By अभिनय आकाश | Jun 29, 2021
"दिल्ली में ऑक्सीजन की बहुत ज्यादा कमी है। यदि ऑक्सीजन प्लांट न हो तो क्या दिल्ली के लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी?" अत्यधिक कोरोना वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य स्टेकहोल्डर के साथ अप्रैल के महीने में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरवविंद केजरीवाल ने मासूमियत भरे अपने चिरपरिचित अंदाज में ये ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा कुछ इस प्रकार से उठाया। दिल्ली सरकार की ओर से केंद्र सरकार को खत भी लिखा गया और कहा गया अस्पतालों को ऑक्सीजन मुहैया करवाएं। दिल्ली के कुछ अस्पतालों में कुछी ही घंटे की ऑक्सीजन बची है। 20 अप्रैल को हुई दिल्ली सरकार की समीक्षा बैठक में भी सबसे बड़ा मुद्दा ऑक्सीजन का ही रहा। जिसके बाद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा ऑक्सीजन को लेकर सभी अस्पतालों से फोन आ रहे हैं। ऑक्सीजन का केन सप्लाई करने वाले लोगों को अलग-अलग राज्यों में रोक दिया जा रहा है। सोशल मीडिया पर अस्पतालों की लिस्ट शेयर करते हुए मनीष सिसोदिया ने बताया कि दिल्ली के किन अस्पतालों में कितनी ऑक्सीजन बची है। सबको ध्यान है जब कोरोना की दूसरी लहर आई थी तब ना सिर्फ दिल्ली सरकार बल्कि तमाम प्राइवेट अस्पताल दिल्ली हाईकोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे थे। लेकिन फसाद के बाद एक रिपोर्ट ने संपूर्ण मुद्दे की कलई खोल कर रख दी है। जिस बात का सियासत ने मजाक बना दिया वह मजाक की बात नहीं। सवाल तो यह है कि दिल्ली के अस्पतालों में जो लोग ऑक्सीजन बेड के इंतजार में दम तोड़ रहे थे, तब ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी? सवाल तो यह है कि दिल्ली के अस्पताल ऑक्सीजन को लेकर सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से गुहार लगा रहे थे, क्या वह सभी मनगढ़त थे? सवाल तो यह भी है कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक जो चिंताएं जताई जा रही थीं, क्या वह चिंताएं गैर जरूरी थी? यह सवाल उस सियासत से उठे हैं जो अक्सीजन रिपोर्ट पर हो रही है।
दरअसल, सबको ध्यान है जब कोरोना की दूसरी लहर आई थी तब ना सिर्फ दिल्ली सरकार बल्कि तमाम प्राइवेट अस्पताल दिल्ली हाईकोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे थे। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से किसी भी कीमत पर दिल्ली को पर्याप्त ऑक्सीजन की सप्लाई करने का आदेश दिया। आदेश का पालन न होने पर कोर्ट ने केंद्र के उच्चाधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई भी शुरू करने का आदेश दिया। इसके बाद केंद्र सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि केंद्रीय अधिकारियों को जेल भेजने से ऑक्सीजन की उपलब्धता नहीं सुधरेगी। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिल-जुलकर काम करना होगा। इसके साथ ही 7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने देश में ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई के ऑडिट के लिए 12 लोगों की टास्क फोर्स बनाई थी। जिसमें 10 डॉक्टरों के अलावा 2 सरकारी अधिकारी भी शामिल थे। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के लिए अलग से 5 सदस्यों वाली ऑडिट कमिटी बना दी थी। जिसमें एम्स दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी शामिल थे। कोर्ट ने देशभर के ट्रांसपोर्ट और दिल्ली के लिए ऑक्सीजन ऑडिट कमिटी को रिपोर्ट सौंपने के लिए 6 महीने का समय दिया था। लेकिन इसके बाद टास्क फोर्स ने दिल्ली के लिए एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार करके स्वास्थ्य मंत्रालय को भेज दी। इस अंतरिम रिपोर्ट पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के साथ 22 जून को शेयर किया। जिसे लेकर दिल्ली सरकार ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय नई दिल्ली सरकार की आपत्तियों के साथ इस अंतरिम रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दिया। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस अंतिम रिपोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया है वह हलफनामा अपने आप में पूरी स्थिति को स्पष्ट करता है।
रिपोर्ट में क्या कहा गया है
किस फॉर्मूला से सामने आई गड़बड़ी
ऑडिट पैनल ने ऑक्सीजन की मांग को जांचने के लिए तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया था। जिसमें ऑक्सीजन की वास्तविक खपत, केंद्र सरकार के फॉर्मूले के अनुसार आवश्यकता और दिल्ली सरकार के फॉर्मूले के अनुसार आवश्यकता का एनालिसिस किया गया था।
अचानक ऑक्सीजन की जरूरत में आई कमी
6 मई को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ऑक्सीजन की आपूर्ति, वितरण औऱ उपयोग का ऑडिट करने के लिए एक पैनल की स्थापना की बात कही गई और इसके एक हफ्ते के भीतर ही दिल्ली में ऑक्सीजन सरप्लस में हो गया। अरविंद केजरीवाल सरकार की तरफ से सरप्लस ऑक्सीजन होने की बात कहते हुए इसे जरूरतमंद राज्यों को दिए जाने की बात कह डाली। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि COVID-19 स्थिति के आकलन के बाद फिलहाल दिल्ली की ऑक्सीजन की जरूरत 582 मीट्रिक टन प्रतिदिन है। हमने केंद्र सरकार से बाकी ऑक्सीजन जरूरतमंद राज्य को देने के लिए अनुरोध किया था
सरकार का क्या है कहना
दिल्ली सरकार की आपत्तियां
दिल्ली को किया जा रहा आवंटन 590 मीट्रिक टन है लेकिन यह मात्रा से 3 दिन उपलब्ध कराई गई है। 214 अस्पतालों का डाटा उपलब्ध है जबकि कुछ बड़े अस्पतालों ने 500 एडिशनल बेड जुड़े हैं। अस्पताल और रिफिलस और कुछ अन्य प्रतिष्ठानों के पास उपलब्ध आक्सीजन सिलेंडरों का डाटा गायब। होम आइसोलेशन में भी मरीजों के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। एलएमओ की जरूरत का मूल्यांकन अधूरी डाटा पर किया गया है।
बीजेपी और आप में वार-पलटवार
बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में संबित पात्रा ने केजरीवाल पर ऑक्सीजन को लेकर राजनीति करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली के सीएम ने झूठ बोलकर 12 राज्यों को प्रभावित किया। आरोपों पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'मेरा गुनाह- मैं अपने 2 करोड़ लोगों की सांसों के लिए लड़ा। जब आप चुनावी रैली कर रहे थे, मैं रात भर जागकर ऑक्सीजन का इंतजाम कर रहा था। लोगों को ऑक्सीजन दिलाने के लिए मैं लड़ा, गिड़गिड़ाया। लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से अपनों को खोया है। उन्हें झूठा मत कहिए, उन्हें बहुत बुरा लग रहा है।'
रणदीप गुलेरिया का क्या कहना है
एम्स के चीफ और ऑक्सीजन ऑडिट समिति के प्रमुख रणदीप गुलेरिया ने इस मामले पर अपनी बात रखते हुए एक निजी चैनल से कहा कि अभी फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है। मुझे नहीं लगता है कि हम ऐसा कह सकते हैं कि ऑक्सीजन की मांग को 4 गुना बढ़ा चढ़ाकर बताया गया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट इस बारे में क्या कहती है।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में जो ऑक्सीजन की ऑडिट रिपोर्ट फाइल की गई है वो फाइनल रिपोर्ट नहीं है। ये सुप्रीम कोर्ट में दायर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक हलफनामे का हिस्सा है। ये अंतरिम रिपोर्ट पेट्रोलियम और ऑक्सीजन सुरक्षा संगठन ने तैयार किया है। यानी की इस ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। रिपोर्ट कितनी सही है और कितनी गलत इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा।- अभिनय आकाश