ईश्वर ने कहा... (व्यंग्य)
ईश्वर बोले, ‘पथभ्रष्ट लोग ऐसे नहीं सुधरते, उन्हें सीधा करने के लिए, नफरत और कुराजनीति खत्म करने के लिए नई महाभारत रचनी पड़ती है। लेकिन इसके लिए मैं इस बार वहां नहीं जाउंगा, वहां माहौल बहुत खराब है, जो भी होना चाहिए, होकर रहेगा।
ईश्वर, विश्राम शैय्या से उठे और खूबसूरत, सुगन्धित फूलों वाले हरे भरे उपवन में टहलने लगे। पक्षियों की चहचहाहट के बीच, साथ चल रही पत्नी ने कहा, ‘संसार जिस दुविधा से गुज़र रहा है आपको नहीं लगता कि विश्वरक्षक के रूप में आपको पुकारा जा रहा है। कभी आपने ही तो कहा था कि जब जब धरतीवासी परेशान होंगे, पाप बढ़ेंगे तो मैं मानवता की रक्षा एवं सुकर्मों की पुनर्स्थापना के लिए अवतार लूंगा।’ ईश्वर ने जवाब दिया, ‘मैंने मानव को सांकेतिक रूप से हमेशा समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने दिमाग के नकारात्मक हिस्से का ज्यादा प्रयोग करता आया है। वह एक बिगडैल पशु की तरह व्यवहार करने लगा है। घटिया राजनीति विश्वस्तर पर नित नए पैंतरे दिखा रही है। एक राष्ट्राध्यक्ष दूसरे राष्ट्राध्यक्ष को आर्थिक रूप से समाप्त करने के प्रयासों में व्यस्त है। इतने विकट समय में सदभाव एवं सहायता की ज्यादा ज़रूरत है लेकिन आपसी दोषारोपण कर वर्चस्व स्थापित करने की जंग बढती जा रही है जो खत्म होती नहीं दिखती। उन्हें लोकसेवा करनी पड़ रही है लेकिन स्वार्थ, भ्रष्टाचार और धर्म अपना खेल खेल रहे हैं। आपको नहीं लगता है कि अब दुनिया के नवीनीकरण का समय आ गया है।’
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पत्नी ने पूछा ‘तो क्या मुसीबत की इस घड़ी में आप मदद नहीं करेंगे।’ ईश्वर ने कहा, 'मैं इन दुनियावासियों से प्रसन्न नहीं हूं। इंसानियत को दुखी करने में इंसान ही सबसे आगे है। इष्टपूजा के नाम पर बनाई गई इमारतें भी तो मानव ने अपनी इच्छापूर्ति के लिए बनाई हैं। असीमित खजाना पूजा घरों में जकड़ा हुआ है जिनके बाहर अंधी आस्था व बहरे अंधविश्वास का पहरा है और समाज की आर्थिकी डांवाडोल है। क्या जाति, सम्प्रदाय, धर्म, अर्थ बारे मेरी बात कोई सुनने, समझने को तैयार है। अगर दुनियावाले प्रकृति के पांच तत्वों, पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु का सांमजस्य बिठाए रखते तो मानव जीवन संतुलित रहता। इनके साथ इंसान ने जी भर कर मनमानी की है। प्रकृति ने संसार में फिर से पर्यावरणीय संतुलन लाना शुरू कर दिया है लेकिन मानव अपनी बिगड़ी प्रवृति के कारण महामारी के दौरान भी अनुशासित नहीं रहना चाहता। मौत उसके सामने खड़ी है और वह जमाखोरी कर रहा है, ज्यादा लाभ कमाने की फिक हो रही है उसे। हैरान हूं, जिन लोगों का काम सुरक्षा बनाए रखना, स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना है उन्हें ज़ख़्मी किया जा रहा है।’
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‘गौर से देखा जाए तो इनमें से अधिकांश लोग लॉकडाउन की अवधि समाप्त होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं ताकि पुरानी लीक पर भागना शुरू कर सकें। उनके कुत्सित दिमाग में कई नई योजनाएं पक रही हैं। तालाबंदी अनुशासन का ही एक रूप है जो मेरे विचार से इस संसार में हमेशा रहना चाहिए ताकि सृष्टि की यह रचना बनी रहे’ ईश्वर ने कहा। पत्नी ने प्रश्न किया अगर मानव नहीं सुधरा तो, ईश्वर बोले, ‘पथभ्रष्ट लोग ऐसे नहीं सुधरते, उन्हें सीधा करने के लिए, नफरत और कुराजनीति खत्म करने के लिए नई महाभारत रचनी पड़ती है। लेकिन इसके लिए मैं इस बार वहां नहीं जाउंगा, वहां माहौल बहुत खराब है, जो भी होना चाहिए, होकर रहेगा। अब दुनिया वालों को सीख देना लाज़मी हो गया है।’ पत्नी समझ गई थी कि अब ईश्वर ने शस्त्र उठा लिए हैं, लेकिन उनका शक बरकरार रहा कि दुनिया वाले इस बार सुधरने वाले हैं।
- संतोष उत्सुक
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