बिहार से ही उठा था जातीय जनगणना का मुद्दा, अब चुनावी प्रचार में यहीं नहीं हो रही इसकी चर्चा

By अंकित सिंह | May 02, 2024

अभी कुछ समय पहले, बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन दोनों ही जाति-आधारित सर्वेक्षण पर अपना कब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रहे थे, जिसमें पिछले साल पता चला था कि आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य में सबसे बड़ा सामाजिक समूह था। इसके आधार पर, जद (यू) के नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते हुए महागठबंधन सरकार ने तुरंत अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ईबीसी के लिए कोटा 50 % से 65% बढ़ाने की घोषणा की। 

 

इसे भी पढ़ें: 'बिहार में नहीं होगी लालटेन युग की वापसी', Rajnath Singh बोले- बिना लोकलाज नहीं चल सकता लोकतंत्र

 

लेकिन जनवरी में नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद से जाति सर्वेक्षण और राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग, जो विपक्ष के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा बनकर उभर रही थी, को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ज़मीनी स्तर पर, जाति जनगणना की मांग का कोई असर नहीं दिख रहा है क्योंकि लोग उम्मीदवारों और उनकी जातियों, कल्याण उपायों, विदेशों में भारत की छवि, बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि पर चर्चा कर रहे हैं।


नीतीश कुमार, जिन्होंने जाति सर्वेक्षण का समर्थन किया था और पिछले तीन वर्षों से इसके इर्द-गिर्द अभियान चलाया था, ने इसका बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया है। इसके बजाय, वह "कुशासन बनाम सुशासन" के अपने आजमाए और परखे हुए विषय पर वापस आ गए हैं। मुंगेर में जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “मुंगेर में बहुत सारे ईबीसी वोट हैं। हम जानते हैं कि कुछ को छोड़कर ज्यादातर लोग पीएम मोदी के नाम पर वोट करेंगे। नीतीश कुमार के भाषणों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह लालू प्रसाद-राबड़ी देवी शासन, जो कुशासन और नरसंहार से भरा हुआ था, की तुलना नीतीश कुमार के 'सुशासन' से कर सकें। हम जानते हैं कि यह ख़राब है, लेकिन यह अभी भी काम कर रहा है।''


भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद ने इस बात पर जोर दिया कि इस चुनाव में नरेंद्र मोदी "अकेले कारक" थे। उन्होंने कहा कि हमें किसी अन्य मुद्दे की जरूरत नहीं है। मोदी अकेले ही सभी सामाजिक समूहों की संचयी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी भी राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की आवश्यकता को "समाज के एक्स-रे" के रूप में सामने लाते रहते हैं, लेकिन प्रचार अभियान के दौरान उनके सहयोगी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव सत्ता में रहने पर नई नौकरियाँ पैदा करने में अपनी पार्टी की भूमिका के बारे में बात करने पर अड़े हुए है।

 

इसे भी पढ़ें: लालू ने मीसा भारती का नाम 'Misa' कैसे रखा? बिहार में जेपी नड्डा ने लोगों के बता दी पूरी कहानी

 

रादज का कहना है कि यह एक राष्ट्रीय चुनाव है। एनडीए चाहता है कि लड़ाई मोदी बनाम दूसरों के बीच रहे। महागठबंधन का मानना ​​है कि पलायन और नौकरियां ही असली मुद्दे हैं। हमारे नेता अच्छी भीड़ खींच रहे हैं। राज्य भर में बातचीत से पता चलता है कि बिहार में जाति मतदाताओं की प्राथमिकताओं का एक महत्वपूर्ण संकेतक बनी हुई है। लेकिन जातिगत जनगणना की मांग में मतदाताओं की रुचि नहीं है। बल्कि, जाति स्थानीय स्तर पर खेल रही है, राजद समर्थक यादव और भाजपा समर्थक ऊंची जातियां स्पष्ट रूप से अपने-अपने पक्ष में प्रतिबद्ध हैं। 

प्रमुख खबरें

IND vs AUS 1st Test: दूसरे दिन यशस्वी-राहुल की बेहतरीन पारी, विकेट के लिए तरसते दिखे कंगारू गेंदबाज

Aaditya Thackeray को जिताने में चाचा राज ने की बड़ी मदद! मगर उद्धव ने अमित को हरा दिया?

Wayanad से प्रियंका गांधी की जबरदस्त जीत, राहुल गांधी को भी छोड़ा पीछे, कही बड़ी बात

Devendra Fadnavis को महाराष्ट्र का CM बनाने की मांग, सड़कों पर लगाए गए पोस्टर