सेलिब्रेटीज़ का इमोशनल होना

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Prabhasakshi

हमारे देश में राजनीतिजी ने आम लोगों के आंसू निकाल दिए हैं इतने कि खत्म हो गए लगते हैं। इसलिए जब प्रसिद्ध, महान होते नेता या मंत्री इमोशनल होते हैं तो कायनात भी भीगने लगती है। कमबख्त ढूंढने वाले तो उनके आंसुओं में भी राजनीति खोजने लगते हैं।

कहा जाता है, व्यक्ति को भावनात्मक जीव होना चाहिए। महा भौतिक संसार में ऐसा करना मुश्किल है फिर भी भावनात्मक संतुलन बनाए रखते हुए बेहतर इंसान होते रहने की तरफ अग्रसर रहना चाहिए। कई मामलों में तो भावनात्मक होते हुए सामान्य रोना नहीं बल्कि खूब रोना, अनेक परेशानियों से बाहर निकलकर, बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए ज़रूरी माना जाता है। जापान जैसे विकसित देश में तो आंसू निकलवाने के लिए टियर टीचर्स भी प्रशिक्षित किए जाते रहे हैं। लेकिन हमारा मामला अलग है।

हमारे देश में राजनीतिजी ने आम लोगों के आंसू निकाल दिए हैं इतने कि खत्म हो गए लगते हैं। इसलिए जब प्रसिद्ध, महान होते नेता या मंत्री इमोशनल होते हैं तो कायनात भी भीगने लगती है। कमबख्त ढूंढने वाले तो उनके आंसुओं में भी राजनीति खोजने लगते हैं। पता नहीं आंसुओं में राजनीति का तेल होता है या सिर्फ नमकीन पानी लेकिन जब आंसू निकल आते हैं तो भावुकता शरीर से भी टपकने लगती है।

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भावना की नदी का बहाव आमंत्रित करता है। राजनेताओं के चेले, चमचे, सहयोगी, अधिकारी, कारें, स्वागत द्वार, फूलों के बुके तक भीग उठते हैं। रुमाल अक्सर हाथ में रहते हैं। यह तत्काल भुला दिया जाता है या याद ही नहीं रहता कि राजनीति में सचमुच कितनी खतरनाक पारिवारिक, क्षेत्रीय, धार्मिक, आर्थिक और जातीय भावनाएं भरी होती है। बेचारी आंखों को कई बार छलकना पड़ता है। दिमाग से विरोधी अनेक व्यक्तियों की आंखों में नमकीन पानी उमड़ना नहीं चाहता लेकिन भावनात्मक माहौल से प्रेरित हो, दिखाने के लिए बेहतर अंदाज़ में टपकाया जाता है। आखिर मामला आम आंखों के आंसुओं का नहीं, प्रसिद्ध आंखों के ख़ास आंसुओं का जो होता है। सेलिब्रेटी के साथ कुछ न कुछ इमोशनल हो जाता है। वहां दस्तूर भी होता है और मौक़ा भी। यह तहजीब का मामला बन जाता है जी।   

   

आंसू साबित करते हैं कि राजनीतिजी के राज्य में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। असली, खालिस दुर्भावनाएं दबा दी जाती हैं। इस बारे सभी को पता होता है लेकिन अवसर सेलिब्रेटीज़ के इमोशनल होने का होता है तो खलल नहीं डाली जाती। अनुशासन भी तो एक चीज़ होती है जी । तभी तो सही अवसर का इंतज़ार किया जाता है। स्वाभाविक सच तो यही है कि ज़िंदगी में सफल होने के लिए मेहनत करनी पड़ती है और सफलता को टिकाए रखने के लिए सघन, अलग तरह की मेहनत करनी पड़ती है।  

   

वास्तव में समझा जाए तो हमेशा संयमित और अनुशासित जीवन जीने वाले, आम लोगों के साथ कुछ भी हो जाने पर द्रवित न होने वाले सेलिब्रेटीज़ का कभी कभी इमोशनल होना भी ज़रूरी है। इस मंच पर वे खुद का  इंसान होना कबूल करते हैं। हालांकि वे उचित अवसरों पर ही ऐसा रूप धर पाते हैं। वैसे भी वे सबकी तरह हाड मांस वाले इंसान ही तो होते हैं लेकिन उनकी भावनाओं का तो गुंचा भी अनुशासन में बंधा होता है ।   

हम इतने भी जापानी नहीं हैं कि भावनात्मक होने पर आंसू निकालने के लिए सीखना या सिखाना पड़े। खरी सचाई यह भी तो है कि आंखों से भावनाएं ज़्यादा बह निकलें, सुबकना शुरू कर दें, शारीरिक रूप से ज़्यादा प्रदर्शित की जाएं तो सांसारिक या भौतिक नुकसान ज़्यादा भी हो सकता है। इसलिए बाज़ार के प्रतिनिधि इस सन्दर्भ में संयम बरतने की कोचिंग देते रहते हैं, लेकिन कमबख्त बाज़ार ही तो सेलिब्रेटीज़ को उचित अवसरों पर इमोशनल होने की संजीदा सलाह देता है। 

- संतोष उत्सुक

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