कहा गया। लेकिन ऐसा तब नहीं होगा क्यूंकि पत्नियों का विविध महत्त्व स्थापित हो चुका होगा। वास्तव में कोरोनाजी ने ही पतियों को बहुत कुछ क्या, हर कुछ सिखा दिया हुआ, वरन ये लोग कहां सीखने वाले थे।
पतियों ने, ‘वर्क फ्रॉम होम योजना’ के तहत बहुत मेहनत की, खाना बनाना, कपडे धोना, सुखाना व इस्त्री करना भी सीखा। पहले पत्नी के प्रेस किए कपड़े पसंद नहीं आते थे अब दोनों के करते हैं। ससुराल से मिले, पसंद न आने वाले वस्त्र खुद ही अटैची से निकालकर पहनने लगे हैं। दफ्तर में बैठे-बैठे पढ़ाई लिखाई भूल गए थे अब बच्चों को पढ़ाते हुए समझ आ रही है। हिंदी स्कूल में, अंग्रेजी व्याकरण की गलतियाँ करते थे, दफ्तर में बॉस अंग्रेजी में डांटते हुए, गलतियां ठीक करते थे, उनकी डांट अच्छी तरह पचानी पड़ती थी। पतियों ने पुरानी परिचित महिलाओं के नंबर डिलीट करते देर नहीं लगाई।
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सैर करने जाने की अनुमति मिली तो मास्क लगाए पति पत्नी एक दूसरे का हाथ थामकर धीरे धीरे टहलने लगे। पहले ज्यादा पत्नियां नौकरी नहीं करती थी अब उनमें गज़ब का आर्थिक आत्मविश्वास आ गया है और आत्मनिर्भरता की बातें भी खूब करती हैं। फोन पर दूसरों को समझाते हुए कहती है कि नौकरी कर सकती हूं, हालांकि उन्हें पता नहीं है कि रोज़गार की गलियां कितनी तंग हो गई हैं। पहले उन्हें मोबाइल चलाना अच्छे से नहीं आता था अब टप्पू से पूरा सीख लिया है। पिछले कई महीनों से उन्होंने न ज्यादा खाया और न ही खाने दिया, दोनों ने रोजाना व्यायाम की आदत डाल ली और वज़न बढ़ने नहीं दिया । सुविधाएं, दुविधाएं बनने लगी थी अब दुविधा अच्छे दिन ला रही है । कोरोनाजी ने वास्तव में नए नए अवसरों के द्वार खोल दिए, उनके लिए धन्यवाद तो बनता है ।
संतोष उत्सुक
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