By अभिनय आकाश | Feb 23, 2022
युद्ध भले ही अभी शुरू नहीं हुआ लेकिन रूस और यूक्रेन की सीमाओं पर तनाव उस चरम पर पहुंच सका है कि कभी भी जंग छिड़ने की खबर आ सकती है। भले ही संयुक्त राष्ट्र और इसके बाहर इस जंग को टालने की कोशिशें जारी हैं। रूस ने यूक्रेन के दो क्षेत्रों- लुहांस्क और डोनेत्स्क को आजाद देश घोषित कर दिया। इस कदम के बाद अमेरिका, यूरोप सहित ज्यादातर बड़े मुल्क रूस के खिलाफ खड़े हो गए हैं। । रूसी राष्ट्रपति पुतिन के एक्शन के बाद अमेरिका ने दो संस्थानों को आर्थिक प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। वहीं ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने भी रूस के पांच बैंकों और तीन अरबपतियों के खिलाफ पाबंदियों की घोषणा की है। जर्मनी ने नॉर्डस्ट्रीम टू प्रोजक्ट को कैंसिल कर दिया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों के पहले दौर की घोषणा की। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने कहा कि हमारी सरकार जापान में रूस के सरकारी बांड को जारी करने और वितरण पर बैन लगाएगी।
एक साल पहले रूस ने शुरू की यूक्रेन की घेराबंदी
21 फरवरी 2021- रूस के रक्षा मंत्रालय ने यूक्रेन सीमा पर एक बड़े सैन्य अभ्यास के लिए तीन हजार सैनिक तैनात करने की घोषणा की है।
03 मार्च 2021- रूसी विमानों के यूक्रेन हवाई क्षेत्र का अतिक्रमण करने की खबरें आई। दस दिन के बाद डोनबास में रूस ने मोर्टार दागे, चार यूक्रेनी सैनिकों की मौत हो गई।
16 मार्च 2021 नाटो ने 12 देशों में एकसाथ सैन्य अभ्यास की एक श्रृंखला शुरू की। जिसे डिफेंडर यूरोप 2021' नाम दिया। रूस ने इसकी कड़ी निंदा की।
20 अप्रैल 2021- रॉयटर्स द्वारा जारी एक सेटेलाइट तस्वीर में रूसी विमानों का एक बेड़ा क्रीमिया की यूक्रेन से लगती सीमा पर तैनात दिखा।
22 अप्रैल 2021- रूसी सैनिकों ने सैन्य अभ्यास की वापसी की घोषणा की। हालांकि अमेरिका ने कहा कि रूस ने सभी सैनिक नहीं बुलाए।
02 नवंबर 2021- यूक्रेन ने दावा किया कि रूस के 1 लाख सैनिक हमारी सीमा पर तैनात हैं। जबकि अमेरिका ने 70 हजार सैनिकों की तैनाती का अनुमान लगाया है।
13 नवंबर 2021- राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर हमल करने की खबरों को सिरे से खारिज कर दिया।
25 नवंबर 2021- डोनबास में रूस व यूक्रेन ने एक-दूसरे पर बड़े पैमाने में सेना तैनाती का आरोप लगाया। यूक्रेन ने रूस को उस पर हमला ना करने की चेतावनी दी।
18 जनवरी 2021- रूस ने जनवरी में कीव के अपने दूतावास से कर्मचारियों को धीरे-धीरे निकालना शुरू कर दिया।
10 फरवरी 2021- रूस ने अपने सहयोगी बेलारूस में सबसे बड़े सैन्य अभ्यास की घोषणा की, ठीक वैसी ही घोषणा काला सागर के भी हुई थी।
19 जनवरी 2022- पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी एकत्र होने लगे और एक हिंसक संघर्ष में दो यूक्रेनी सैनिक मारे गए।
22 फरवरी 2022- रूस ने यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्र लुहान्स्क और दोनेत्सक को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दे दी। अमेरिका ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए।
भारत ने आलोचना से किया परहेज, रूस ने की प्रशंसा
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और कूटनीतिक तरीके से विवाद का हल निकालने की अपील की है। कई देशों ने रूस के कदम का सीधा विरोध किया लेकिन भारत की तरफ से रूस की आलोचना नहीं की गई। यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने भारत का पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा था, 'भारत चाहता है कि यूक्रेन-रूस सीमा तनाव तुरंत कम हो और सभी देशों के जायज सुरक्षा हित बरकरार रहें।' उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान केवल कूटनीतिक बातचीत से ही संभव है। दोनों पक्षों ने हाल के दिनों में तनाव कम करने के लिए जो पहल की है, उस पर फिर से सोचने की जरूरत है। यूक्रेन संकट पर भारत के ‘स्वतंत्र रूख’ का स्वागत करते हुए रूस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर उसके (भारत के) विचार दोनों देशों के विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक गठजोड़ को प्रदर्शित करता है। रूसी मिशन के उप प्रमुख रोमन बाबूश्किन ने कहा ने कहा कि भारत एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और उसने वैश्विक मामलों में ‘स्वतंत्र एवं संतुलित’ रूख अख्तियार किया है।
भारत के स्टैंड पर हर किसी की निगाहें
पश्चिमी देशों के बीच तनाव का जो वक्त है वो किसी भी लिहाज से भारत के लिए भी ठीक नहीं है। रूस और यूक्रेन के बीच तनाव के बाद भारत भी सारी स्थिति पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। ये संकट के समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। भारत की स्थिति संवेदनशील है। भारत कोई भी कदम उठाता है तो उसके खुद के हित भी प्रभावित हो सकते हैं। अगर रूस की आलोचना करता है तो भारत पुराने, जांचे-परखे मित्र को अलग-थलग कर देगा। ऐसी स्थिति में रूस चीन के और करीब जाएगा। रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलिवरी की प्रक्रिया चल रही है और अमेरिका अब इस मामले में भारत के ख़िलाफ़ काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शन ऐक्ट (कास्टा) के तहत प्रतिबंध लगा सकता है। इस टकराव में भारत के लिए जटिल स्थिति पैदा हो गई है। अगर भारत रूस का खुलकर समर्थन करता है तो अमेरिका से रिश्ते प्रभावित होंगे। अमेरिका और भारत की क़रीबी बहुत पुरानी नहीं है लेकिन सामरिक साझेदारी के तौर पर बहुत ही अहम है। अगर भारत कुछ भी नहीं कहता है तो रूस और अमेरिका दोनों को नाराज़ कर सकता है। भारत को अस्थिर और अविश्वसनीय पार्टनर को तौर पर देखा जाएगा।
रूस पर प्रतिबंधों से भारत की परेशानी बढ़ेगी
रूस पर प्रतिबंध से ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात भी प्रभावित हो सकता है। भारत और रूस ने मिलकर इस मिसाइल का निर्माण किया है। हाल ही में भारत को फिलीपींस से इसके लिए 36.5 करोड़ डॉलर का पहला ऑर्डर मिला है। भारत और रूस ने चार फ्रिगेट्स को मिलकर बनाने के साथ एसयू-एमकेआई और मिग-29 एयरक्राफ्ट की सप्लाई का भी समझौता किया है। इस पर प्रतिबंधों की आंच आ सकती है। इसके अलावा, दोनों देश बांग्लादेश में रूपपुर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने के लिए भी सहयोग कर रहे हैं, अमेरिकी प्रतिबंधों से यह प्रॉजेक्ट भी प्रभावित हो सकता है।
क्रीमिया पर कब्जे के वक्त क्या थी भारत की रणनीति
भारत ने 2014 में भी किसी का पक्ष नहीं लिया था, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा जमा लिया था। यही नहीं यूक्रेन की संप्रभुता को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से भी भारत ने दूरी बना ली थी। तेल कीमतों के लुढ़कने से खपत को लेकर रूस चीन पर निर्भर हो गया लेकिन खास बात ये है कि रूस व चीन के बीच विशेष दोस्ताना संबंध नहीं है और चीन क्रीमिया को रूस के हिस्सा के रूप में मान्यता नहीं देता है तो रूस दक्षिणी चीन सागर पर चीन के दावे पर न्यूट्रल है। जब क्रीमिया पर रूस ने कब्जा किया था तो भारत ने इस मसले को लेकर चिंता जाहिर की थी लेकिन लेजिटमेट रसियन इंटेरेस्ट्स (रूस के हितों को लेकर की गई कार्रवाई) भी कहा। इस पर पुतिन ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह का आभार जताया था।
भारत की भूमिका तटस्थत ही रहने की उम्मीद
जियो पॉलिटिक्स के लिहाजे से देखा जाए तो भारत का इस मसले से सीधा कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि पहली बार ये कोई बड़ा युद्ध नहीं है। मसलन, भारत से इतर इसकी धुरी यूक्रेन रूस, नाटो, अमेरिका के ही ईर्द-गिर्द घूम रही है। ये और बात है कि अमेरिका वाशिंगटन से भारत पर दोनों देशों की दोस्ती की दुहाई देकर इस बात का प्रेशर बनाने की कोशिश कर रहा है कि वो उसका साथ दे। लेकिन खुद अमेरिका को बी ये भलि-भांति ज्ञात है कि रूस औऱ भारत परंपरागत साझेदार हैं। ऐसे में भारत की तरफ से खुलकर किसी एक का साथ दिए जाने के बारे में सोचना बेमानी होगी। वैसे तो कोरोना काल में दुनिया की सारी अर्थव्यवस्थाएं दांवाडोल स्थिति में हैं। ऐसे में अमेरिका हो या रूस या फिर नाटो के कोई देश सीधे-सीधे हथियारों के बल पर युद्ध का खतरा मोल नहीं लेगा। अगर हालात और भी बिगड़ते हैं तो भारत अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगा कि लड़ाई न हो। लेकिन अगर फिर भी लड़ाई होती है तो भारत न्यूट्रल ही रहेगा। भारत पॉलिसी ही यही है कि वह युद्ध की नीति पर नहीं चलता।
बहरहाल इस तनाव के दो ही हल हैं- या तो दोनों पक्ष बातचीत से मसले को सुलझाएं या फिर दो हाथ करें। फिलहाल, पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगाने भर से इसका रूस पर कितना असर होगा, यह कहना मुश्किल है। यूरोप अब क्योंकि रूस से आने वाली गैस पर बहुत हद तक निर्भर है। देशों के प्रतिबंध लगाने से यूरोप में गैस संकट पैदा हो सकता है। यूक्रेन लिहाजा, प्रतिबंधों की राजनीति कोई अधिक सफल नहीं होने वाली। अच्छा यही होगा, और जैसा भारत ने भी कहा वह इस है, दोनों पक्ष बातचीत के जरिये कोई हल निकालने की दिशा में कदम बढ़ाए। भारत को उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात नहीं बनेंगे। मान्यता दिए जाने की प्रक्रिया के बाद यूक्रेन पर हमले की आशंका बेहद ही कम है। लेकिन अगर यूक्रेन को जवाबी कार्रवाई करता है तो फिर उसे रूस के हमले का सामना करना पड़ सकता है।
-अभिनय आकाश