By अभिनय आकाश | Mar 26, 2022
बिहार के पटना से करीब 80 किलोमीटर के दायरे के अंदर है वो जगह। वो महाविद्यालय जिसकी प्रसिद्धि विश्व विख्यात है। जहां पांचवी शताब्दी में दुनियाभर से विद्वान आया करते थे। लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि ये यूनिवर्सिटी पूरी तरह ही बर्बाद हो गई। कभी यहां दुनिया के सबसे बड़ा विश्वविद्यालय हुआ करता था। जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने जला कर राख कर दिया। उसी ने बिहार शरीफ की स्थापना की। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि आखिर इसका इतिहास क्या था? नालंदा यूनिवर्सिटी को क्यों तबाह किया गया। वर्तमान समय में इसकी हालत क्या है।
नालंदा प्राचीन भारत के मगध साम्राज्य में स्थित एक मशहूर बौद्ध विश्वविद्यालय हुआ करती थी। जिसका निर्माण गुप्त राजवंश के सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के बेटे राजाकुमार गुप्त प्रथम ने पांचवी शताब्दी में की थी। कहा जाता है कि ये उस समय केवल भारत ही नहीं उस दौर में ये दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे मशहूर विश्वविद्यालय हुआ करती थी। यहां के छात्र केवल भारत ही नहीं बल्कि चीन, जापान, कोरिया और तुर्की जैसे देशों के साथ ही पूरे एशिया से आते थे। साहित्यिक अभिलेखों और शिलालेखों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय का डेटा योग्य इतिहास गुप्त काल से शुरू हुआ, जो कम से कम 2100 साल पुराना है, पुरातात्विक खुदाई और आगे की खोजों से यह साबित होता है कि यह 1200 ईसा पूर्व से आगे की अवधि से अस्तित्व में है। नालंदा सहित सभी प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों ने वैदिक शिक्षा के अत्यधिक औपचारिक तरीकों का पालन किया। यह गुप्त थे जिन्होंने विश्वविद्यालय शिक्षा को संरक्षण दिया, जिससे नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
10 हजार छात्र, 2 हजार शिक्षक
ऐसे सबूत हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के भीतर संरचनाओं के निर्माण के लिए विदेशी राजाओं ने दान दिया था। इंडोनेशिया के एक शैलेंद्र राजा के पुरातात्विक साक्ष्य हैं जिन्होंने परिसर के भीतर एक संरचना का निर्माण किया था। नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा ग्रहण करने की एक अद्भूत भूमि थी जहां के परिसर में 10 मंदिर, कक्षाएं, ध्यान कक्ष, मठ, छात्रावास आदि शामिल थे, जिनमें झीलों और पार्कों में आठ परिसर शामिल थे। उस वक्त इस विश्वविद्यालय में 10 हजार से ज्यादा छात्र और उन्हें पढ़ाने के लिए दो हजार से ज्यादा शिक्षक हुआ करते थे।
खिलजी ने किया आग के हवाले
1193 ई. में बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में मामलुक के नाम से प्रचलित तुर्की मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नालंदा को लूटा और नष्ट कर दिया। नालंदा विश्वविद्यालय का महान पुस्तकालय इतना विशाल था कि इसमें 9 मिलियन से अधिक पांडुलिपियों के बारे में बताया गया है। पारंपरिक तिब्बती स्रोतों के अनुसार, नालंदा विश्वविद्यालय में पुस्तकालय तीन बड़ी बहुमंजिला इमारतों में फैला हुआ था। इनमें से एक इमारत में नौ मंजिलें थीं जिनमें सबसे पवित्र पांडुलिपियां थीं। आक्रमणकारियों द्वारा इमारतों में आग लगाने के बाद तीन महीने तक पुस्तकालय जलता रहा। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़फोड़ की और मठों को नष्ट कर दिया और भिक्षुओं को वहां से खदेड़ दिया।
एएसआई की खोज में मिली हिंदू देवी-देवताओं की कलाकृति
अवध में कुतुबुद्दीन ऐबक का सेनापति बख्तियार खिलजी था। फ़ारसी इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने अपनी पुस्तक तबक़त-ए-नासिरी में कुछ दशक बाद उनके कार्यों को दर्ज किया। खिलजी को बिहार की सीमा पर दो गांव सौंपे गए थे। अवसर को भांपते हुए, उन्होंने बिहार में कई लूटपाट छापे शुरू किए। जिसके लिए उसे पुरस्कृत किया गया। हौसला बढ़ा, खिलजी ने बिहार के एक किले पर हमला करने का फैसला किया और एक बड़ी लूट को अंजाम दिया। इसकी गलत व्याख्या की गई है कि नालंदा केवल एक बौद्ध केंद्र था। एएसआई की खोज के अनुसार, खोजी गई कई कलाकृतियाँ हिंदू देवी-देवताओं की थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में जानने योग्य बातें
नालंदा विश्वविद्यालय कला का एक अद्भुत नमूना है। कहा जाता है कि इस विश्वविद्यालय में 300 कक्ष, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए एक 9 मंजिला विशाल पुस्तकालय हुआ करता था। जिसमें उस वक्त 3 लाख से ज्यादा किताबें मौजूद थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय को तक्षशिला के बाद दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। आवासीय परिसर के तौर पर ये पहला विश्वविद्यालय है जो करीब 800 वर्षों तक अस्तित्व में रहा।
नालंदा विश्वविद्यालय में छात्रों का चयन उनकी योग्यता के अनुसार होता था और छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी। इसके अलावा रहने और खाने के भी कोई पैसे नहीं अदा करने पड़ते थे।
विश्वविद्यालय में 10 हजार से ज्यादा छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे और 2 हजार से अधिक शिक्षक उन्हें शिक्षा देते थे।
नालंदा में उस दौर में तुर्की, कोरिया, जापान, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई देशों से छात्र पढ़ने के लिए आते थे।
इस विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन जैसे कई महान विद्वानों ने शिक्षा ग्रहण की है।
संस्कृत के ना+आलम+दा के संधि विच्छेड से नालंदा शब्द बना है। जिसका अर्थ ज्ञान रूपी उपहार पर कोई प्रतिबंध न रखना से है।
साल 2010 में नालंदा की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी का निर्माण बिहार के राजगीर में किया गया।