By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 23, 2021
नयी दिल्ली। भारत कच्चे तेल की कीमतों में कमी लाने के लिए अपने रणनीतिक तेल भंडार से 50 लाख बैरल कच्चा तेल निकालने की योजना बना रहा है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ तालमेल बनाकर यह कच्चा तेल बाजार में लाया जाएगा। अधिकारी के मुताबिक, अगले हफ्ते-दस दिन में यह प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। उन्होंने बताया कि भारत के रणनीतिक भंडार से निकाले जाने वाले कच्चे तेल को मंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) को बेचा जाएगा। ये दोनों सरकारी तेल शोधन इकाइयां रणनीतिक तेल भंडार से पाइपलाइन के जरिये जुड़ी हुई हैं।
इस अधिकारी ने कहा कि इस बारे में औपचारिक घोषणा जल्द ही की जाएगी। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर भारत अपने रणनीतिक भंडार से और कच्चे तेल की निकासी का भी फैसला ले सकता है। भारत ने कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में जारी तेजी के बीच अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर अपने आपातकालीन तेल भंडार से निकासी का मन बनाया है। इससे कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने का आधार तैयार होगा। भारत ने अपने पश्चिमी एवं पूर्वी दोनों तटों पर रणनीतिक तेल भंडार बनाए हुए हैं। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम और कर्नाटक के मंगलूरु एवं पदुर में ये भूमिगत तेल भंडार बनाए गए हैं। इनकी सम्मिलित भंडारण क्षमता करीब 3.8 करोड़ बैरल की है। भारत ने यह कदम तेल उत्पादक देशों की तरफ से कीमतों में कमी लाने के लिए उत्पादन बढ़ाने से इनकार करने के बाद उठाने का मन बनाया है।
इसके लिए अमेरिका ने भारत के अलावा चीन एवं जापान से भी मिलकर प्रयास करने का अनुरोध किया था। इस अधिकारी ने अपना नाम सामने न आने की शर्त पर कहा कि दूसरे देशों के साथ समन्वय बनाकर रणनीतिक भंडार से तेल निकासी का काम शुरू किया जाएगा। इसका समय इस बारे में अमेरिकी सरकार की औपचारिक घोषणा पर निर्भर करेगा। भारत दुनिया का तीसरा बड़ा तेल उपभोक्ता देश है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पिछले हफ्ते दुबई में कहा था कि तेल कीमतें बढ़ने का असर वैश्विक आर्थिक पुनरुद्धार पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 78 डॉलर प्रति बैरल पर हैं। पिछले महीने यह 86 डॉलर प्रति बैरल से भी ज्यादा हो गया था लेकिन यूरोप के कुछ देशों में फिर से लॉकडाउन लगने और प्रमुख उपभोक्ता देशों के मिलकर सुरक्षित तेल जारी करने की धमकियों से इसमें गिरावट आई है।