By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 23, 2024
नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यहां 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे बड़ी साजिश से जुड़े यूएपीए मामले में एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि हिंसक प्रदर्शन विरोध करने के संवैधानिक अधिकार से परे है तथा यह कानून के तहत दंडनीय अपराध है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने मंगलवार को अपलोड किए गए अपने आदेश में कहा कि इस बारे में पर्याप्त सामग्री है कि आरोपी सलीम मलिक गहरी साजिश में सह साजिशकर्ता था जिसने शांति एवं सद्भाव में कथित तौर पर खलल डालने के लिए धर्म के नाम पर स्थानीय लोगों को उकसाया।
अदालत ने कहा कि प्रदर्शन स्थलों को धर्मनिरपेक्ष रंग देने के लिए धर्मनिरपेक्ष नाम/हिंदू नाम दिए गए थे और साजिशकर्ताओं का उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को चक्का जाम तक ले जाने तथा एकत्रित भीड़ को हिंसा के लिए उकसाना था। इसने कहा, ‘‘दिनांक 20/21.02.2020 को चांद बाग में और फिर 22/23.02.2020 को हुई बैठकों में अपीलकर्ता के साथ अन्य आरोपी भी शामिल हुए और दंगा रूपी हिंसा तथा दिल्ली को जलाने से संबंधित पहलुओं पर खुलकर चर्चा की गई जो किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में स्वीकार्य नहीं है।’’
पीठ ने 22 अप्रैल को पारित आदेश में कहा, वित्तपोषण, हथियारों की व्यवस्था करने, लोगों की हत्या और संपत्ति में आग लगाने के लिए पेट्रोल बम खरीदने तथा इलाके में लगे सीसीटीवी को नष्ट करने की भी बातचीत हुई थी। अदालत ने कहा कि तथ्यात्मक सामग्री और गवाहों के बयानों के आधार पर आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया सही मामला बनता है।
इसने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि हिंसक प्रदर्शन विरोध करने के संवैधानिक अधिकार से परे है तथा यह कानून के तहत दंडनीय अपराध है। फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे। यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी।