India vs China: Tawang पर आखिर चीन की नजर है क्यों? साल 2021 से ही कर रहा था तैयारी, जानिए पूरा इतिहास

By अभिनय आकाश | Dec 13, 2022

कड़े संघर्ष के बाद चीन ने एक बार फिर भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश की है। इस बार अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के बीच हुई मुठभेड़ में दोनों पक्षों के जवान घायल हुए हैं। घायल भारतीय सैनिकों को गुवाहाटी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दूसरी ओर, एएनआई ने बताया कि भारतीय सैनिकों की तुलना में चीनी सैनिक अधिक घायल हुए हैं। 

भारतीय सेना ने क्या कहा?

इस जानकारी के सामने आने के बाद भारतीय सेना ने प्रतिक्रिया दी है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग (चीन) सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास के इलाके को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं। इसलिए दोनों पक्षों की सेनाएं अपने-अपने दावों की पहरेदारी करती हैं और यह सिलसिला 2006 से चल रहा है। 9 दिसंबर को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच मुठभेड़ हुई थी। इसमें दोनों पक्षों के जवानों को चोटें आई हैं। मुठभेड़ के बाद दोनों पक्षों के सैनिक पीछे हट गए। इसके बाद भारतीय सेना के अधिकारियों ने शांति सुनिश्चित करने के लिए चीनी अधिकारियों के साथ फ्लैग मीटिंग की। चीन की नजर तवांग पर क्यों है?

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1962 के युद्ध के बाद से तवांग पर नजर

यह सब तवांग के पास यांग्त्से में हुआ। 1962 के युद्ध के बाद से तवांग में 17,000 फीट की ऊंचाई पर यांग्त्ज़ी नदी पर चीन की नज़र है। तभी से चीन यांग्त्जी पर कब्जा करने का सपना देख रहा है। सैन्य सूत्रों के मुताबिक, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) यांग्त्ज़ी को निशाना बनाने के लिए हमेशा तैयार रहती है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान सीमा पर मैकमोहन रेखा पर चीन खामोश था। लेकिन 1947 में भारत को आजादी मिली और चीन ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। चीन ने हमेशा भारत के अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा होने का दावा किया है। लेकिन इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का हिस्सा है।

चीन यांग्त्ज़ी को क्यों चाहता है?

तवांग से 35 किलोमीटर उत्तर पूर्व में यांग्त्से है। यांग्त्ज़ी का अधिकांश भाग मार्च तक बर्फ से ढका रहता है। यांग्त्ज़ी भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना चीन के लिए। यांग्त्जी से चीन सीधे तिब्बत पर नजर रख सकता है। इसके साथ ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भी जासूसी कर सकता है।

1962 की जंग और तवांग पर कब्ज़ा करने की कोशिश

1962 के भारत-चीन युद्ध में चीन ने तवांग को नियंत्रित करने का प्रयास किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस युद्ध में भारत के 800 जवान शहीद हुए थे। 1000 सैनिकों को चीन ने नजरबंद कर दिया था। पिछले 10 सालों में चीन सीमावर्ती इलाकों में काफी विकास कार्य कर रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें युद्ध के लिए चीजें शामिल हैं और यह सब तवांग सीमा के पास शुरू होता है।

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2021 से हमले की तैयारी में पीएलए 

तवांग में चीनी साजिश को लेकर एक और बात सामने आई है। पिछले साल से अरुणाचल में साजिश की तैयारी थी। 2021 से पीएलए अरुणाचल की तरफ बढ़ रही थी। सूत्रों के अनुसार पीएलए ने तवांग पर कब्जे का पूरा प्लान तैयार किया था। चीनी सोशल मीडिया हैंडल्स पर भी तमाम तरह की खबरें पोस्ट की जा रही थी। 

सामरिक रूप से तवांग जितना अहम है उसी 

ब्रह्मपुत्र घाटी और तिब्बत के बीच पूरे कॉरिडोर पर ड्रोन के जरिए नजर रखने की पहल की गई है। तमाम तरह की अत्याधुक तोपें भी तैनात की गई थी। तवांग से भूटान और भारत पर नजर रखना आसान होता है। चीन इसलिए इस इलाके पर अपनी नजर गड़ा कर रखता है। सामरिक दृष्टि से तवांग का इलाका चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।  

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