By नीरज कुमार दुबे | Sep 07, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह जी-20 शिखर सम्मेलन, रूस-यूक्रेन युद्ध, नौसेना के शीर्ष कमांडरों के सम्मेलन, उत्तर कोरिया और रूस के संबंधों और सेना तथा वायुसेना के युद्ध अभ्यासों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए नहीं आ रहे हैं। वह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का सामना नहीं करना चाहते या भारत से तनावपूर्ण संबंधों के चलते उन्होंने अपनी जगह चीनी प्रधानमंत्री को दिल्ली भेजने का फैसला किया है?
उत्तर- शी जिनपिंग ने वैसे तो जी-20 के सभी शिखर सम्मेलनों में भागीदारी की है चाह वह कार्यक्रम स्थल पर जाकर की हो या फिर ऑनलाइन चर्चा में शामिल होकर लेकिन इस बार उनका नहीं आना चौंकाता जरूर है क्योंकि यदि वह चाहते तो इस बैठक में ऑनलाइन भी शामिल हो सकते थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत और चीन के संबंधों में तनाव है और यह तनाव तब भी दिखा था जब ब्रिक्स सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात हुई थी। हालांकि उस संक्षिप्त मुलाकात से लगा था कि अब सब पटरी पर आ जायेगा लेकिन जिनपिंग के चीन लौटते ही ड्रैगन ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों को अपने क्षेत्र में दर्शाते हुए नया मानचित्र जारी कर संबंधों में तनाव बढ़ा दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में हमको भी जिनपिंग का स्वागत करने में दिक्कत होती इसलिए अच्छा ही हुआ कि वह नहीं आये। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस समय भारतीय सेना और वायुसेना की ओर से उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में चीन और पाकिस्तान से सटे मोर्चों पर एक प्रमुख युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास शुरू किया गया है उसको लेकर भी चीन सकते में है। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि चीन के राष्ट्रपति को बताया गया है कि कहीं ऐसा ना हो कि आप बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली जायें और पीछे से भारत यहां घुस आये। इसीलिए चीन ने अपने राष्ट्रपति के नहीं आने का कारण घरेलू व्यस्तता बताया है। उन्होंने कहा कि वैसे भारत कभी भी पहले हमला नहीं करता है लेकिन यदि चीन के मन में ऐसा डर है तो यह अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि वैसे चीन जी-20 शिखर सम्मेलन में आये या नहीं आये इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि चीन ने अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में हुई जी-20 की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया था इसके बावजूद यह दोनों बैठकें काफी सफल रही थीं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा शी जिनपिंग को पता है कि भारत अमेरिका के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं और भारत में जो बाइडन को ज्यादा महत्व मिलेगा। उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग को लग रहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी बैठक में नहीं आ रहे हैं ऐसे में वह अकेले पड़ जायेंगे। इसके अलावा जिनपिंग इस समय रूस के साथ संबंध प्रगाढ़ कर रहे हैं ऐसे में यदि जी-20 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन के पक्ष में कोई प्रस्ताव आता तो चीन के लिए मुश्किल हो जाती इसलिए भी वह आने से बचे हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका के राजकीय दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति को तानाशाह करार दिया था इसलिए भी जिनपिंग नाराज हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर साफ कह चुके हैं कि सम्मेलन में प्रतिनिधित्व के स्तर के बजाय प्रमुख ज्वलंत मुद्दों पर देशों द्वारा अपनाई जाने वाली स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आखिरकार देशों का प्रतिनिधित्व उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसे उन्होंने अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुना है। प्रतिनिधित्व का स्तर किसी देश की स्थिति का अंतिम निर्धारक नहीं बनता है।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? यूक्रेन को अपने रक्षा मंत्री को क्यों हटाना पड़ा?
उत्तर- यूक्रेन ने अपने हमले बढ़ाने के लिए नई योजना बनाई है और इसके लिए वह नये रक्षा मंत्री को भी लेकर आये हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के रक्षा मंत्री ओलेक्सी रेजनिकोव ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह कदम राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की द्वारा उन्हें हटाने और क्रीमिया के तातार से सांसद रुस्तम उमेरोव को नया रक्षा मंत्री नियुक्त करने की मंशा जताए जाने के बाद उठाया। उन्होंने कहा कि वैसे यह भी खबर है कि रक्षा मंत्रालय के सैन्य जैकेट की खरीद में घोटाले के आरोपों से घिरने के बाद ओलेक्सी रेजनिकोव को हटाया गया है। उन्होंने कहा कि रूस से युद्ध शुरू होने के बाद किसी को पद से हटाने का यह पहला मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि ज़ेलेंस्की ने अपने आधिकारिक टेलीग्राम अकाउंट पर जो घोषणा की है उसमें उन्होंने लिखा है कि रेजनिकोव ने ‘‘550 दिनों से अधिक समय तक युद्ध की कमान संभाली और अब नए नेतृत्व की आवश्यकता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी अपनी सेना में अधिकारियों के स्तर पर कई बड़े बदलाव किये हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को यह बदलाव इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि युद्ध की नीरसता आती जा रही है जिससे निबटने के लिए नये और युवा जोश की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा युद्ध में जिस तरह दोनों ओर से नये हथियार आ रहे हैं उसको देखते हुए भी रणनीति बदली जा रही है। उन्होंने कहा कि एक बात साफ दिख रही है कि युद्ध अभी जहां का तहां स्थिर है। ना रूस आगे बढ़ पा रहा है ना ही यूक्रेन पीछे हट रहा है। उन्होंने कहा कि युद्धविराम के जो प्रयास शुरू हुए थे वह भी ठंडे पड़ चुके हैं इसलिए फिलहाल इस युद्ध के खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं क्योंकि दोनों ही देशों के राष्ट्रपति ने इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन की तरफ से एक तरह से पश्चिमी और नाटो देश ही युद्ध की कमान संभाल रहे हैं इसलिए जब तक वह नहीं चाहेंगे तब तक यह युद्ध खत्म नहीं होगा।
प्रश्न-3. नौसेना के शीर्ष कमांडरों का जो तीन दिवसीय सम्मेलन दिल्ली में हुआ उसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता के बीच भारतीय नौसेना के शीर्ष कमांडरों के तीन दिवसीय सम्मेलन में भारत की समुद्री सुरक्षा चुनौतियों और तीनों सशस्त्र बलों के बीच तालमेल बढ़ाने के तरीकों की व्यापक समीक्षा की गयी। दिल्ली में होने वाले सम्मेलन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान, थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे और वायुसेना प्रमुख वीआर चौधरी ने नौसेना कमांडरों को संबोधित किया। इस सम्मेलन और एनएसए, भारतीय थलसेना और भारतीय वायुसेना के प्रमुखों के साथ बातचीत का उपयोग अभियानगत माहौल का विश्लेषण करने, सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल के मुद्दे पर विचार-विमर्श करने और समुद्री बलों की तैयारी का आकलन करने के लिए भी किया जाएगा। इस शीर्ष-स्तरीय सम्मेलन का आयोजन साल में दो बार किया जाता है, जिसमें नौसेना कमांडरों के बीच महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर विचार-विमर्श और इनके निर्धारण के लिए बातचीत की जाती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नौसेना के वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा पिछले छह महीनों के दौरान किए गए प्रमुख परिचालन, सामग्री, रसद, मानव संसाधन, प्रशिक्षण से जुड़े और प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा की गयी। इस सम्मेलन में आगामी महीनों में उठाए जाने वाली पहलों पर भी विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि नौसेना ने एक बयान में कहा है कि यह सम्मेलन देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए आवश्यक सुरक्षित समुद्री वातावरण के विकास की दिशा में कई अंतर-मंत्रालयी पहल को आगे बढ़ाने के लिए वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ नौसेना कमांडरों की संस्थागत बातचीत का अवसर भी प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया कि पिछले छह महीनों में भारतीय नौसेना के संचालन में गहन परिचालन का विस्तार अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर तक देखा गया है। उन्होंने कहा कि नौसेना ने कहा कि यह आयोजन नौसेना प्लेटफार्मों के हथियारों/सेंसर के प्रदर्शन पर विशेष ध्यान देने के साथ नौसेना की परिचालन तत्परता की विस्तृत समीक्षा करेगा।
प्रश्न-4. उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन आखिर क्यों व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए रूस जा रहे हैं?
उत्तर- रूस ने युद्ध छेड़ा हुआ है और उत्तर कोरिया युद्ध लड़ने पर आमादा है। इसलिए जब एक जैसी सोच के दो लोग मिलने वाले हों तब दुनिया का चिंतित होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अधिकारी जॉन किर्बी ने 30 अगस्त को कहा था कि उत्तर कोरिया और रूस के बीच हथियारों के लेन-देन को लेकर बातचीत जोर पकड़ रही है। दरअसल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी सेना के लिए हथियारों की आपूर्ति चाहते हैं, जिसके लिए वह उत्तर कोरिया से बातचीत कर रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद रूस और उसके सैन्य आपूर्तिकर्ता वैगनर समूह ने पहले ही हथियारों के लिए उत्तर कोरिया से संपर्क किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हथियारों की इस खरीद-फरोख्त और उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंधों का यूक्रेन के युद्धक्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया के साथ हथियारों के कारोबार पर शोध से यह पता चलता है कि उत्तर कोरिया हथियारों के बदले रूस से तकनीक की मांग कर सकता है। इससे उत्तर कोरिया के हथियार कार्यक्रमों को बहुत फायदा होगा और साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से हुए नुकसान की भरपाई कर सकेगा। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र उत्तर कोरिया के हथियार कार्यक्रमों को सीमित करना चाहता है, जिसके लिए उसने उत्तर कोरिया के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालिया घटनाक्रम से यह साफ हुआ है कि उत्तर कोरिया और वैगनर समूह के मालिक येवगेनी प्रिगोझिन के इंकार करने के बावजूद हथियारों के व्यापार संबंध तेजी से प्रगाढ़ हुए हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने सितंबर 2022 में दावा किया था कि उत्तर कोरिया, रूस को बड़ी मात्रा में हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। उत्तर कोरिया द्वारा वैगनर समूह को रॉकेट और मिसाइलों की कथित रूप से आपूर्ति किए जाने के दो महीने बाद जनवरी 2023 में जॉन किर्बी ने उत्तर कोरिया-रूसी सीमा पर घातक हथियारों से लदी एक ट्रेन की उपग्रह तस्वीर साझा की थी। मार्च में अमेरिका के वित्त विभाग ने रूस के लिए दो दर्जन प्रकार के हथियारों और युद्ध सामग्री की खरीद की खातिर उत्तर कोरिया अधिकारियों के साथ काम करने वाले स्लोवाकियाई नागरिक अशोत मकर्तिचेव पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच संपर्क के कई रास्ते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु का प्योंगयांग दौरा भी दोनों देशों के बीच मजबूत होते रिश्तों के महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी बात, शोइगु को हथियारों की प्रदर्शनी दिखाने का काम खुद उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन ने किया। इस प्रदर्शनी में अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें, लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइलें और नई तकनीक वाले उन्नत ड्रोन के साथ-साथ अन्य हथियार प्रणालियां भी मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि बदलती स्थिति में रूस को यूक्रेन युद्ध में फायदा होगा। वहीं, किम जोंग उन शासन पर लगे ढेर सारे प्रतिबंधों के कारण कमजोर हुई आर्थिक शक्ति को रूस द्वारा उत्तर कोरिया से हथियारों की खरीद करने से मजबूती मिलेगी। इससे उत्तर कोरिया को राजस्व जुटाने मे भी मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, इससे उत्तर कोरिया के हथियार निर्यात उद्यम को भी बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया के संदर्भ में अधिक चिंता की बात यह है कि वह लंबे समय से परमाणु और लंबी दूरी के मिसाइल कार्यक्रम सहित विभिन्न हथियारों के विकास के लिए हथियारों की बिक्री पर निर्भर रहा है।
प्रश्न-5. भारतीय वायुसेना के भारत में चल रहे अभ्यास त्रिशूल का क्या महत्व है?
उत्तर- दिल्ली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए जहां राष्ट्रीय राजधानी में चप्पे चप्पे पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये जा रहे हैं वहीं दिल्ली से सटी अन्य राज्यों की सीमाओं पर भी विशेष निगरानी की जा रही है। यही नहीं पाकिस्तान और चीन से सटी सीमाओं पर भी विशेष सतर्कता बरती जा रही है। इस कड़ी में भारतीय वायुसेना ने सोमवार को उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में चीन और पाकिस्तान से सटे मोर्चों पर एक प्रमुख युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास शुरू किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक युद्धाभ्यास की बात है तो भारतीय वायुसेना ने चार सितंबर से चीन और पाकिस्तान से सटी सीमाओं पर 11 दिवसीय व्यापक युद्धाभ्यास शुरू किया है जिसमें सभी प्रमुख लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, हवा में ईंधन भरने वाले विमान और अन्य महत्वपूर्ण हवाई संसाधन शामिल किये गये हैं। ‘त्रिशूल’ नामक यह अभ्यास भारत और चीन की सेनाओं बीच तीन साल से अधिक समय से जारी गतिरोध और पाकिस्तान से संबंधों के लगातार प्रतिकूल रहने के बीच हो रहा है। वायुसेना की पश्चिमी कमान द्वारा किए जा रहे इस अभ्यास का उद्देश्य बल की लड़ाकू क्षमताओं का परीक्षण करना है। हम आपको बता दें कि यह हाल के दिनों में वायुसेना द्वारा किए गए सबसे बड़े हवाई अभ्यासों में से एक है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वायुसेना की पश्चिमी कमान के सभी प्रमुख मंचों के साथ-साथ अन्य कमान से संबंधित संसाधन भी अभ्यास के लिए तैनात किए गये हैं। राफेल, एसयू-30 एमकेआई, जगुआर, मिराज-2000, मिग-29 और मिग-21 बाइसन जैसे लड़ाकू विमान अभ्यास का हिस्सा हैं। यही नहीं, अभ्यास के लिए लड़ाकू हेलीकॉप्टर, बीच हवा में ईंधन भरने वाले विमान, हवाई चेतावनी एवं नियंत्रण प्रणाली (एडब्ल्यूएसीएस) विमान और परिवहन बेड़े को भी इस युद्धाभ्यास में शामिल किया गया है। अभ्यास में बड़े पैमाने पर लद्दाख, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड स्थित सीमावर्ती प्रतिष्ठानों को शामिल किया गया है। इस अभ्यास के अंत में वायुसेना मुख्यालय में इसके परिणाम की गहन पड़ताल की जाएगी। हम आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के बाद भारतीय वायुसेना ने नए उपकरणों और अस्त्र प्रणालियों की खरीद सहित कई उपायों के जरिए अपनी क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है।