हमें विदेशों से सीखना अच्छा लगता है। वहां अनुशासन की उंगली थाम कर सुरक्षा लौटने लगी है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में साइकिल व्यायाम की पर्याय बन रही है। हमारे यहां जिसे सामाजिक दूरी कहा जा रहा है उसे उन्होंने शारीरिक अनुशासन मानकर व्यवहार में शामिल कर लिया है। तीन में से एक व्यक्ति का टेस्ट हो चुका है और कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आए नब्बे से ज़्यादा प्रतिशत व्यक्तियों को ट्रेस कर लिया गया है। गौर से पढ़िए, क्वारंनटीन नियम तोड़ने पर साढ़े सात लाख रूपए का जुर्माना लिया जा रहा है।
हमारे देश में नियमों का पालन हमेशा मुश्किल रहा है। हमारे नायक, राजनीति, शक्ति और अनुशासन की कुर्सी पर विराजकर नियम बनाते हैं और खुद नियमों को धराशायी करते रहते हैं। पिछले दिनों एक वृक्षारोपण समारोह में मंत्रीजी आए हुए थे, अब मंत्रीजी आए हों तो समारोह के बाद खान पान भी ज़रूरी होता है। सेनीटाइजड माहौल में मुफ्त खाना मिले तो दो गज की दूरी की कौन परवाह करता है। क्या हम अग्रिम सकारात्मकता की नीति पर चल रहे हैं कि अब तो कोरोनाजी ने हमारे साथ ही रहना है। दुःख भरी हैरानी यह है कि वर्तमान में जो अनुशासन वांछित है कई बड़ी कुर्सियों को अभी तक वह अनुशासन, स्वाद नहीं लगा। महत्वपूर्ण लोग अपनी आन, बान और शान के कारण ऐसी शक्ति के मालिक हो गए हैं कि महामारी क्या वक़्त से भी नहीं डरते। बच्चा बच्चा समझने लगा है कि दो गज़ की दूरी और मास्क ज़रूरी है लेकिन बात है कि समझ में नहीं आती। उत्साहित वोटर, छोटी बड़ी हस्तियां, कर्मठ कार्यकर्ता, चर्चा और खर्चा करवाने वाली बैठकें, जादू की झप्पियां, बड़ी गाड़ियां और उद्घाटन, बचाव कार्यों का निरीक्षण यहां तक पत्रकार वार्ताएं भी इंतज़ार कर सकती हैं लेकिन कोरोना इंतज़ार नहीं करता और गलती भी नहीं करता, क्यूंकि वह इंसान नहीं है। वह किसी को भी पकड़ सकता है, हो सकता है कुछ समय बाद उसे प्रशासनिक सलीका आ जाए कि किसे छोड़ना है और किसे नहीं। सरकारी विज्ञापन कहते हैं, बदल कर अपना व्यवहार करें कोरोना पर वार, याद रखें दो गज़ दूरी, बेहद है ज़रूरी।
निर्देशों का पालन सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक नेताओं से शुरू होना चाहिए ताकि आमजन उनसे सीखें। अखबार उनके रंगीन चित्र खबर सहित बेहतर तरीके से छापते हैं। दर्जनों फोटो ख़बरें बताती हैं कि सम्माननीयों द्वारा महामारी से सम्बंधित सावधानियां बरती गई या नहीं, अगर नहीं बरती गई तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि उन्होंने सरकारी आदेशों का पालन नहीं किया। आशंका की सम्भावना है कि अनेक महानुभावों को पुराना शब्द गज़ समझ नहीं आता होगा। सामाजिक दूरी बनाए रखने में तो हम सिद्धहस्त हैं, यह अलग बात है कि इस दूरी को खत्म करने की ज़रूरत ज्यादा है। जुर्माना वसूलने बारे स्पष्ट घोषणा कर जुर्माना वसूला भी जाए तो नियम लागू करने में मदद मिल सकती है। कोरोना योद्धाओं को सम्मानित करने में इंतज़ार नहीं हो रहा, क्या उन्हें कुछ उपहार देकर, चित्र खिंचवाकर अपने उत्तरदायित्व का समापन हो रहा है। यह कड़वा सच अच्छी तरह से समझ लेने की ज़रूरत है कि अदृश्य पहलवान कोरोना से कुश्ती अभी लम्बी चलने वाली है और सभी क्षेत्र के कोरोना योद्धाओं को, तमाम किस्म की सुविधाएं निरंतर उपलब्ध करवाने की ज़रूरत है। महामारी में राजनीति की मारामारी कम करना अच्छी नीति मानी जाएगी। दूरी नापने के लिए इंच इन टेप भी दी जा सकती है।
- संतोष उत्सुक