जानिए, ग्रेटर इजरायल प्लान क्या है? इसको अमेरिकी समर्थन क्यों हासिल है? ग्रेटर इंडिया प्लान से इसका क्या रिश्ता है?
यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहासकार बताने वाले क्रेग मरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 'ग्रेटर इजरायल' को लेकर एक बड़ा दावा किया है, जिससे अरब देशों में सनसनी मच गई है।
क्या आपको पता है कि 19वीं सदी में यहूदीवाद (जायोनिज्म) आंदोलन की आधारशिला रखने वाले थियोडोर हर्जेल ने एक ऐसे यहूदी देश की अवधारणा रखी थी, जो अरब के एक बड़े इलाके में फैला हुआ होगा। यदि नहीं तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि यहूदीवाद, यहूदियों का तथा यहूदी संस्कृति का राष्ट्रवादी राजनैतिक आन्दोलन है जो इसराइल के ऐतिहासिक भूभाग में यहूदी देश की पुनर्स्थापना का समर्थन करता है।
दरअसल, जायोनिज्म का आरम्भ मध्य एवं पूर्वी यूरोप में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यह यूरोप के सिमेटिक विरोधी राष्ट्रवादी आन्दोलनों के प्रतिक्रियास्वरूप एक राष्ट्रीय पुनरुज्जीवन आन्दोलन के रूप में शुरू हुआ। यहूदीवाद आंदोलन का मुख्य उद्देश्य है कि फिलिस्तीन में यहूदीकरण तथा यहूदीबाद का विस्तार करना, जिसके लिए इसकी विश्व में बहुत आलोचना हो चुकी है। हालांकि इसके शीघ्र बाद इस आन्दोलन के अधिकांश नेताओं ने फिलिस्तीन के अन्दर अपना देश बनाने का लक्ष्य स्वीकार किया। फिलिस्तीन उस समय उसमानी साम्राज्य के अधीन था।
यही वजह है कि समय-समय पर इजरायल में इसे लेकर चर्चाएं होती रही हैं। बहरहाल सारिया में रूस समर्थित बशर अल-असद की क्रूर सत्ता के पतन के बाद अब एक बार फिर से इसकी चर्चा तेज हो गई है। क्योंकि तुर्की के साठगांठ और अमेरिका-इजरायल के परोक्ष सहमति से सीरिया में बशर अल-असद के पतन की पृष्ठभूमि तैयार की गई और इस दुःस्वप्न के साकार होने के बाद ही एक बार फिर से 'ग्रेटर इजरायल' की चर्चा तेज हो गई। क्योंकि बिना कोई समय गंवाए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के आदेश के बाद इजरायली सेना ने अल्फा लाइन को पार कर लिया और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया।
इसके अलावा, इजरायल और अमेरिका की संयुक्त बमबारी करके सीरिया में सफल हुए विद्रोहियों की सेना को कमजोर कर दिया गया। उसकी थल, जल और वायु मारक क्षमता वाले हथियारों को लगातार नेस्तनाबूद किया गया। समझा जाता है कि ग्रेटर इजरायल में कई अरब देशों के हिस्से इजरायल के नेतृत्व वाले यहूदी देश में शामिल होंगे। क्योंकि ग्रेटर इजरायल प्लान में अरब का एक बड़ा इलाका शामिल है, जिसे साकार करने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
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कारण कि सीरिया में बशर अल असद की सत्ता मिटने से ईरान ज्यादा कमजोर हुआ है। वहीं, रूस के पांव ही अरब मुल्क से उखड़ चुके हैं, जिससे अफ्रीका तक में रूसी रणनीति अब प्रभावित होगी। इससे एक ओर जहां अमेरिका-इजरायल की बल्ले-बल्ले हैं, वहीं तुर्की के एरदोगन भी अरब के मुस्लिम खलीफा बनने को ततपर नजर आ रहे हैं।
बता दें कि सीरिया में बशर अल-असद के शासन के लगभग ढाई दशक के शासन के खत्म होते ही इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इजरायली सेना को गोलान हाइट्स पर इजरायली कब्जे के पार सीरियाई क्षेत्र में जाने का आदेश दिया और इजरायली सेना ने टैंकों के साथ सीमा को बांटने वाली अल्फा लाइन को पार कर लिया। लिहाजा, इजरायली सेना के इस कदम के बाद से ही ग्रेटर इजरायल की परिकल्पना को साकार करने को लेकर चर्चाएं पुनः तेज हो गई हैं।
यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहासकार बताने वाले क्रेग मरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 'ग्रेटर इजरायल' को लेकर एक बड़ा दावा किया है, जिससे अरब देशों में सनसनी मच गई है। दरअसल, उन्होंने कहा कि, 'सीरिया में एक नई सरकार आकार ले रही है, जिसकी फंडिंग और तैयारी तुर्की, अमेरिका, इजरायल और खाड़ी देश कर रहे हैं।' यही नहीं, उन्होंने आगे कहा कि 'यह लोकतंत्र का सांठगांठ मानवाधिकारों के बारे में नहीं है। बल्कि यह ग्रेटर इजरायल और फिलिस्तीनियों के नरसंहार के बारे में है।'
इसलिए अब सवाल उठता है कि आखिर ग्रेटर इजरायल का अभिप्राय क्या है ? तो एक बार फिर यहां स्पष्ट कर दें कि ग्रेटर इजरायल का मतलब उस बड़े अरब भूभाग से है, जहां तक कभी प्राचीन यहूदी राज्य हुआ करता था। इसे मध्य पूर्व के लिए जायोनिस्ट (यहूदीवादी) विस्तारवादी योजना भी कहा जाता है। जानकार बताते हैं कि 19वीं सदी में यहूदीवाद की स्थापना करने वाले थियोडोर हर्जेल ने इसकी अवधारणा दी थी। इसमें मिस्र की नील नदी से यूफ्रेट्स और मदीना से लेकर लेबनान तक का इलाका शामिल है। यानी इस क्षेत्र में मिस्र, लेबनान, सीरिया, इराक, सऊदी अरब, पूरा जॉर्डन और कब्जे वाला फिलिस्तीनी क्षेत्र शामिल है।
समझा जाता है कि इस विशाल इलाके में अमेरिकी प्रभुत्व होने के कारण इजरायल को यह स्वप्न साकार करने में कोई परेशानी नहीं आएगी, बल्कि इस स्वप्न के साकार होते ही उसकी सैन्य ताकत और क्षेत्रीय रणनीतिक प्रभुत्व क्षमता में और भी इजाफा हो जाएगा। समझा जाता है कि भारत का भी मूक समर्थन पुराने और भरोसेमंद दोस्त इजरायल को हासिल है, अन्यथा रूस को सीरिया से खदेड़ने का षड्यंत्र वह नहीं रचता और न ही उसमें शामिल होता। उधर, अमेरिका भी इस मुद्दे पर खामोशी के लिए भारत का अहसानमंद है।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि बंगलादेश में हिंदुओं के खिलाफ जो इस्लामिक षड्यंत्र चल रहा है, उसके परिप्रेक्ष्य में 'अखंड भारत' यानी ग्रेटर इंडिया के सपने को साकार करने का आरएसएस का दबाव मोदी सरकार पर बढ़ रहा है। यह तभी संभव होगा, जब अरब देश कमजोर होंगे। चूंकि इजरायल की मजबूती ही अरब देशों की कमजोरी है। इसलिए ईरान से लेकर सीरिया तक में चीनी-रूसी दिलचस्पी के बाद भी भारत ने रणनीतिक तटस्थता बरती, जिससे अमरीकी-इजरायल गेम प्लान तो सफल हुआ ही, भारत के शत्रु व पाकिस्तान के समर्थक देश तुर्किये की करीबी भी रूस से घटी, जो भारत के लिए एक शुभ संकेत है।
सीआईए और रॉ से जुड़े लोग बताते हैं कि ग्रेटर इंडिया प्लान में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यामांर और ईरान के उन हिस्सों को भारत में शामिल करना है, जो कभी विशाल मगध साम्राज्य का हिस्सा रह चुके हैं। इसमें तिब्बत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव आदि स्वतः शामिल हो जाएंगे। इस क्षेत्र में न केवल सनातनी विचारों को मजबूत करना है, बल्कि हिंसा-प्रतिहिंसा के लिए कोई जगह न बचे, ऐसा प्रशासन मजबूत करना है। समझा जाता है कि चीन को काबू में रखने के लिए अमेरिका और मुसलमानों को कमजोर करने के लिए इजरायल भी ग्रेटर इंडिया प्लान से सहमत है, जो अभी सिर्फ कागजों पर है और नीतिगत रूप से खुफिया एजेंसी की प्राथमिकता में है।
अब सवाल है कि ग्रेटर इजरायल में क्या-क्या शामिल होगा?
तो जवाब यही होगा कि इजरायली राजनीति में ग्रेटर इजरायल की बात कोई नई बात नहीं है, बल्कि मिडिल ईस्ट मॉनिटर की एक रिपोर्ट भी इस बात की चुगली करती है, जिसके अनुसार, जनवरी 2024 को इजरायली राजनेता एवी लिपकिन ने कहा था कि, "आखिरकार हमारी सीमाएं लेबनान से सऊदी अरब के ग्रेट डेजर्ट तक फैलेंगी। फिर भूमध्य सागर से फरात नदी (इराक) तक। और फरात के दूसरी तरफ कौन है? कुर्द! और वे हमारे दोस्त हैं।" वहीं, लिपकिन ने आगे कहा कि, "इसलिए हमारे पीछे भूमध्य सागर है और हमारे सामने कुर्द हैं, लेबनान है, जिसे वास्तव में इजरायल की छ्त्रछाया की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि फिर हम मक्का, मदीना और माउंट सिनाई पर कब्ज़ा करेंगे, और उन जगहों को शुद्ध करेंगे।"
सीधा सवाल है कि क्या अमेरिका भी इस प्लान में शामिल है? तो जवाब स्वरूप कई इतिहासकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषकों का भी कहना है कि यही वजह है कि इज़राइल धीरे-धीरे और रणनीतिक रूप से अपने पड़ोसियों, विशेष रूप से फिलिस्तीन से अधिक से अधिक भूमि हड़प रहा है। कई विश्लेषक यहां तक कहते हैं कि ग्रेटर इजरायल पूरी तरह से यहूदी प्लान नहीं है, बल्कि इसके पीछे अमेरिका की सोच काम कर रही है, जिसका उद्येश्य मध्य पूर्व में अपने आधिपत्य का विस्तार करना है। उल्लेखनीय है कि इसके पहले ब्रिटेन की एक योजना के चलते ही आगे चलकर इजरायली राज्य का गठन हुआ था, जिसे बाल्फोर घोषणा भी कहा जाता है। इसलिए अब अमेरिका-इजरायल की युगलबंदी में भारत की मौन वैचारिक व रणनीतिक छौंक क्या गुल खिलाएगी, जानना-समझना-इंतजार करना दिलचस्प रहेगा?
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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