By विजयेन्दर शर्मा | Sep 29, 2021
चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के काफ़ी समय से सिर दर्द बने हुए थे । पंजाब के पिछले चुनाव में भी कैप्टन पार्टी तोड़ने की कगार पर पहुँच गए थे लेकिन कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित कर दिया और कैप्टन ने इसे अपना आख़िरी चुनाव घोषित कर दिया । 2017 के चुनाव की रेलियो में भी कैप्टन ने यही बोल कर वोट माँगे थे कि यह उनका आख़िरी चुनाव है ।
मुख्यमंत्री बनने के बाद कैप्टन अपने वादे से मुकर गए और इस चुनाव में फिर से वो मुख्यमंत्री का चेहरा बनना चाह रहे थे । कांग्रेस ने सिद्धू को कैप्टन के पीछे लगा दिया और आख़िरकार कैप्टन को इतना मजबूर कर दिया कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। अब कैप्टन के पास बहुत सीमित विकल्प हैं । भाजपा के पास पंजाब में कुछ नहीं है इसलिए कैप्टन वहाँ जाने की बेवक़ूफ़ी नहीं करेंगे , अकाली और आप में कैप्टन फ़िट नहीं हो पाएँगे । नयी पार्टी बनाने की उनके पास ऊर्जा नहीं है । उम्मीद है कैप्टन 2024 का इंतज़ार करेंगे और अगर कांग्रेस की सरकार केंद्र में आयी तो किसी राज भवन में अपने रिटायरमेंट का समय बिताएँगे । कांग्रेस अपने बुजुर्गों को राज भवन भेजती हैं , उन्हें मार्ग दर्शक मंडल में नहीं डालती ।
सिद्धू से पहले काँटा निकलवाया , फिर सिद्धू को कॉन्फ़िडेन्स में लेकर एक दलित को मुख्यमंत्री बना दिया । सिद्धू खुश थे कि आने वाले चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाएगा लेकिन मुख्यमंत्री के हाव भाव देखकर सिद्धू बोखला गए , रही सही कसर कांग्रेस ने अपने नेताओ से पूरी करवा दी जिन्होंने ज़ोर शोर से दलित मुख्यमंत्री का ढोल पीटना शुरू कर दिया ।
मीडिया में इस पर बहस शुरू हो गयी और इतना तो सिद्धू जैसे जोकर को भी दिखने लगा कि अगर पंजाब में कांग्रेस जीती तो दलित मुख्यमंत्री को हटाकर वो पूरे देश में दलितों का विरोध तो बर्दाश्त नहीं कर पाएगी । अब सिद्धू ने इस्तीफ़ा तो दे दिया लेकिन विकल्प उनके पास भी कोई ख़ास नहीं है । अकाली दल से उनकी कटुता जग ज़ाहिर है , भाजपा में जाने का कोई फ़ायदा नहीं है और आप किसी भी हालत में उन्हें मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाएगी नहीं । उम्मीद है सिद्धू को भी मानना ही पड़ेगा और कांग्रेस में ही बने रहेंगे वर्ना उनका राजनीतिक केरियर भी ख़त्म हो जाएगा ।