शिक्षा के नए ख़्वाब (व्यंग्य)
अब मातृभाषा का आधार सुदृढ होने से सुनिश्चित है कि नेताओं, अध्यापकों व सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही जाया करेंगे क्यूंकि निजी स्कूलों को बाध्य करने में आर्थिक राजनीति आड़े आ सकती है। संकाय का अंतर खत्म होने से जातिवाद खत्म और एकतावाद शुरू होग।
शैक्षिक बस्ते को बदलने की कोशिश चंद दिनों में सफल होने वाली है। बदलाव पहले कागजों पर ही लाया जाता है लेकिन समय चालू होने के कारण बदलते, संवरते, टिकते हुए काफी कुछ अदल बदल जाता है। हिंदी प्रेमियों के बच्चों को पैदा होते ही विदेशी भाषा नहीं सीखनी पड़ेगी बलिक कई साल तक पढ़ाई मातृभाषा में होगी। बस ज़रा संशय है, कहीं बाज़ार नाराज़ न हो जाए। कितना सकारात्मक है कि घर की भाषा में बच्चा पांचवीं पास कर लेगा। वैसे भी आजकल बचपन लौट आया है और घर पर ही है। हमारे अनेक अध्यापकों को हिंदी का इंजेक्शन लगवाना पड़ेगा ताकि जिनको अंग्रेजी में अवकाश प्रार्थना पत्र लिखना नहीं आता, अपनी भाषा लिख सकें।
इसे भी पढ़ें: टीआरपी की यह कैसी होड़ है ? (व्यंग्य)
अब मातृभाषा का आधार सुदृढ होने से सुनिश्चित है कि नेताओं, अध्यापकों व सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही जाया करेंगे क्योंकि निजी स्कूलों को बाध्य करने में आर्थिक राजनीति आड़े आ सकती है। संकाय का अंतर खत्म होने से जातिवाद खत्म और एकतावाद शुरू होग। कला संकाय द्वारा विज्ञान वालों को अपने बराबर मान लेने का स्वप्न सच हो जाएगा। कला विषय पढ़ा व्यक्ति विज्ञान विषय पर भाषण देगा और चैनल चर्चाओं में आमंत्रित किया जाएगा। बस्ते का बोझ चाहे कम न हो, नौनिहालों को मानसिक रूप से हल्का फुल्का महसूस करवाने का ख़्वाब तो उगा दिया। बुनियादी साक्षरता पिलाकर उनका मौलिक ज्ञान बढा दिया जाएगा, बचपन में खाना व दवाई मिले न मिले। राष्ट्रीय स्तर पर संजीदा संकल्प लेकर अध्यापकों को प्रतिबद्धता इंजेक्शन लगने वाले हैं। यह तारीफ़ लायक है कि उच्च शिक्षा की नियमावलियां भारी न होंगी लेकिन हमेशा की तरह उन्हें सख्ती से लागू किया जाएगा, हमारे कठोर नरम कानून की तरह जिसे संजीदगी से लागू किया जाता है। अत्याधिक बुद्धिमान, प्रतिभावान, प्रगतिशील, निस्वार्थ, कर्मठ व ईमानदार अध्यापकों का आविष्कार करने का भी स्वप्न है, नहीं तो जैसे अध्यापक होंगे वैसे ही विद्यार्थी और वैसे ही भविष्य के अध्यापक। शिक्षकों की शिक्षा का स्वप्न देखना जरूरी है ताकि वे हिंदी को हिंदी में पढ़ा सकें। अच्छा सपना है कि शिक्षा नीति, विषय, योजना और आर्थिकी, राजनीति की जेब से बाहर होंगी, कोचिंग ट्यूशन देने वाले व्यक्तियों और संस्थानों की रोजीरोटी चली जाएगी, फर्जी डिग्रियों का कारोबार रुक जाएगा, ऐतिहासिक संस्कृति वापिस आ जाएगी. क्या बाज़ार परेशान होने का ख़्वाब देख रहा है।
इसे भी पढ़ें: बाज़ार सिखा देता है (व्यंग्य)
हम पुराने ज़माने में छटी क्लास में एबीसीडी करते थे लेकिन सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक सांचों में ढल जाने के कारण न अंग्रेजी सीख सके न हिंदी। तबादला नीति के स्वस्थ बीज विकसित करने का ख़्वाब भी है लेकिन फिर कर्मचारी नेता, राजनीतिज्ञ और तबादला व्यवसायी क्या करेंगे। हां स्कूलों में उच्च कोटि के मास्क और सेनीटाइज़र सप्लाई करने का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। सभी ख़्वाब नए उत्कृष्ट अंदाज़ में, वातानुकूलित, साफ़ सुथरे, कोरोना रहित कक्ष में बैठे समझदार, उच्च शिक्षित, योग्य व्यक्ति द्वारा देखे गए हैं। यह सुनिश्चित हो चुका है कि ख्वाब सच साबित करने के लिए बेहद अनुशासनात्मक, रचनात्मक व गुणवत्तापरक रास्ता चुना जाएगा। सुना है फिजिक्स, मैथ व कैमिस्ट्री पढ़ाने वाले अपने बच्चों के उज्ज्वल कमाऊ कैरियर निर्माण के लिए भविष्यवक्ताओं के पास जाना छोड़ देंगे। ख्वाबों की दुनिया बहुत आकर्षक होती है।
- संतोष उत्सुक
अन्य न्यूज़