तेंदुआ पहुंचा अदालत (व्यंग्य)
चलो मान लिया कि इंसान ने विकासजी की सोहबत में आकर अपना व्यवहार काफी बदल दिया है। कई मायनों और मामलों में वह जानवरों से आगे निकल गया है। इसका यह मतलब तो नहीं कि तेंदुए, चीते या हाथी भी अपना व्यवहार बदल लें।
इन जानवरों की तमीज़ भी खत्म होती जा रही है। ख़ास तौर पर तेंदुओं की। जब देखो इस या उस शहर में घुसने लगे हैं। पिछले दिनों गाज़ियाबाद कोर्ट में आ गया। दर्जनों बंदे ज़ख्मी कर दिए, हालांकि गाज़ियाबाद में तो तेंदुओं से तेज़ बंदे रहते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में तेंदुओं का दुर्व्यवहार, वहां के बाशिंदों, बकरियों व दूसरे जानवरों की जान लेकर भी नहीं रुकता। यह अच्छी बात तो नहीं है। जानवरों को शरीफों की तरह रहना चाहिए, इंसानों की तरह उदंड नहीं होते जाना चाहिए।
चलो मान लिया कि इंसान ने विकासजी की सोहबत में आकर अपना व्यवहार काफी बदल दिया है। कई मायनों और मामलों में वह जानवरों से आगे निकल गया है। इसका यह मतलब तो नहीं कि तेंदुए, चीते या हाथी भी अपना व्यवहार बदल लें। ठीक है, अब जंगल कम रह गए हैं, जानवरों को यह मानकर कि ऐसा ही होना था, बचे खुचे जंगलों में रहना सीख लेना चाहिए। यह अधिकार विकासजी के परम मित्र इंसान के पास रहेगा कि जंगल उजाड़े, जहां मर्ज़ी बस्ती बसाए। समझ में नहीं आता तेंदुए भी क्यूं शहर पहुंचने लगे हैं। उनको लगता होगा कि शहर अब जंगल हैं। इंसानी नफरत, हिंसा, द्वेष और बदले के लाखों मुकदमे, बरसों से इन जंगलों में फंसे पड़े हैं।
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कुछ समय पहले तेंदुआ हिमाचल स्थित हाई कोर्ट परिसर में आया, काफी देर तक धूप सेंकी तब गया। वह कोर्ट में उपस्थित क़ानून के रक्षकों को, सही बात की वकालत करने वालों को इशारों में काफी कुछ कह गया। पता नहीं उसका दर्द समझा गया या नहीं। अब फिर से कोर्ट परिसर में आकर तेंदुए ने अपने अधिकारों की वकालत तो की होगी। कुछ स्पष्ट सन्देश देने के प्रयास किए गए होंगे। उसने ज़रूर समझाया होगा कि वह अभी भी सभ्य माने जाने वाले इंसानों से बहुत परेशान है। उसकी अधिकृत नैसर्गिक रिहाइश पर अनाधिकृत कब्ज़ा किया गया है। तेंदुआ न्यायपालकों से कहने आया होगा कि उसके बारे में अब तो सोचा जाए।
लेकिन इंसानों के पास तो उसके केस को ‘हैंडल’ नहीं ‘मिसहैंडल’ करने वाले उपाय है। उन्हें लगा होगा यह तेंदुआ भी किसी बदमाश की तरह, डराने का तमंचा लेकर कोर्ट परिसर में घुस आया है। न्याय पसंद इंसानों को ज़ख्मी कर रहा है। उसे पकड़कर सलाखों के पीछे भेजो। जानवर प्रकृति के प्रतिनिधि हैं। उन्हें अपनी सीमाओं से बाहर नहीं आना चाहिए। इंसान अपने मनोरंजन, पर्यटन, सैर सपाटे के लिए वन्य जीवन संरक्षण पार्क, अरण्य को घुमक्कड़ी की जगह बना सकता है। कह सकता है वन्य जीव प्रजातियां बचा रहा। उसे चिड़िया घर, सफारी चाहिए। उसे फर्क नहीं पड़ता अगर उसके प्रयास विफल हो जाएं। वन्यजीवों के स्वाभाविक जीवन पर बुरा असर पड़े, प्रजनन क्षमता घट जाए, बीमारियां घेर लें।
पर्यावरण कार्यालय सिर्फ एक ईमारत का नाम है जहां से विज्ञापन दिए जाते हैं। तेंदुआ जानता है, स्थानीय तेंदुए भुलाए जा रहे और विदेशी चीते लाए जा रहे।
आदमी का चरित्र तो निरंतर विकसित होते हुए बदलते रहना है। अधिक भ्रष्टाचारी, बेईमान, चतुर, स्वार्थी, अशालीन होते जाना है। यह स्वीकृत गुण यदि जानवर ग्रहण कर लेंगे तो सृष्टि का क्या होगा। यह सकारात्मक बदलाव तो नहीं होगा।
तेंदुआ निश्चित ही फरियाद नहीं फसाद लेकर आया होगा।
- संतोष उत्सुक
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