करीब एक हफ्ते बाद कल जब अपने घर के पास प्याज खरीदने पहुंचा तो मेरे होश उड़ गए। पिछले हफ्ते 60-70 रुपए किलो बिकने वाला प्याज कल शतक पूरा कर चुका था। पहले मेरा इरादा आधा किलो प्याज खरीदने का था...लेकिन जैसे ही दुकानदार से पता चला कि प्याज 110 रुपए किलो बिक रहा है मैंने अपना इरादा बदल दिया और 250 ग्राम लेकर चुपचाप घर लौट आया। पिछले एक महीने से 40-50 के भाव में बिकने वाला प्याज देखते ही देखते 110 रुपए किलो बिकने लगेगा इसका मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। अब तो प्याज के साथ-साथ लोगों को लहसुन से भी तौबा करना पड़ेगा क्योंकि खुदरा बाजार में लहसुन का दाम 200 के पार पहुंच गया है। और तो और बाजार में आलू भी 25 से 28 रुपए किलो बिक रहा है। बाकी सब्जियों के दाम तो पूछिए मत...गोभी, बैंगन, परवल कोई भी सब्जी 80 रुपए से कम नहीं।
अगर प्याज की कीमतों की बात करें तो कहा जा रहा है कि बाजार में प्याज की आवक नहीं है। कर्नाटक, नासिक और गुजरात में लगातार बारिश के चलते प्याज के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। कहा ये भी जा रहा है कि अभी कुछ दिनों तक प्याज ऐसे ही आम आदमी के आंसू निकालता रहेगा। लेकिन बाकी सब्जियों का क्या ? आखिर आम आदमी कब तक इस महंगाई का दंश झेलता रहेगा।
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हैरानी की बात ये है कि बाजार में सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं...लेकिन मीडिया में इसे लेकर जितनी चर्चा होनी चाहिए वो नहीं हो रही है। मुझे याद है यूपीए के दौर में जब प्याज के भाव 50 रुपए पहुंच जाते थे तो तमाम रिपोर्टर कैमरे लेकर मंडियों का चक्कर काटते थे....लोगों के किचन में जाकर सरकार के खिलाफ गृहणियों का भड़ास निकालते थे...महंगाई को लेकर सड़क से संसद तक मोर्चा निकाल जाता था....लेकिन आज ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा। पेट्रोल के भाव में कोई कमी नहीं आ रही लेकिन मीडिया चुप है, सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं लेकिन न्यूज चैनल वाले खामोश हैं।
मैं मानता हूं कि धारा 370 और कश्मीर का मुद्दा बड़ा है, मैं ये भी मानता हूं कि राम मंदिर का मुद्दा भी बड़ा है...लेकिन ये मानने को तैयार नहीं कि महंगाई कोई मुद्दा नहीं है। पर अफसोस देश की मीडिया फिलहाल महंगाई से ज्यादा उन मुद्दों को हवा दे रही है जिसका आम जनता से कोई सरोकार नहीं। सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस के लिए ये बड़ा मुद्दा था लेकिन कांग्रेस समेत तमाम बड़े विपक्षी दल खामोश बैठे हैं। मायावती चुप हैं, अखिलेश खामोश हैं, राहुल कुछ नहीं बोल रहे... यहां तक की लेफ्ट नेताओं को भी ये कोई बड़ा मुद्दा नजर नहीं आता।
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मेरी सोसायटी में काम करने वाले एक गार्ड की सैलरी करीब 12000 रुपए है...यानि 400 रुपए रोज...उसके घर में पत्नी, मां-बाप और बच्चों समेत 8 लोग हैं। जरा सोचिए इस पैसे में उसका कैसे गुजारा चलेगा? गोभी और परवल की बात तो छोड़िए उसके लिए आलू खरीदना भी मुश्किल हो गया है। प्याज तो शायद अभी उसके लिए सपने जैसा ही है। ये पहली बार नहीं है जब खराब मौसम के चलते प्याज के उत्पादन पर असर पड़ा है....ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब सब्जियों के दाम बढ़े हैं...लेकिन ये पहली बार हो रहा है कि सब कुछ जानते हुए भी सन्नाटा पसरा है। महंगाई को लेकर कहीं कोई शोर नहीं मच रहा....ऐसा लग रहा है कि सबसे पास इतना पैसा आ गया है कि उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि बाजार में सब्जी किस भाव बिक रही है।
ऐसा भी नहीं है कि इससे किसानों को किसी तरह का फायदा हुआ है...फायदा किसको पहुंच रहा है...जेब किसकी मोटी हो रही है वो सभी जानते हैं। वैसे प्याज की बढ़ती कीमतों से चिंतित सरकार ने विदेशों से प्याज का आयात करने का फैसला तो लिया है...लेकिन फिलहाल बाजार में कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ा है। कल तक रोटी-प्याज-नमक खाने वाले गरीब मजदूर अब सिर्फ नमक-रोटी खाने को मजबूर हो गए हैं। अगर जल्द ही महंगाई पर काबू नहीं पाया गया तो इसका हमारे जैसे मध्यम वर्ग के लोगों पर व्यापक असर देखने को मिलेगा।
-मनोज झा
(लेखक पूर्व पत्रकार हैं।)