क्या है 15 अगस्त की तारीख तय होने की कहानी? आजादी के जश्न से क्यों गायब थे गांधी जी
लॉर्ड माउंटबेटन महात्मा गांधी को भारत के बंटवारे के लिए मना चुके थे और सारी चीजें उनके पक्ष में हैं। ऐसे में लॉर्ड माउंटबेटन एक प्रेस कॉफ्रेंस करते हैं जिसमें वह बताते हैं कि किस तरह से करोड़ों लोगों का विस्थापन होगा और किस तरह से भोगौलिक आधार पर दोनों मुल्कों को बांटा जाएगा।
14 अगस्त की रात 12 बजे जब पूरा देश आजादी की जश्न में डूबा हुआ था। उस वक्त देश को जगाने वाले महात्मा चुपचाप कलकत्ता चले गए थे। ब्रिटिश हुकूमत का सबसे बड़ा साहेब के फैसले को आखिर क्यों ज्योतिषी ने बदलने की बात कही। आखिर भारत की आजादी का दिन 15 अगस्त कैसे तय हुआ? किसने तय किया? ये तमाम सवाल हैं जिसके जवाब के लिए इतिहास के पन्ने खंगाल कर ये विशेष रिपोर्ट तैयार की है।
इसे भी पढ़ें: आखिर 15 अगस्त 1947 की आधी रात को ही क्यों मिली थी आजादी, कैसा था पहला स्वतंत्रता दिवस ?
वैसे तो दिल्ली हर जून में तपती है लेकिन सन 1947 के जून का वो महीना आम मौसम से कुछ ज्यादा गर्म था। मजहब के नाम पर पंजाब और बंगाल में लगी आग की लपटें दिल्ली के तापमान को और ज्यादा गर्म कर रहे थे। रायसीना हिल्स के एसी वाले कमरे में बैठे माउंटबेटन इस गर्मी को महसूस कर रहे थे। जून की एक ऐसी ही सुबह जब माउंचबेटन ने देश के बंटवारे को लेकर एक मीटिंग बुलाई तो उस वक्त भी गर्मी के उस माहौल का असर साफ नजर आया। सरदार पटेलऔर जिन्ना के बीच गर्मा-गर्म बहस हुई। पटेल ने जिन्ना से साफ-साफ कहा कि वो अपने लोग और अपने इलाके की फिक्र करे। माउंटबेटन ने जून के तीसरे हफ्ते में पार्टीशन काउंसिल की बैठक बुलाई। जून के तीसरे हफ्ते में ये तय हो जाने के बाद की देश का बंटवारा होगा। कश्मीर को लेकर लार्ड माउंटबेटन की चिंता बढ़ने लगी। उन्हें पता था कि कश्मीर का मसला दोनों देशों के बीच अटकेगा और आनन-फानन में वो कश्मीर के लिए रवाना हो गए। कश्मीर के महराजा हरि सिंह से उनकी मुलाकात की तारीख भी तय हो गई। लेकिन ठीक मुलाकात के दिन हरि सिंह ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए वो नहीं मिल पाएंगे।
15 अगस्त की तारीख तय होने की कहानी
लॉर्ड माउंटबेटन महात्मा गांधी को भारत के बंटवारे के लिए मना चुके थे और सारी चीजें उनके पक्ष में हैं। ऐसे में लॉर्ड माउंटबेटन एक प्रेस कॉफ्रेंस करते हैं जिसमें वह बताते हैं कि किस तरह से करोड़ों लोगों का विस्थापन होगा और किस तरह से भोगौलिक आधार पर दोनों मुल्कों (पाकिस्तान और भारत) को बांटा जाएगा। जब ये प्रेस कांफ्रेंस अपने अंतिम चरण में होती है तब एक पत्रकार एक सवाल पूछता है. ये सवाल था-" जब आप अभी से भारत को सत्ता सौपें जाने वाले समय तक के कार्यों में तेजी लाने की बात कर रहे हैं तो क्या आपने वो तिथि तय की है जब भारत सत्ता सौपीं जाएगी? आखिर वह दिन है कौन सा"? तो माउंटबेटन कुछ भी जवाब नहीं दे पाते। दरअसल उन्होंने कोई भी तिथि तय नहीं की थी। दिमाग में तमाम तिथियां भी घूमी। कभी वह सोचते सितंबर के बीच में, सितंबर अंत में या 15 अगस्त के बीच में जब लॉर्ड माउंटबेटन तमाम तिथियों के बारे में सोच रहे थे। तभी एक तिथि उनके दिमाग में अटक गई। ये तिथि थी 15 अगस्त 1947।
ज्योतिषियों ने जताई निराशा
जब ये बात देश की ज्योतिषियों को पता चलती है तो कि 15 अगस्त को देश आजाद होने वाला है तो उनमें हड़कप मच जाता है। और वह इस तारीख का जबरदस्त विरोध करते हैं। दरअसल 15 अगस्त को शुक्रवार था। और ज्योतिषियों का मानना यदि इस दिन भारत आजाद होता है तो कोहराम मच जाएगा। नरसंहार होंगे। ये बहुत ही अपशकुन हैं।
इसे भी पढ़ें: कोरोना का यह दौर भयावह जरूर है लेकिन आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी है
आजादी का जश्न और महात्मा का कलकत्ता अनशन
15 अगस्त की आधी रात को जश्न में डूबी दिल्ली हिंदुस्तान का मुस्तक़बिल तय कर रही थी, तब पिछले तीन दशकों से स्वाधीनता संघर्ष की नीति, नियति और नेतृत्व तय करने वाले महात्मा गांधी भावी राष्ट्र के शिल्पकारों, जो उनके उत्तराधिकारी भी थे, को आशीर्वाद देने के लिए न सिर्फ़ जश्न-स्थल से गैरमौजूद थे बल्कि दिल्ली की सरहद से मीलों दूर कलकत्ता (अब कोलकाता) के 'हैदरी महल' में टिके थे। वे नोआखाली की यात्रा पर निकले थे, जहां अल्पसंख्यक हिंदुओं का भीषण कत्लेआम हुआ था। जब तय हो गया कि भारत 15 अगस्त को आज़ाद होगा तो जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को ख़त भेजा। इस ख़त में लिखा था, "15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा. आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल हो अपना आशीर्वाद दें। गांधी ने इस ख़त का जवाब भिजवाया, "जब कलकत्ते में हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं। मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।
जानकारी के लिए बता दें कि हर स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं। लेकिन 15 अगस्त 1947 को ऐसा नहीं हुआ था। लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।
- अभिनय आकाश
अन्य न्यूज़