हर सरकार अपनी मर्ज़ी से खूब विकास ही विकास करती है। विकास के साथ थोड़ा या बहुत विनाश तो होता ही है जी। वर्तमान सांस्कृतिक परम्परा अनुसार किसी गलत काम पर, समझदार लोग प्रतिक्रिया नहीं देते, वे भी विकासजी का डांस होने देते हैं जी। सरकारजी को अतिविश्वास मिल जाता है कि दोबारा पॉवर में आएंगे लेकिन चालाक जनता उन्हें हरा देती है ताकि आ रही सरकार से लाभ उठाए। इस तरह लगभग सभी राजनीतिज्ञों, छुटभय्ये नेताओं, ठेकेदारों, अफसरों, कर्मचारियों और आम जनता का फायदा होता रहता है जी। बुद्धिमान लोग मानते और चाहते हैं कि चुनाव होते रहें।
सरकार समझदार व्यवसायी, व्यापारी, सीईओ की तरह नीतियां बनाती है तभी तो विकासजी के साथ चलकर बहुत से आम लोग ख़ास हो जाते हैं जी। वे जीवन के हर खेत में फसल काटते हैं। सरकारी राजनीतिज्ञ, तीन साल के बाद ही शासन में निरंतर टिके रहने के उचित उपाय करना शुरू कर देते हैं, जिसमें लुभाऊ विज्ञापन मुख्य कर्म होता है ताकि जनता को भरमाकर रखा जा सके जी। कई बार ऐसा होता है, नालायक जनता के कुछ प्रतिशत लोगों के लिए सोच समझकर किया गया विकास का अंदाज़, सबको पसंद नहीं आता और जनता बहुत लोकप्रिय समझे जाने वाले बंदे को भी हरा देती है जी। यह अलग बात है कि विकासजी की उन योजनाओं के सर्जक वही लोग होते हैं जो उन कार्यों बारे नहीं जानते। वे टीवी पर आने वाले, ज्ञान दिखाऊ विशेषज्ञों की तरह होते हैं जी। यह बात सही है कि वह इंसान विशेष होते हैं जिन्हें ख़ास काम करवाने में महारत हासिल होती है।
कई बार तो कुछ दर्जन वोटों से ही कमबख्त कुर्सी छिन जाती है जी। सत्ता से दूर हुए शरीर को अच्छा नहीं लगता। हजारों वायदे, इरादे, दावे ख़्वाब में आते हैं। सिर्फ चुनाव जीतने के लिए बिना बजट जो सैंकड़ों संस्थान खोल दिए थे, जिन्हें नई सरकार ने रद्द कर दिया, के उद्घाटन पट्ट दिमाग चिढाने लगते हैं। चेहरे पर ढलान पसर जाती है, मेकअप करने को दिल नहीं मानता, वक़्त काटना मुश्किल हो जाता है जी। वही डायलाग सुनाने लगते हैं जो कई साल तक अनसुना करते रहे। नई सरकार क़र्ज़ ले तो कहते हैं जनता पर बोझ डाला जा रहा है जैसे इनकी सरकार द्वारा लिया गया क़र्ज़ तो कांटे रहित गुलाब के फूल थे जी। हर सरकार, क़र्ज़ के विशाल आकार के खूबसूरत फूलों से ही फल पाती है। वैसे दमदार सरकार वही है जो जाति व क्षेत्र संतुलन के हिसाब से मंत्री बनाकर, झंडियों वाली नई कारें खरीदवाए जी। बंदों का चयन दिखाता है कि दोस्ती और दुश्मनी शुद्ध राजनीतिक होती है जी।
सरकार आराम से बनाया जाने वाला, मिटटी का कलात्मक गमला नहीं है। सरकारजी महान शक्ति पुंज होती है, चाहे बदले की कारवाई करे। दल बदल करवा सकती है, घोड़ों का व्यापार कर सकती है। अंधविश्वास बढ़ा सकती है अधर्म को साथ ले सकती है जी। मज़ा तब आता है जब अति आत्मविश्वासी, गर्वीले, प्रभावशाली, विकास मित्र नेता चुनाव हार जाते हैं। हार और समझदारी की चाशनी में लपेटकर कहते हैं, नई सरकार भोली भाली जनता को धोखा दे रही है। सरकार ने चुनाव में, समाज के हर वर्ग पर बोझ बढाने वाली महंगाई समाप्त करने का वायदा किया था। नेताजी अपनी सरकार द्वारा की गई हर बढ़ोतरी भूल गए। वास्तव में नई सरकारजी अभी उस तरह से नहीं कर पा रही जैसे इनकी वाली सरकारजी करती रही जी। इन्होंने सरकार को काम चलाऊ सरकार बताया लेकिन वे भूल गए हर सरकार काम ही तो चलाती है जी।
सत्ता बहुत निर्दयी लेकिन स्वादिष्ट वस्तु होती है, साथ चिपकी रहे तो स्वर्गिक, निर्मल आनंद प्राप्त होता रहता है, मनमानी दिमाग पर सवार रहती है जी। मगर सत्ता चली जाए तो सब कुछ उल्टा पुल्टा महसूस होना शुरू हो जाता है। घुमा फिराकर नेताजी कहते हैं, वोटर अब बहुत स्वार्थी हो गया है जी, हमारा विकास भूल गया और अपना याद रहा। सच है, असफलता तुरंत सिखाना शुरू कर देती है और सफलता भुलाना। दरअसल, इनकी सरकार नहीं रही जी।
- संतोष उत्सुक