1975 में एक फिल्म बनी थी ‘आंधी’। कहते हैं कि उसमें इंदिरा गांधी का जीवन दर्शाया गया था। इसलिए आपातकाल में उस पर प्रतिबंध लग गया; पर आपातकाल के बाद वह खूब चली। उसमें एक गाना था, ‘‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं..।’’ हां और ना में उलझा कुछ ऐसा ही तमाशा आजकल दिल्ली में हो रहा है। त्यागपत्र देने और फिर वापस लेने का यह खेल इतनी बार हो चुका है कि लोग अब इस बारे में सुनना भी नहीं चाहते; पर हमारे शर्माजी की जान उसी में अटकी रहती है।
कल वे अपनी पुरानी आदत के अनुसार मुखबंद (मास्क) लगाये बिना आ टपके, ‘‘वर्माजी, अब कांग्रेस का उद्धार और देश के अच्छे दिन आने में देर नहीं है।’’
-शर्माजी, अगर कांग्रेस को देश की चिन्ता होती, तो उसकी ये दुर्दशा न होती। वहां तो बस एक परिवार की चिन्ता है। पहले भी यही था और आगे भी यही होगा।
-जी नहीं, पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने पत्र लिखकर कई सुझाव दिये हैं।
-पर वे सुझाव तो कूड़े में डाल दिये गये। अब खतरा पत्र लिखने वालों पर है। जवान कांग्रेस में आने को तैयार नहीं हैं और बूढ़ों को आपके महान नेताजी रखना नहीं चाहते। यही चलता रहा, तो पार्टी में चार लोग बचेंगे। मां अध्यक्ष, बेटा उपाध्यक्ष, बेटी सचिव और दामादजी कोषाध्यक्ष। फिर ये सब गाएंगे, ‘‘हम बने तुम बने इक दूजे के लिए...।’’
-बकवास मत करो। हमारी पार्टी ने ऐसे कई झटके झेले हैं। इनमें से ही निखर कर वह सोना बनी है। ‘‘रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद...’’ समझे.. ?
-लेकिन ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे...’ की तर्ज पर यह परिवार तो पार्टी को डुबो रहा है।
-चाहे जो हो; पर इस परिवार के बिना कांग्रेस का अस्तित्व नहीं है।
-जी हां, दिग्गी राजा भी तो यही कह रहे हैं। एक बार देवकांत बरुआ ने ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’ का नारा लगाया था। कांग्रेस की बर्बादी का श्रेय ऐसे लोगों को ही है।
इतनी कठोर बात सुनकर शर्माजी रुआंसे हो गये। फिर बोले, ‘‘वर्मा, अपने दिल की एक बात पूछता हूं। पार्टी इस परिवार को छोड़ना नहीं चाहती या ये परिवार पार्टी को मुक्त करना नहीं चाहता ?
-वर्माजी, कुछ पक्षियों को पिंजरे की आदत पड़ जाती है। पिंजरा खुला हो, तो भी वे नहीं भागते। कांग्रेस का यही हाल है। खुली हवा में उनका दम घुटता है। फिर इस परिवार ने देश में लम्बे समय तक राज किया है। कहते हैं इस दौरान बनी सम्पत्ति देश में भी है और विदेश में भी। उसे ये कैसे छोड़ दें ? इसलिए जब भी इस परिवार से बाहर का कोई सीधी रीढ़ वाला नेता उभरा, इन्होंने उसे टिकने नहीं दिया। इन्हें चमचे पसंद हैं, पतीली नहीं।
-यानि झगड़ा पैसे का है ?
-अंदर की बात जानने वाले तो यही कहते हैं। इस पर बाकी नेताओं की भी नजर है। हो सकता है इस कारण कांग्रेस का एक बंटवारा और हो जाए।
शर्माजी के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी, ‘‘पर एक बात सुन लो वर्मा, हर बंटवारे के बाद हमारी पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत हुई है।
-जी हां। पहले उसका चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। फिर गाय और बछड़ा रह गये। लोग हंसी में उन्हें इंदिरा गांधी और संजय गांधी कहते थे। इसके बाद हाथ का पंजा आया। अब विभाजन के बाद शायद हाथ का अंगूठा ही बचे, तो जनता कांग्रेस को दिखा रही है।
इसके बाद बैठना शर्माजी के लिए कठिन हो गया। वे गुस्से में मेज पर रखा मेरा मुखबंद (मास्क) लगाकर ही चल दिये।
- विजय कुमार