By अभिनय आकाश | Aug 18, 2023
कांग्रेस पार्टी ने अपने दिल्ली व पंजाब के नेताओं के विरोध के बावजूद दिल्ली सरकार पर केंद्र दारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर संसद में समर्थन दिया। इसके उसने संकेत देने की कोशिश की कि विपक्ष की मजबूती के लिए वो कितना भी झुकने को तैयार है। हालांकि इसका कोई खास फायदा होता नहीं दिखा और दिल्ली सेवा विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है। वहीं लोकसभा के लिहाज से एक और अहम राज्य बंगाल जहां से 42 सीटें आती हैं। ममता बनर्जी का कहना है कि बंगाल में वैसे भी वामपंती दलों व कांग्रेस का आधार समाप्त हो गया है। ऐसे में यदि वो तृणमूल कांग्रेस को सहयोग करते हैं तो पूरे बंगाल में विपक्षी दलों का प्रभाव बढ़ने से भाजपा का सफाया हो सकता है। ऐसे में वामपंथी दलों को लगता है कि यदि उन्होंने पश्चिम बंगाल को ममता दीदी के हवाले कर दिया तो वहां उनका रहा सहा जनाधार भी समाप्त हो जाएगा। केरल में भी कांग्रेस व वामपंथी दल आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। मगर देश के अन्य प्रदेशों में मिलकर चुनाव लड़ते हैं। ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस से केरल की तरह ही सामंजस्य चाहते हैं।
राहुल की सदस्यता बहाल होने के बाद ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस
इंडिया गठबंधन की मीटिंग ऐसे वक्त में आयोजित होने जा रही है, जब मानहानि मामले में राहुल गांधी को दोषसिद्धि से राहत मिल गई है। ऐशे में जो कांग्रेस अभी तक मीटिंग में नेतृत्व को लेकर खास उत्सुकता नहीं दिखा रही थी। वो अब केंद्रीय भूमिका स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकती है। वो बैठक में तमाम मुद्दों पर अपना पक्ष रखने और आगे बढ़ाने के लिए दबाव बना सकती है। विपक्षी गठबंधन के संयोजक के तौर पर रेस में नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और शरद पवार आगे माने जा रहे हैं। लेकिन तीनों की कुछ सीमाएं हैं। नीतीश की जहां अपने ही राज्य में पकड़ कमजोर हो रही है, वहीं शरद पवार की पार्टी में हुई हालिया टूट के बाद वो कमजोर पड़े हैं। हाल ही में पीएम के साथ एक कार्यक्रम में शिरकत को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके अलावा, जिस तरह से राहुल गांधी लगातार पीएम मोदी से मोर्चा लेते रहे हैं, हाल ही में इसकी झलक संसद में भी देखने को मिली थी। ऐसे में अब वो ही पीएम मोदी को चुनैती देने के लिए विपक्ष का चेहरा बनेंगे। देखना होगा कि क्या राहुल गांधी, कांग्रेस इसके लिए तैयार होगी या फिर इंडिया के खेमे में लोग राहुल गांधी की लीडरशिप को आसानी से स्वीकार कर लेंगे?