भोपाल। मध्य प्रदेश में इन दिनों एक सवाल राजनीति गलियारे में खूब गूंज रहा हूं कि आखिर आदिवासी किसके है? आदिवासियों को साधने में दोनो ही दल लगे हुए है। बीजेपी के बाद अब कांग्रेस आदिवासियों को साधने में जुट गई है। कांग्रेस मुख्यालय में बुधवार को आदिवासी नेताओं की बड़ी बैठक हुई।
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इस बैठक में आदिवासी वोटर्स को साधने रणनीति बनाने पर मंथन हो रहा है। बैठक में पार्टी कार्यकर्तओं को डोर टू डोर भेजने की रणनीति पर भी मंथन होगा। बैठक के महत्व का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि खुद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इसका नेतृत्व कर रहे हैं।
दरअसल कमलनाथ ने आदिवासी समाज के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासी समाज के नए बच्चों को आगे बढ़ाना है। आदिवासी समाज बहुत जल्दी गुमराह हो जाता है। आज जो लोग बैठक है उनमें से कई कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और कुछ आम इंसान है जो अपने समाज को आगे बढ़ाने यहां आए हैं।
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आपको बता दें कि इसकी शुरुआत होती है कि पिछले महीने हुए विधानसभा उपचुनाव से। जोबट विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की सुलोचना रावत कांग्रेस प्रत्यासी को एकतरफा मुकाबले में बड़े अंतर से हराया था। जोबट विधानसभा आदिवासी बेल्ट में आता है। आजादी के बाद से आदिवासियों को कांग्रेस का वोटर्स माना जाता है। लेकिन विधानसभा उपचुनाव में आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस की हार ने पार्टी को सकते में डाल दिया।
वहीं पिछले दिनों भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधानी भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नामकरण बहादुर गोंड रानी कमलापति के नाम पर किया था। राजनीतिक पंडितों ने इसे आदिवासियों को साधने का सबसे बड़ा कदम बताया था। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर अब आदिवासियों के जननायक टंट्या मामा के नाम पर करने का एलान किया है।