मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी...ट्रंप के भाषणों को टाइप करते-करते स्टेनोग्राफर के छूटे पसीने, कोई तो रोक लो

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By अभिनय आकाश | Jan 31, 2025

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी...ट्रंप के भाषणों को टाइप करते-करते स्टेनोग्राफर के छूटे पसीने, कोई तो रोक लो

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी। मेरे बारे में कुछ कहना नहीं, चुप चाप बैठे रहो बोलना नहीं। वैसे ये लाइन एक गाने के बोल हैं। अगर आपका जन्म भी 90 के दशक में हुआ है तो आप 1994 में गोविंदा की आई गैंबलर फिल्म का गाना जरूर सुना होगा। इस गाने को रैपर देवांग पटेल ने गाया था। लेकिन लगता है कि इस गाने को केवल आप ने ही नहीं बल्कि एक और बेहद खास व्यक्ति ने चुपके चुपके सुन लिया था। अब ये खास शख्स इस गाने को सुनकर बस इंजॉय भर कर लेते तब तो ठीक थी। लेकिन दिक्कत ये है कि ये शख्स इस गाने को सुनकर शब्द सह फॉलो भी कर रहे हैं। इस खास व्यक्ति के ये करूं या वो करूं के चक्कर में इनके खुद के देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया में खलबली मच गई है।

मेरे आगे आना नहीं, मुझसे टकराना नहीं 

शपथ लेने के कुछ ही घंटों में इन्होने फास्ट ट्रैक अंदाज में पहले की सरकार के 78 से ज्यादा फैसले बदल दिया। धराधर एक्सीक्यूटिव ऑर्डर पास कर दिए। ऐसा लग रहा हो कि नायक फिल्म के एक दिन के चीफ मिनिस्टर शिवाजी राव की तरह ट्रंप भी घंटा बर्बाद नहीं करना चाहते। लेकिन कुल मिलाकर कहें तो ट्रंप साहब ने अपने शपथ के पहले हफ्ते के भीतर ही बता दिया कि आने वाला समय कैसा होने वाला है। वैसे तो ट्रंप के भाषण में अतिश्योक्तियों की भरमार होती है, जिसे अंग्रेजी में सुपरलेटिव कहते हैं। जैसे ग्रेटेस्ट, बेस्ट, फाइनेस्ट, लोएस्ट। एक भाषण में कम से कम तीस बार ट्रंप ऐसी अतिश्योक्तियों का इस्तेमाल करते हैं। ट्रंप के भाषणों को देखकर माने अनजान साहब का लिखा वो गाना याद आ तूने अभी देखा नहीं, देखा है तो जाना नहीं, जाना है तो माना नहीं। दुनिया दीवानी मेरी। मेरे आगे पीछे भागी। मेरे आगे आना नहीं, मुझसे टकराना नहीं किसी से भी हारे नहीं हम। 

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ड्राइवर गाड़ी निकालो हमें डब्लूएचओ से बाहर जाना है

शपथ लेने के तुरंत बाद इन्होंने कहा कि अवैध अप्रवासियों को बर्थ राइट सिटीजनशिप नहीं मिलेगी। फिर कहा ड्राइवर गाड़ी निकालो हमें डब्लूएचओ से बाहर जाना है। फिर कहा क्लाइमेट चेंज बकवास है। अमेरिका पेरिस समझौते जैसी फालतू चीज में शामिल नहीं होगा। ट्रम्प ने आते ही तीन बड़े संदेश दे दिए हैं। एक, वे अपने देश में 'वोक' विचारों की नकेल बस देंगे। दो, वे अमेरिका की वैश्विक सहभागिताओं को खत्म कर देंगे, चाहे वह युद्धों में ही, जलवायु कार्रवाई में हो या सार्वजनिक स्वास्थ्य में। और तीन, अमेरिकी वर्चस्व की रक्षा के लिए ताकत कर जोर दिखाने से नहीं चुकेंगे। 

कोई तो रोक लो...

डोनाल्ड ट्रम्प बहुत अधिक बातें कर रहे हैं, उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों को लिखने के लिए जिम्मेदार लोग सभी शब्दों को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सार्वजनिक टिप्पणियों को टाइप करने में व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) के स्टेनोग्राफर के पसीने छूट गए हैं। आलम यह है कि काम के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए अतिरिक्त स्टेनोग्राफर की भर्ती पर विचार किया जा रहा है। फैक्टबे डॉट एसई वेबसाइट ने कहा कि ट्रंप द्वारा कैमरे के सामने बिताई गई अवधि में स्टार वॉर शृंखला की तीन फिल्मों को एक के बाद एक लगातार देखा जा सकता है, जिसके बाद भी कुछ समय बचेगा। 

स्टेनोग्राफर के छूटे पसीने

एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कार्यालय में लौटने के बाद से अपने सार्वजनिक भाषण की मात्रा में नाटकीय रूप से वृद्धि की है, जबकि व्हाइट हाउस के स्टेनोग्राफरों को अभूतपूर्व संख्या में शब्दों से अभिभूत कर दिया है। अपने पहले सप्ताह में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने लगभग 7 घंटे और 44 मिनट तक बात की, जबकि 81,235 शब्दों का उपयोग किया। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने पहले सप्ताह के दौरान 2 घंटे और 36 मिनट में 24,259 शब्द बोले थे। एपी की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने कहा कि सार्वजनिक उपस्थितियों में ट्रंप की ओर की गई टिप्पणियों को सुनकर टाइप करने में व्हाइट हाउस के स्टेनोग्राफर के कान और उंगलियां बुरी तरह थक गई हैं। 

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एक दिन को छोड़कर डिक्टेटर नहीं बनेंगे

चुनाव के दौरान फॉक्स न्यूज के पत्रकार ने ट्रंप से पूछा था कि क्या आप डिक्टेटर बनने जा रहे हैं। तो जवाब में उन्होंने कहा था कि पहले दिन को छोड़कर डिक्टेटर नहीं बनेंगे। ट्रंप के बारे में कहा जाता है कि प्रेस उनके शब्दों में ही अटक जाता है। ट्रंप को गंभीरता से नहीं लेता। लेकिन उनके मतदाता ट्रंप के शब्दों की परवाह नहीं करते। मगर उनके शब्दों से ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। यानी ट्रंप पर भरोसा करते हैं। ये लाइन सेलिना जीटो नामक पत्रकार की है, जिन्होंने 10 साल में कई बार ट्रंप का इंटरव्यू लिया है। इन्होंने फ्री प्रेस नाम की  वेबसाइट पर ट्रंप के साथ अपने अनुभव को भी साझा किया है। 


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