पड़ोसी देश में चुनाव, भरपूर है राजनीतिक तनाव, भारत, चीन और पाकिस्तान तीनों की नजर क्यों है टिकी हुई?
राजनीति में तख्तापलट, जवाबी तख्तापलट, हत्याएं और सैन्य शासन लागू किया गया है, जिससे देश टकराव, चुनावी हिंसा, विपक्ष के प्रति असहिष्णुता और हड़ताल (बंद) की राजनीति की ओर बढ़ रहा है।
बांग्लादेश में 7 जनवरी को संसदीय चुनाव होंगे। प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन ने देश को हिलाकर रख दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त हबीबुल अवल ने एक लाइव टेलीविजन प्रसारण में जानकारी देते हुए बताया कि 12वां संसदीय चुनाव 7 जनवरी को 300 सीटों पर होगा। उन्होंने पार्टियों से राजनीतिक संकट को हल करने के लिए बातचीत करने का आग्रह किया। मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के शीर्ष नेता या तो जेल में हैं या निर्वासन में हैं। बीएनपी ने पहले ही कहा है कि अगर प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफा नहीं देती हैं और सामान्य की देखरेख के लिए एक गैर-पक्षपातपूर्ण कार्यवाहक सरकार को सत्ता हस्तांतरित नहीं करती हैं तो वह चुनावों का बहिष्कार करेंगे। जब स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण की बात आती है तो स्वतंत्र बांग्लादेश ने भी इसी तरह का पैटर्न अपनाया है। राजनीति में तख्तापलट, जवाबी तख्तापलट, हत्याएं और सैन्य शासन लागू किया गया है, जिससे देश टकराव, चुनावी हिंसा, विपक्ष के प्रति असहिष्णुता और हड़ताल (बंद) की राजनीति की ओर बढ़ रहा है।
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कैसी है बांग्लादेश के संसद की रुपरेखा
1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने 1972 में खुद का संविधान बनाया। इसके बाद यहां संसदीय व्यवस्था लागू हुआ। बांग्लादेश की संसद को जातियों संगसद या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है। सरकार के अनुसार इसकी नई इमारत 15 फरवरी 1982 में तैयार हुई और 200 एकड़ में बनी है। बांग्लादेश में संसद की 350 सीटों के लिए चुनाव कराया जाता है। बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 सीटें रिजर्व हैं। संसद में सत्ताधारी दल के नेता प्रधानमंत्री बनते हैं और वे ही कार्यकारी प्रधान होते हैं। 2009 से ही बांग्लादेश की सत्ता में शेख हसीना की पार्टी बांग्लादेश आवामी लीग काबिज है।
15 सालों से शेख हसीना का शासन
हसीना ने पिछले 15 वर्षों से बांग्लादेश का नेतृत्व किया है और उन पर कठोरता से शासन करने का आरोप लगाया गया है। अगर विपक्ष का बहिष्कार जारी रहा तो उनका चौथी बार सत्ता में लौटना लगभग तय माना जा रहा है। हसीना की मुख्य प्रतिद्वंद्वी और दो बार की प्रधानमंत्री, बीएनपी नेता खालिदा जिया प्रभावी रूप से घर में नजरबंद हैं, जिसे उनकी पार्टी फर्जी भ्रष्टाचार के आरोप कहती है। बीएनपी ने 2014 के चुनावों का बहिष्कार किया, लेकिन 2018 में भाग लिया। मुस्लिम-बहुल देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी एंडोलन बांग्लादेश (आईएबी) पार्टी ने भी कहा कि वे चुनावों को अस्वीकार कर देंगे।
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विपक्ष क्यों कर रहा विरोध
विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने सात जनवरी के आम चुनाव को रद्द करने की मांग करते हुए 48 घंटे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। विपक्ष ने साथ ही दावा किया कि इस चुनाव का उद्देश्य प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार को लगातार चौथे कार्यकाल के लिए सत्ता में लाना है। यह घोषणा मुख्य चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवल के उस बयान के एक दिन बाद आयी है जिसमें कहा गया था कि बहुप्रतीक्षित आम चुनाव 7 जनवरी को होंगे। बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने सुबह 6 बजे से दो दिवसीय आम हड़ताल का आह्वान किया।
बांग्लादेश के चुनाव पर क्यों है भारत, चीन और पाकिस्तान की निगाहें
पांच साल बाद हो रहे बांग्लादेश के चुनाव पर भारत, पाकिस्तान और चीन की नजर जमी हुई है। इसे तीनों देशों के लिए काफी अहम माना जा रहा है। बांग्लादेश के गठन के बाद से ही भारत उसका महत्वपूर्ण दोस्त रहा है। दोनों देश अभी भी कई मोर्चों पर एक दूसरे के साझेदार की भूमिका में हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में बड़ी संख्या में चीनी प्रवासी रहते हैं। चीन बीआरआई प्रोजेक्ट के जरिए भी लगातार बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है। 2016 में चीन ने बांग्लादेश के साथ 26 समझौता किया था। वहीं शेख हसीना अगर सत्ता में फिर से वापसी करती हैं, तो पाकिस्तान के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाला है। पाकिस्तान को खालिदा जिया की पार्टी से उम्मीद है। अगर खालिदा जिया सरकार में आती है, तो कई मोर्चे पर दोनों देश फिर से साझेदारी कर सकता है।
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