इजराइल-हमास युद्ध ने पश्चिम एशिया में विभाजन को और बढ़ा दिया है
ईरान की तरह इसी वर्ष सीरिया से भी अरब देशों ने अपने रिश्ते बहाल किये। लेकिन अब इजराइल और हमास के बीच युद्ध होने से सीरिया और अरब देशों के बीच भी दूरियां बढ़ सकती हैं। इजराइल पर सिर्फ गाज़ा पट्टी से ही नहीं बल्कि उत्तर में सीरिया और लेबनान से भी हमले हो रहे हैं।
आतंकी संगठन हमास के इजराइल पर किए गए अचानक हमले से न सिर्फ इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तनाव बढ़ा है बल्कि इसका असर पूरे पश्चिम एशिया की स्थिरता पर पड़ सकता है। फिलिस्तीन, जो वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी, इन दो भागों में बंटा हुआ है, दशकों से एक स्वतंत्र देश बनने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस संघर्ष का परिणाम है कि फिलिस्तीन और इजराइल के बीच लगातार हिंसा और युद्ध के हालात बने रहे हैं।
गाज़ा पट्टी, जो इजराइल के दक्षिण में स्थित है, हमास के कब्ज़े में है जबकि वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी प्राधिकरण का शासन है। 7 अक्टूबर को शुरू हुए हमास के हमलों में और बाद में इजराइली सेना की हमास के खिलाफ़ जवाबी कार्रवाई में अब तक कुल 3500 से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं। इजराइल जैसे सक्षम और शक्तिशाली देश पर इस पैमाने का हमला होना काफ़ी हद तक इजराइली ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता कहा जा सकता है। हमास ने इससे पहले भी इजराइल पर रॉकेट हमले किये हैं। लेकिन आतंकवादियों की इजराइली सीमा में घुसपैठ होना इजराइल की सुरक्षा में एक भारी सेंध है। इस आतंकी हमले की गंभीरता को देखते हुए यह युद्ध लंबा चलने के आसार हैं।
इसे भी पढ़ें: इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध से मानवता पर बढ़ गया है खतरा
इस युद्ध का असर सिर्फ इजराइल तक सीमित न रहते हुए पूरे पश्चिम एशिया में दिखाई देगा जिसके पहलु देखना ज़रूरी है। ईरान के हमास को समर्थन देने और इजराइल को धमकी देने के कारण पश्चिम एशिया की स्थिरता अब ख़तरे में पड़ गई है। ईरान के इस तरह खुले तौर पर हमास के समर्थन में आने से पश्चिम एशिया की राजनीती नया मोड़ ले सकती है। ईरान न सिर्फ हमास का समर्थक है बल्कि हमास के आतंकियों को ट्रेनिंग भी देता है और हथियार भी सप्लाई करता है।
फिलिस्तीन को समर्थन देने में भले ही सभी मुस्लिम देश एकजुट हों लेकिन क्षेत्रीय राजनीति इसमें विभाजित होने की संभावना है। इसी वर्ष मार्च महीने में ईरान और सऊदी अरब के बीच शांति समझौता हुआ जिसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया। 2016 से इन दोनों देशों के बीच विवाद चल रहा था जो चीन की मध्यस्थता से समाप्त हुआ। इसे मुस्लिम जगत में एक बड़ी कामयाबी माना गया और पश्चिम एशिया में हमेशा से चल रही ईरान और अरब देशों के बीच की प्रतिस्पर्धा के अंत के तौर पर देखा गया।
लेकिन ईरान के लिए अरब देशों से संबंध सामान्य करना इतना आसान नहीं है। इजराइल से ईरान की चल रही दुश्मनी अरब और ईरान के बीच एक पेचीदा मामला है जो अभी तक सुलझा नहीं है। ईरान के साथ साथ अरब देश अब इजराइल से भी अपने संबंध स्थापित कर रहें हैं। पिछले तीन वर्षों में अब्राहम समझौतों के अंतर्गत चार अरब देशों- यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजराइल से रिश्ते स्थापित किए। सऊदी अरब और इजराइल के बीच भी अब रिश्ते स्थापित करने पर बातचीत चल रही है। अरब देशों से संबंध भले ही ईरान के आर्थिक हित में हैं लेकिन राजनीतिक तौर पर ईरान और अरब देशों के बीच इजराइल पर सहमति बनना मुश्किल है। अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए हमास का समर्थन ईरान के अरब देशों से रिश्तों को बिगाड़ सकता है।
ईरान की तरह इसी वर्ष सीरिया से भी अरब देशों ने अपने रिश्ते बहाल किये। लेकिन अब इजराइल और हमास के बीच युद्ध होने से सीरिया और अरब देशों के बीच भी दूरियां बढ़ सकती हैं। इजराइल पर सिर्फ गाज़ा पट्टी से ही नहीं बल्कि उत्तर में सीरिया और लेबनान से भी हमले हो रहे हैं। सीरिया को भी ईरान का समर्थन प्राप्त है। आत्म रक्षा के लिए इजराइल सीरिया और लेबनान में भी हमले कर चुका है। लेबनान स्थित आतंकी संगठन हिज़्बुल्लाह को भी ईरान समर्थन प्राप्त है। इस वक़्त इजराइल एक साथ दक्षिण में गाज़ा पट्टी और उत्तर में सीरिया और लेबनान ऐसे दो मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है।
बदल रहे भू-राजनीतिक समीकरण और अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने की वजह से अरब देश इजराइल से अपने रिश्ते बिगाड़ने से परहेज़ करेंगे। तेल आधारित अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए आज अरब देशों के लिए इजराइल जैसे तकनीकी तौर पर सक्षम देश की आवश्यकता है। ईरान और सीरिया वैसे भी मुस्लिम जगत में असहज भागीदार हैं। इन दोनों देशों से अरब देशों के आर्थिक हितों को कोई ख़ास फायदा नहीं है। 2002 की अरब शांति पहल के अंतर्गत अरब देशों के इजराइल से रिश्ते सामान्य करने की शर्त थी स्वतंत्र फिलिस्तीन देश का निर्माण होना। लेकिन अपने भविष्य के आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए अरब देशों की इजराइल से नज़दीकियां बढ़ रही हैं जिसमें फिलिस्तीन का विचार नहीं हो रहा।
हमास को ईरान के साथ साथ तुर्किये का भी समर्थन प्राप्त है। अरब देशों के साथ रिश्ते सुधरने के बावजूद तुर्किये पश्चिम एशिया क्षेत्र में अपने भू-राजनितिक वर्चस्व को कायम रखना चाहता है। हाल ही मैं भारत में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा हुई। इसमें भारत, अरब देश और यूरोपीय देश शामिल हैं। इस गलियारे में शामिल न किए जाने से तुर्किये नाराज़ है। पश्चिम एशिया और यूरोप को जोड़ने वाली किसी भी परियोजना में इजराइल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इजराइल में अस्थिरता से इस गलियारे को बनने में देर होगी। इस गलियारे की असफलता तुर्किये के हित में है क्योंकि हाल ही में तुर्किये ने इराक से विकास मार्ग का प्रस्ताव रखा है जो पश्चिम एशिया में एक और आर्थिक गलियारे के तौर पर विकसित होगा। अपना प्रभाव कायम रखने के लिए इजराइल और पश्चिम एशिया में अस्थिरता तुर्किये के लिए फायदेमंद है।
हमास का हमला इजराइल के लिए एक चुनौती है। यह अचानक हुआ हमला नहीं है। इस वर्ष की शुरुआत में इजराइल को अपने पड़ोस में ईरान-हमास-हिज़्बुल्लाह की बढ़ती गतिविधियों के बारे में जानकारी थी। लेकिन तब इजराइल ने इसके ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया था। ईरान कई वर्षों से हमास और हिज़्बुल्लाह के इजराइल के खिलाफ़ हमलों का समर्थन करता आया है। इस संघर्ष में फिलिस्तीन ईरान के लिए अरब देशों पर वर्चस्व प्रस्थापित करने का माध्यम बन सकता है। इजराइल-हमास युद्ध सिर्फ यहूदी और मुसलमानों के बीच के संघर्ष के तौर पर सीमित नहीं रहेगा। यह युद्ध मुस्लिम देशों के बीच भी दरार पैदा कर सकता है।
-निरंजन मार्जनी
(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक हैं।)
अन्य न्यूज़