By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 08, 2022
देहरादून। पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अगुवाई करने के बावजूद चुनावी राजनीति में पिछड गई क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी ने मंगलवार को दावा किया कि इस विधानसभा चुनाव में कम से कम आठ से 10 सीटें उसके खाते में आएंगी। यहां पीटीआई-भाषा’ से एक विशेष बातचीत में ऐरी ने बताया कि 14 फरवरी को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने 70 में से 48 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे उम्मीद है कि इनमें से कम से कम आठ से 10 सीटों पर हम जीतेंगे जबकि बाकी सीटों पर भी हमारा प्रदर्शन बेहतर रहेगा और हमारा मत प्रतिशत बढे़गा।’’ प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने चार सीटें जीतीं थी। इन चार में से एक कनालीछीना सीट से ऐरी निर्वाचित हुए जबकि संयुक्त उत्तर प्रदेश में (जब उत्तराखंड उप्र का हिस्सा था) वह डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे थे। वर्ष 2007 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उक्रांद की सीटों की संख्या घटकर तीन रह गयी जो 2012 में एक तक सिमट गयी।
पिछले 2017 के चुनाव में पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पायी। वर्ष 1979 में प्रसिद्ध आंदोलनकारी इंद्रमणि बडोनी, डीडी पंत और बिपिन चंद्र त्रिपाठी के साथ मिलकर उक्रांद की स्थापना करने वाले ऐरी ने माना कि उत्तराखंड निर्माण के लिए नब्वे के दशक में जारी राज्य आंदोलन को व्यापकता देने के लिए उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया गया जिससे पार्टी काडर बिखर गया। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य आंदोलन में सबको शामिल करने के लिए उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया गया जिससे उक्रांद की पहचान पीछे चली गयी और पार्टी का काडर बिखर गया।’’ इसके अलावा, उन्होंने बताया कि 1996 में लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया गया जिससे राज्य आंदोलन को देशव्यापी पहचान मिली लेकिन उक्रांद की चुनावी संभावनाएं प्रभावित हुईं। उन्होंने कहा कि ‘‘बीच-बीच में पार्टी नेताओं के आंतरिक मसलों से भी उक्रांद के हित चोटिल हुए जबकि शराब और धन के प्रयोग से राष्ट्रीय दलों के बदलते चुनावी तौर तरीकों में भी संसाधनहीन उक्रांद अपने आपको ढाल नहीं पाया।’’
हालांकि, इस बार चुनाव में अच्छे परिणाम की आस का कारण पूछे जाने पर 68 वर्षीय ऐरी ने कहा कि पिछले 21 सालों में कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां प्रदेश में जनाकांक्षाएं पूरी करने में विफल रही हैं और अब लोग उक्रांद को एक मौका देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले अगस्त में उक्रांद की बागडोर फिर से संभालने के बाद प्रदेशभर के भ्रमण से यह बात निकलकर सामने आई है कि जनता खासतौर पर नौजवानों की सोच में बदलाव आ रहा है और उन्हें लगता है कि उक्रांद को एक मौका देना चाहिए। ऐरी ने कहा, ‘‘अलग राज्य को बने 21 साल पूरे हो चुके लेकिन आज तक यह भी पता नहीं है कि राजधानी देहरादून है या गैरसैंण। दोनों पार्टियां इस मुद्दे को टालती जा रही हैं।’’ पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ में होने की पक्षधर रहे उक्रांद सहित राज्य की जनता के लिए चमोली जिले में स्थित गैरसैंण हमेशा से एक प्रमुख और भावनात्मक मुद्दा रहा है। गैरसैंण में पूर्ववर्ती कांग्रेस ने विधानसभा भवन बनाने की शुरूआत की जबकि वर्तमान भाजपा सरकार ने उसे प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया लेकिन उसे स्थायी राजधानी का दर्जा नहीं मिला है। झारखंड, तेलंगाना तथा अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में उक्रांद के सत्ता तक न पहुंच पाने के बारे में पूछे जाने पर ऐरी ने कहा कि इन राज्यों के उलट उत्तराखंड में राष्ट्रीयता की भावना ज्यादा है। उन्होंने कहा, ‘‘ इन राज्यों की जनता में क्षेत्रीयता की भावना ज्यादा है जबकि उत्तराखंड की जनता राष्ट्रीयता या मुख्यधारा वाली भावना में बहुत विश्वास करती हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसके अलावा, दूसरी बात यह भी है कि उन्होंने राष्ट्रीय दलों वाले चुनावी तौर तरीके भी सीख लिए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम वे तौर तरीके नहीं अपना सकते या अपनाना नहीं चाहते।