कृषि कानून वापस होने से जीता कोई भी हो, हारा तो देश का किसान ही है

By अशोक मधुप | Nov 20, 2021

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानून वापिस लेने की घोषणा पर आंदोलनरत किसान नेता इसे अपनी जीत मान रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार की छवि खराब हुई है। भाजपाई खुश हैं कि इससे उन्हें किसानों का विरोध नहीं झेलना होगा। इस राजनैतिक शतरंज की बाजी में चाहे किसी दल को लाभ मिले या न मिले पर सबसे बड़ा नुकसान किसान का हुआ है। अब कोई भी राजनैतिक दल, कोई भी सरकार किसान हित के कानून बनाते हुए डरेगी। किसान हित की बात करते कई बार सोचेगी। इस लड़ाई में जीता कोई भी हो पर वास्तव में हारा तो किसान है।

इसे भी पढ़ें: कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता का परिचायक: बाबूलाल मरांडी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कानून वापस लेने की घोषणा से कांग्रेस सहित देश का विपक्ष परेशान है कि उसके हाथ से एक बड़ा मुद्दा छिन गया। तीनों कृषि कानून काफी समय से लंबित थे। भाजपा से पूर्ववर्ती सरकारें इन पर चिंतन और मनन कर रही थीं। उनकी इच्छा शक्ति नहीं थी। इसलिए वह लागू नहीं कर पाई। भाजपा ने यह सोचकर ये कृषि कानून बनाए कि इनका किसानों के साथ उन्हें लाभ मिलेगा। पर हुआ उल्टा। उन्हें ये कानून वापस लेने पड़े। बकौल कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हम आंदोलनकारी किसान नेताओं को अपनी बात सही से नहीं समझा पाए। एक बात और क्या तीनों कृषि कानून में सब गलत था? क्या कुछ भी किसान हित में नहीं था? क्या कोई सरकार ऐसा कर सकती है? इस पर सोचना किसी ने गवारा नहीं किया।


किसी ने कहा है कि एक झूठ को इतनी बार बोलो, इस तरह बोलो कि वह सच लगने लगे। सच बन जाए। इस मामले में ऐसा ही हुआ भी। किसानों के लाभ के लिए बने कृषि कानून लगातार बोले जा रहे झूठ के कारण किसान विरोधी लगने लगे। कानून लागू करने के बाद किसान आंदोलन को देखते हुए सरकार ने बार−बार किसान नेताओं से कहा कि वे कानूनों की कमियां बताए, सरकार संशोधन करेगी। सुधार करेगी। किसान नेता ने कभी कमी नहीं बताई। उनकी एक ही रट रही कि सरकार तीनों कानून वापस ले।


आंदोलनकारियों के बीच कुछ ऐसे लोग आ गए थे जो इस मामले को निपटने देना नहीं चाहते थे। एक तरह से हालात यह बनते जा रहे थे कि सरकार बल प्रयोग करे। गोली चलाए। किसान नेता चाहते थे कि आंदोलन वापस हो या सरकार लाठी−गोली चलाए। सरकार इससे बचना चाहती थी। जो हालत 26 जनवरी पर किसान प्रदर्शन के दौरान थे, वैसे ही अब थे। इसीलिए ये सब टलता रहा। आ रही सूचनाओं, सूचना तंत्र की मिल रही खबरों के आधार पर सरकार पीछे हट गई। उसने किसान कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री मोदी तथा भाजपा के नेतृत्व को लगा कि इससे मामला टल जाएगा। लेकिन ऐसा होने वाला लगता नहीं। विपक्ष और आंदोलनकारी नेता इसे चुनाव तक गरमाए रखना चाहते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने मांग की है कि सरकार किसान आंदोलन में मरने वाले सात सौ किसानों के परिवार को मुआवजा और परिवार के एकदृएक सदस्य को सरकारी नौकरी दे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आंदोलन के दौरान शहीद हुए प्रत्येक किसानों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये का मुआवजा देने की। यही बात कई अन्य विपक्षी नेता कह रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: कृषि कानूनों को वापस लेने के निर्णय पर बोले केंद्रीय मंत्री, हम कुछ किसानों को नहीं समझा सके

किसान नेता राकेश टिकैत और संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य शिवकुमार शर्मा कक्काजी का कहना है कि कानून वापस होने के बाद ही वह आंदोलन खत्म करेंगे। वे किसान की उपज का न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने के लिए कानून बनाने तक आंदोलन जारी रखने की बात कह रहे हैं। राकेश टिकैत ने मांग की है कि सरकार एमएसपी पर उनसे बात करे। इस पर बात होगी तो और कुछ मामला उठ जाएगा। किसान नेता एसपी सिंह का कहना है कि सरकार ने बहुत देर से फैसला लिया। हमारे 700 से अधिक किसान आंदोलन की भेंट चढ़ चुके हैं। उनकी शहादत हुई है। हमने बहुत कुछ खोया है। इसलिए सरकार के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना भर काफी नहीं है। उसे इस आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने की घोषणा भी करनी होगी। कुछ बिजली बिल माफ करने की मांग कर रहे हैं। हालत यह हो गई है कि जितने मुंह हैं, उससे ज्यादा नई मांग हो रही है। किसान नेताओं की इस प्रतिक्रिया से लग रहा है कि अभी बहुत आसानी से सब कुछ पटरी पर आने वाला नहीं है। कांग्रेस और विपक्ष भी अभी इस मुद्दे को खत्म नहीं होने देगा। एक बात और पश्चिम उत्तर प्रदेश का किसान विशेषकर जाटों का बड़ा मुद्दा अभी नहीं उठा। पिछले चुलाव में जाट आरक्षण की मांग उठी थी। तब भी कहा गया था कि भाजपा जाटों को आरक्षण दे, नहीं तो उसका बायकाट किया जाएगा। अब फिर चुनाव आने को है, जाट समाज इसे फिर गरमाएगा। अभी वह किसान आंदोलन की वजह से चुप है। इस पूरे आंदोलन की खास बात ये है कि किसान नेता सक्रिय हैं, विपक्ष सक्रिय है, सक्रिय नहीं है तो किसान। खामोश है तो किसान। उसकी ये खामोशी, उसकी ये चुप्पी उसे अब लंबे समय तक नुकसान पहुंचाएगी। उसके हित की योजनाएं बनाते समय सरकारें डरेंगी। देखा जाये तो इस आंदोलन में जीता कोई भी हो, हारा तो बस देश का किसान है।


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

प्रमुख खबरें

IPL 2025 Mega Auction: श्रेयर अय्यर 21 करोड़ में बिके, शतक के बाद मचाया धमाल

Suhana Khan wishes Agastya Nanda| अपने Rumoured बॉयफ्रेंड अगस्त्य नंदा को ऐसे बर्थडे विश किया SRK की लाडली ने

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की TMC ने कर दिया बड़ा खेल, एक सीट के लिए तरसी बीजेपी

मणिपुर में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर लगी रोक दो दिन के लिए बढ़ाई गई