अजमेर शरीफ विवाद को लेकर महबूबा मुफ्ती के निशाने पर आए पूर्व CJI, कहा- देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को हिलाया जा रहा

By अंकित सिंह | Nov 29, 2024

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के एक फैसले की कड़ी आलोचना की है और आरोप लगाया है कि इसमें देश को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की क्षमता है। मीडिया को संबोधित करते हुए, उन्होंने बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की और उन घटनाओं का हवाला दिया जो समुदायों के बीच और कलह पैदा कर सकती हैं। अजमेर शरीफ दरगाह के भीतर शिव मंदिर का दावा करने वाले एक मुकदमे पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि निर्णय दिया गया कि जो भी स्थान संदिग्ध हो उसका सर्वे कराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का 1991 का फैसला कहता है कि धार्मिक स्थल की 1947 वाली स्थिति को बदला नहीं जा सकता। 

 

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पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य से पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने एक ऐसा फैसला दिया जिसके चलते अब तक मस्जिदों में ही शिवलिंग खोजे जाते थे लेकिन अब दरगाहों में भी खोजे जाते हैं और वह भी अजमेर शरीफ जैसी दरगाहें जहां मुसलमानों से ज्यादा हिंदू दर्शनार्थी आते हैं। यह 800 साल पुराना है। उन्होंने कहा कि इसके बाद जल्द ही वे मुसलमानों के घरों में तलाशी शुरू कर सकते हैं। वे देश को 1947 की तरह विभाजन और हिंसा की ओर ले जा रहे हैं। हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को हिलाया जा रहा है। वे हिंदू-मुस्लिम दरार पैदा कर रहे हैं और इसमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बहुत खराब भूमिका है।



उत्तर प्रदेश के संभल में हाल की हिंसा का जिक्र करते हुए, जहां कई निर्दोष लोगों की जान चली गई, महबूबा ने चेतावनी दी कि ऐसी घटनाएं, अगर अनियंत्रित रहीं, तो देश को अराजकता की ओर धकेल सकती हैं। उन्होंने कुछ ताकतों पर भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव को नष्ट करने का आरोप लगाया, जिसे स्थापित करने के लिए जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरदार पटेल और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने कड़ी मेहनत की। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को हिलाया जा रहा है। बेरोजगारी को दूर करने, शिक्षा में सुधार करने या बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के बजाय, हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। 

 

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उन्होंने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा इसी फैसले का प्रत्यक्ष परिणाम है। पहले मस्जिदों और अब अजमेर शरीफ जैसे मुस्लिम धर्मस्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप और अधिक रक्तपात हो सकता है। सवाल यह है कि विभाजन के दिनों की याद दिलाने वाली इस सांप्रदायिक हिंसा को जारी रखने की जिम्मेदारी कौन लेगा? 

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