सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों !, भागवत की कथा साक्षात भगवान की वाङ्ग्मय मूर्ति है, धर्माचार्यों के मुताबिक यह मुक्ति का द्वार है। आइये ! इस कथा सरोवर में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
पिछले अंक में हम सबने भगवान श्रीकृष्ण-जन्म की कथा सुनी। कारागार में देवकी की गोद में बालक की जगह कन्या देखकर कंस घबरा जाता है। सोचने लगता है, अरे ! आकाशवाणी की भविष्यवाणी असत्य कैसे हो सकती है? खैर ! उसने कन्या का पैर पकड़ कर घूमा ही रहा था कि कन्या हाथ छुड़ाकर भाग गई और अष्टभुजी होकर प्रकट हो गई।
आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं–
कन्या के रूप में वह योगमाया बोली- हे मूर्ख ! तू मुझे क्या मारना चाहता है। तुझे मारने वाला तो पैदा हो गया। देखिए ! आज केवल कृष्णजन्म ही नहीं है, बल्कि योगमाया का भी जन्मदिन है। जिन्होंने कन्या के रूप में जन्म लेकर बाल-कृष्ण को बचाया और अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। जब कंस ने योगमाया का पैर पकड़कर पत्थर पर पटकना चाहा, तब उसके हाथ से छूटकर योगमाया ने कहा- ''कंस तुमको तो मैं ही मार डालती, किन्तु मेरा पैर पकड़कर तुमने विनयशीलता का परिचय दिया है। इसलिए तुम्हें क्षमा-दान देती हूँ।
उस कन्या की बात सुनकर कंस काँप गया, पूछा-- कहाँ पैदा हो गया? किस घर में। कन्या बोली पूरी जन्म पत्री नहीं बताऊँगी। तेरा शत्रु तेरे ही आस-पास हैं, ढूंढ़ निकाल। ऐसा कहकर देवी अंतर्धयान हो गईं। कंस घबराकर अपनी बहन देवकी के चरणों में गिर पड़ा। बहन ! आज पहली बार पता चला कि देवता भी झूठ बोलने लगे हैं।
दैवमप्यनृतं वक्ति न मर्त्या एव केलम्।
पहले आकाशवाणी हुई थी कि तेरा लाल मेरा काल होगा अब देवी कह रहीं हैं कि तेरा काल कहीं और पैदा हो गया है। दोनों में कोई एक तो झूठा है। मैंने आकाशवाणी पर भरोसा करके तेरे बच्चों को मार डाला। मेरे अपराध को क्षमा करना। कंस ने गिड़गिड़ाकर देवकी से क्षमा मांगी। देवकी क्या कहतीं, कंस को क्षमा कर विदा किया।
कंस ने देवकी वसुदेव को भी मुक्त कर दिया। कंस ने तुरंत राक्षसों को बुलाकर कहा- एक महीने के अंदर जितने बच्चे पैदा हुए हैं सबको मार डालो। राक्षस चारों ओर फैल गये।
शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित !
विप्रा; गावश्च वेदाश्च तप; सत्यम दम; शम;
श्रद्धा दया तितिक्षा च क्रतवश्च हरेस्तनु; ॥
ब्राह्मण, गो माता, वेद ये भगवान के साक्षात अंग हैं। जो वेदों पर प्रहार करता है ब्राह्मण और गायों पर अत्याचार करता है तपस्वियों को सताता है सत्य का आचरण नहीं करता जिनके हृदय में दया और करुणा समाप्त हो गई है, वे साक्षात नारायण के अपराधी हैं। वे अपने पाप कर्मों से स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। कंस का अत्याचार बढ़ गया। उधर नंदभवन में क्या हुआ आइए देखते हैं।
नंदस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताहलादो महामना;
आहूय विप्रान वेदज्ञान स्नात; शुचिरलंकृत;॥
नन्द बाबा नब्बे साल के हो गए हैं पर कोई छोकरो ना भयो। एक दिन नन्द बाबा के घर साधु-मंडली आई। नन्द बाबा ने सबको चकाचक खीर मालपूआ खिलाया। साधु बाबा ने पेट भर के खायो और डकार लेकर पेट पर हाथ घुमायो तब तक नन्द बाबा ने दंडवत कियो। जैसे ही दंडवत कियो कि साधु बाबा के मुंह से आशीर्वाद निकल गयो, नंदबाबा पुत्रवान भव। नन्द बाबा हाथ जोड़कर बोले- महाराज मैं नब्बे साल का बूढ़ा आदमी, इस बुढ़ापा में क्या आशीर्वाद दे रहे हैं। साधु बाबा बोले- तो ठीक है जब तक तोकों पुत्र ना हो जाय मैं तुम्हारा घर छोडने वाला नहीं हूँ।
क्या करोगे, महाराज ! संतान गोपाल का अनुष्ठान करेंगे। देखते हैं छोरा कैसे नहीं होय। तू चकाचक भोजन कराये जाय और हम भजन करे जाय। देखे छोरा कैसे ना होय। नंदबाबा ने भंडारे खोल दिए, आपके आशीर्वाद से नौ लाख गैया हैं। दूध दही की कोई कमी नहीं। खूब प्रेम से पाओ महाराज। भंडारे खुल गए मालपूआ रबड़ी छनने लगी। साधु मंडली भजन कीर्तन जप-तप करने लगी। संत महात्माओं के आशीर्वाद का चमत्कार हुआ यशोदा रानी को गर्भ धारण का परम लाभ भयो। नन्द बाबा को भनक पड़ी खुशी का पारवार नहीं रहा। पूरे व्रज मण्डल में खुशी की लहर दौड़ गई। गोपियों ने चौरासी-चौरासी गज के लहंगे सिलवा लिए। यही चुनरी लहंगा बधाई में लेकर जाएंगी। नन्दबाबा अपनी बहन को लेने पहुँच गए। अरे सुनन्दा ! जल्दी चल तू बुआ बनने वाली है। खुशी के मारे सुनन्दा उछल पड़ी और दो महीने पहले से ही मायके में डेरा डाल दिया। यशोदा भाभी की सेवा करने लगी। पर आज कौन आयो, कौन गयो किसी को भनक नहीं पड़ी। खर्राटे मारकर सब सोते रहे। नीद खुली तो सुनन्दाजी की। सुनन्दा ने देखा कि आज घर के दरवाजे कैसे खुले पड़े हैं। भाभीजी अब तक कैसे नहीं जगी। जब सुनन्दा ने भाभी के कक्ष में झाँककर देखा कि यशोदा भाभी गहरी निद्रा में है, उन्हें होश नहीं और एक नील कमल के समान शिशु बगल में किलकारियाँ भर रहा है। सुनन्दा ने भीतर जाकर बालक का सौंदर्य देखा, आश्चर्य से नाच उठी और चिल्लाने लगी—नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।
हाथी दियो घोड़ा दियो और दियो पालकी॥ ---------------------------------
शेष अगले प्रसंग में । --------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी