By नीरज कुमार दुबे | Jun 19, 2023
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच ड्रैगन को घेरने के लिए भारत लगातार सक्रिय है। इस क्रम में हाल ही में अमेरिका और जर्मनी के रक्षा मंत्री भारत आये थे और अब वियतनाम के केंद्रीय रक्षा मंत्री भारत आये। तीनों ही रक्षा मंत्रियों के साथ हुई वार्ता के दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़े मुद्दे चर्चा के केंद्र में रहे। यह दर्शाता है कि भारत इस क्षेत्र में चीन को कतई हावी नहीं होने देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इसके लिए भारत खुद को तो मजबूत कर ही रहा है साथ ही उन देशों को भी मदद दे रहा है जोकि चीन के दुश्मन हैं लेकिन संसाधनों के अभाव में ड्रैगन से ठीक ढंग से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। वियतनाम भी एक ऐसा ही देश है जिसका चीन के साथ कई मुद्दों को लेकर गहरा विवाद है। भारत पिछले कुछ समय से वियतनाम के साथ संबंधों को गहरा बना रहा है। इसीलिए वियतनाम के रक्षा मंत्री की भारत यात्रा पर चीन की नजर लगी हुई थी और अब जब चीनी सरकार को पता चला होगा कि उसके मन में जो डर था वो सही साबित हुआ है तो यकीनन बीजिंग को नयी रणनीति बनाने पर मजबूर होना पड़ा होगा।
रक्षा मंत्रियों की वार्ता
हम आपको बता दें कि भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वियतनाम के केंद्रीय रक्षा मंत्री जनरल फान वान जियांग के बीच बातचीत के दौरान द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा चीनी आक्रामकता से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा हुई। इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वियतनाम की नौसेना को स्वदेश निर्मित मिसाइल युद्धपोत आईएनएस कृपाण उपहार स्वरूप देने की घोषणा करते हुए विश्वास जताया कि भारत का यह कदम वियतनाम की नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। देखा जाये तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के मजबूत स्थिति में होने के चलते भारत ने वियतनाम की नौसेना की ताकत बढ़ाने का जो फैसला किया है वह रणनीतिक रूप से काफी महत्व रखता है।
रक्षा मंत्रालय का बयान
रक्षा मंत्री स्तर की वार्ता के बाद रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दोनों पक्षों ने अनेक द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पहलों की प्रगति का जायजा लिया और साझेदारी पर संतोष जताया। बयान में बताया गया है कि दोनों मंत्रियों ने विशेष रूप से रक्षा उद्योग, समुद्री सुरक्षा और बहुराष्ट्रीय सहयोग के मौजूदा क्षेत्रों को बढ़ाने के साधनों की पहचान की। हम आपको बता दें कि दोनों पक्ष द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और मजबूत करने पर केंद्रित रहे हैं तथा दक्षिण चीन सागर में हालात की समीक्षा कर रहे हैं क्योंकि इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वियतनाम एक महत्वपूर्ण साझेदार है।
भारत-वियतनाम संबंध
हम आपको बता दें कि जुलाई 2007 में वियतनाम के तत्कालीन प्रधानमंत्री गुयेन तान दुंग की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों का स्तर ‘रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर पर पहुंच गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2016 में हुई वियतनाम की यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंध उन्नत होकर ‘समग्र रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर पर पहुंच गये थे।
भारत के लिए वियतनाम का महत्व
देखा जाये तो वियतनाम, आसियान (दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) का एक महत्वपूर्ण देश है, जिसका दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद है। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के जल क्षेत्र में भारत की तेल खोज परियोजनाएं हैं। साझा हितों की रक्षा के लिए पिछले कुछ वर्षों में भारत और वियतनाम अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ा रहे हैं। भारत और वियतनाम एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं। द्विपक्षीय रक्षा संबंध इस साझेदारी का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों में विभिन्न प्रकार की साझेदारी हैं जिनमें सेवाएं, सैन्य-से-सैन्य आदान-प्रदान, उच्च-स्तरीय यात्राएं, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सहयोग, जहाज यात्राएं और द्विपक्षीय अभ्यास शामिल हैं।
भारत-वियमनाम के महत्वपूर्ण समझौते
हम आपको यह भी बता दें कि जून 2022 में भारतीय रक्षा मंत्री की वियतनाम यात्रा के दौरान, '2030 की ओर भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर महत्वपूर्ण व्यापक मार्गदर्शक दस्तावेजों, 'संयुक्त दृष्टिकोण बयान' और एक समझौता ज्ञापन 'म्युचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट' पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसके कारण दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने में काफी वृद्धि हुई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की वियतनाम यात्रा के दौरान भारत और वियतनाम ने संबंधों को नयी ऊँचाई प्रदान करते हुए जिस महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये थे उसकी बदौलत दोनों देशों की सेना एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों का इस्तेमाल मरम्मत कार्य के लिए तथा आपूर्ति संबंधी कार्य के लिए कर पा रही हैं। खास बात यह है कि यह पहला ऐसा बड़ा समझौता था, जो वियतनाम ने किसी देश के साथ किया था।
दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के लिए भारत-वियतनाम संबंधों का महत्व
देखा जाये तो दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच भारत और वियतनाम के रिश्ते प्रगाढ़ होना पूरे क्षेत्र के हित में है क्योंकि चीन लगभग पूरे विवादित दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपींस, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम इसके हिस्सों पर अपना दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाये हैं। दक्षिण के अलावा चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद चल रहा है।
चीन की हरकतों पर नजर बनाये है अमेरिका
चीन की इन्हीं आक्रामकताओं को देखते हुए अमेरिका भी इस क्षेत्र पर नजर बनाये हुए है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले साल इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की जो शुरुआत की थी उसे बड़े पैमाने पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा गया। अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल में शामिल होने वाले 12 देशों में भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं। इस मंच से चीन और उसके करीबी देशों- लाओस, कंबोडिया और म्यांमा को बाहर रखा गया है। इस संगठन के कार्य ढांचे में चार स्तंभ- व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा और बुनियादी ढांचा तथा कर और भ्रष्टाचार विरोध- शामिल हैं।
चीन के निशाने पर रहता है वियतनाम
वियतनाम के खिलाफ चीनी हरकतों की बात करें तो आपको बता दें कि पिछले साल आई एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि चीन की सरकार की ओर से प्रायोजित हैकर्स दक्षिणपूर्व एशिया में सरकार और निजी क्षेत्र के संगठनों को व्यापक रूप से निशाना बना रहे हैं, इनमें बुनियादी ढांचे के विकास की परियोजनाओं पर बीजिंग के साथ करीबी रूप से संलिप्त संगठन भी शामिल हैं। ‘रिकॉर्डेड फ्यूचर’ के चेतावनी अनुसंधान मंडल ‘इन्सिक्ट ग्रुप’ के अनुसार, हैकर्स के खास निशाने पर थाईलैंड का प्रधानमंत्री कार्यालय और सेना, इंडोनेशिया और फिलीपीन की नौसेनाएं, वियतनाम की नेशनल असेंबली और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी का केंद्रीय कार्यालय तथा मलेशिया का रक्षा मंत्रालय रहते हैं। ‘इन्सिक्ट ग्रुप’ के खुलासे में यह भी बताया गया था कि मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम शीर्ष तीन देश हैं जो साइबर हमलों के निशाने पर रहते हैं।
बहरहाल, वियतनाम पर एक नजर डालें तो लगभग पौने दस करोड़ की जनसंख्या वाला यह देश चीन का एकदम पड़ौसी है। यह साम्यवादी पार्टी द्वारा शासित देश है। इसके नेता हो ची मिन्ह की गिनती दुनिया के बड़े नेताओं में हुआ करती थी। वियतनाम में एक-पार्टी शासन होने के बावजूद चीन की तरह इंटरनेट और मीडिया पर सरकारी शिकंजा नहीं है।