बाटला हाउस एनकाउंटर: 12 साल बाद गैलेंटरी अवॉर्ड से सम्मानित हुए मोहन चंद शर्मा

By अभिनय आकाश | Aug 19, 2020

जब बच्चे बीमार हों और हॉस्पिटल में हों तो पिता वहां उनके पास होते हैं, उनकी देख-भाल करते हैं। पर एक पिता ऐसा भी था जो अपने बीमार बेटे को अस्पताल में छोड़ ड्यूटी पर निकल पड़ा। क्योंकि उसे लोगों की रक्षा करनी थी, देश के प्रति अपना दायित्व निभाना था। डेंगू से बीमार बेटा बिस्तर पर पड़ा था, उसे पिता की जरूरत थी, उन्हें वहां होना था। पर वो तो निकल पड़े अपना फर्ज निभाने। हम बात कर रहे हैं 35 आतंकवादियों को मार गिराने और लगभग 80 को गिरफ्तार करने वाले इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की। भारत सरकार ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मोहन चंद शर्मा समेत उनकी पूरी पुलिस टीम को गैलेंट्री अवार्ड से नवाज़ा है। 12 साल पहले बाटला हाउस एनकाउंटर में अपनी जान देश के नाम कुर्बान करने वाले शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को इस गैलेंट्री अवार्ड मिलने के साथ ही उनका नाम देश में सबसे ज्यादा गैलेन्ट्री पदक पाने वाले पुलिस अधिकारी की लिस्‍ट में शुमार हो गया है। आज के इस विश्लेषण में बात मोहन चंद शर्मा की बहादुरी की करेंगे, उस कहानी की करेंगे जिसकी वजह से मोहन चंद शर्मा समेत एनकाउंटर करने वाली पूरी पुलिस टीम को गैलेंट्री अवार्ड से नवाज़ा गया है। साथ ही बताएंगे देश के सबसे विवादित एनकाउंटर की कहानी जिस पर हमारे देश के नेताओं ने सियासी आंसुओं की गंगा-जमुना बहाई थी।

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आज से ठीक 12 साल पहले 19 सितंबर 2008 को दिल्ली में बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था जिसमें इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े दो आतंकी मारे गए थे और दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे। बाटला हाउस एनकाउंटर पर उस वक्त देश में खूब राजनीति और बहस हुई थी मुस्लिम वोटों की फसल काटने के लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं ने आतंकियों के समर्थन में खूब बयान बाजी भी की थी तब कांग्रेस के ही नेताओं ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठा कर देश को गुमराह किया था। या फिर यूं कहे कि वोट बैंक की खातिर शहीदों के सम्मान का एनकाउंटर कर दिया था। 

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  • 13 मई 2008 पिंक सिटी के नाम से मशहूर राजस्थान की राजधानी जयपुर। शहर में हुए सिलसिलेवार सात बम धमाकों में 68 लोग मारे गए और अनेक घायल हो गए। विस्फोट 12 मिनट की अवधि के भीतर घनी आबादी वाले स्थलों पर किए गए।
  • 25 जुलाई, 2008 को बेंगलुरू में शृंखलाबद्ध सात बम विस्फोट किए गए। ज़्यादातर विस्फोट भीड़ भरे इलाक़ों में हुए।
  • 26 जुलाई 2008 गुजरात के अहमदाबाद में 70 मिनट में एक के बाद एक 21 बम ब्लास्ट हुए थे। इस आतंकी हमले में 56 लोगो की जान चली गई थी।  

13 सितंबर 2008 की शाम दिल्ली समेत पूरे देश में दीपावली की तैयारियां चल रही थीं। बाजारों में खरीदारों की भारी भीड़ थी। बाजार रंग-बिरंगी लाइटों और झालरों से सजे हुए थे। और अचानक खून के छीटों ने पूरी चमक-धमक को मातम में बदल दिया था। दिल्ली बम धमाकों से दहल उठी थी। एक के बाद एक दिल्ली की अलग-अलग मार्केट में हुए पांच सीरियल बम धमाकों ने राजधानी समेत पूरे देश को दहला दिया था। दो बम कनाट प्लेस में फटे थे। दो ग्रेटर कैलाश के एम ब्लाक में और एक भीड़भाड़ से भरी रहने वाली करोल बाग के गफ्फार मार्केट में। इसके अलावा तीन बम और मिले थे जो वक्त रहते डिफ्यूज कर दिए गए और फटे नहीं। इन पांचों धमाके में करीब तीस लोग मारे गए थे।

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इन सभी बम धमाकों का तरीका एक जैसा था। जांच के बाद सामने आया कि इसमें इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ है। राजधानी में हुए इन सीरियल बम धमाकों से पहले दिल्ली पुलिस को एक ई मेल भेजकर इसकी सूचना भी दी गई थी। ईमेल के जरिए दिल्ली पुलिस को चुनौती दी गई थी कि अगर वह इन धमाकों को रोक सकते हैं तो रोक लें।

इस ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि बाटला हाउस के एल-18 के चार मंजिला इमारत की चौथी मंजिल के दो कमरों में छह लड़के रहते हैं। वे छह के छह आजमगढ़ के हैं और जामिया में पढ़ने के लिए हैं। कोई जामिया में पढ़ाई कर चुका है, कोई इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स कर रहा है। कोई कंप्यूटर कोर्स कर रहा है। सभी की उम्र 18 से 24 साल के बीच की। इस सूचना के बाद और फोन नंबर के लोकेशन कंफर्म होने के बाद स्पेशल सेल बिल्डिंग को खंगालने के इरादे से जाती है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के नेतृत्व में सात लोग जिसमें सब इंस्पेक्टर, हेड काउंसटेबल और काउंसटेबल सुबह जामिया नगर पहुंचते हैं। इस टीम के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा डेंगू से पीड़ित अपने बेटे को नर्सिंग होम में छोड़ कर बटला हाउस के लिए रवाना हुए थे। वह अब्बासी चौक के नजदीक अपनी टीम से मिले। जामिया का ओखला का एरिया बहुत कंजेस्टेड माना जाता है। जहां गाड़िया नहीं सिर्फ टू-व्हीलर जा सकती है और आपरेशन करने के लिहाजे से बेहद कठिन जगह। सभी पुलिस वाले सिविल कपड़ों में वहां पहुंचते हैं।

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सुबह 10:55 बजे दिल्ली पुलिस के एसआई धर्मेंद्र कुमार कोट-पैंट और टाई लगाकर फोन कंपनी के सेल्समैन का लुक बनाए हुए  फ्लैट के गेट खटखटाने लगे। अंदर सन्नाटा छा गया। एसआई धर्मेंद्र कुमार को वो लड़के मना कर देते हैं और इतनी देर में वो वहां का मुआयना कर लेते हैं और उन्हें चार लड़के कमरे में दिखाई देते हैं। जिसके बाद दरवाजा बंद हो जाता है। बाकी पुलिस वाले नीचे इंतजार कर रहे थे। इसी बीच इंस्पेक्टर शर्मा सीढ़ियां चढ़ने लगे। दो पुलिसकर्मी नीचे खड़े रहे। बुलेटपूफ्र जैकेट इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा या उनकी टीम में से किसी ने नहीं पहनी थी। जिसके पीछे की वजह बाद में पुलिस ने बताई थी कि गर्मी थी और साथ ही स्पेशल सेल वहां तफ्तीश के इरादे से गई थी। कहा जाता है कि इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के दिमाग में ये था कि पांच-छह साधारण लड़के यहां पर रह रहे हैं और इनसे चलकर कड़ाई से पूछताछ करेंगे और पता करेंगे। जो कि इस आपरेशन की बड़ी गलती मानी जा सकती है। फोन कंपनी के सेल्समैन बनकर गए एसआई ने जब इशारा किया कि ये लड़के हैं तो सबसे आगे नेतृत्व करते हुए इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा उनके पीछ हेड काउंसटेबल बलविंदर और बाकी के लोग पीछ थे। ये एल-18 के चौथी मंजिल पर पहुंचकर दरवाजे को खटखटाते हैं लेकिन इस बार दरवाजा नहीं खुलता बल्कि सीधे अंदर से फायरिंग की आवाज आती है। गोली जब चलती है तो इधर से क्रास फायरिंग होती है। गोली की आवाज सुनकर अलग-अलग मंजिल की सीढियों पर खड़े पुलिसवाले चौंक उठे। अचानक चली गोलियों में से दो गोली इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को लगती है। एक उनके कंधे पर और एक पेट के पास। हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी। गोली लगने के बाद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा गिर जाते हैं।

फिर एसआई धर्मेद्र और एक लोकल उन्हें कंधे पर उठाकर पास के ही होली फैमली हास्पिटल ले जाते हैं। उधर फायरिंग जारी थी। करीब आधे घंटे तक हो रही फायरिंग से आस-पड़ोस के लोग चौंक जाते हैं। नीचे मौजूद पुलिसवालें चीखकर सभी को घर से बाहर नहीं निकलने का निर्देष देते हैं। करीब आधे घंटे की गोलीबारी के बाद फ्लैट के रूम से आतिफ अमीन और साजिद की लाशें मिलती हैं। मोहम्मद सैफ औऱ जिशान नामक दो लोगों को पकड़ा जाता है। कहा गया कि फायरिंग सुनकर लोग सीढ़ियों से नीचे भागने लगे इसका फायदा उठाकर कुछ लोग भाग निकले। इधर मुठभेड़ में घायल इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को नजदीकी होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां आठ घंटे इलाज के बाद उनकी मौत हो गई। उनकी मौत अधिक खून बहने के कारण हुई। पुलिस ने मोहन चंद्र शर्मा की मौत के लिए शहज़ाद अहमद को ज़िम्मेदार ठहराया। इलाके में अफरा-तफरी मच जाती है और भारी मात्रा में पुलिस फोर्स पहुंचती है। सके बाद ओवेस मलिक नामक एक शख्स ने 100 नंबर पर फोन करके फायरिंग की खबर दी। पीसीआर से जामिया नगर पुलिस चौकी को इस एनकाउंटर की खबर मिली। मेसेज फ्लैश कर दिया गया। फिर पुलिस की जांच शुरू हुई। उस फ्लैट को सील कर दिया गया। मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए जांच की मांग की। इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को 26 जनवरी, 2009 को मरणोपरांत अशोक-चक्र प्रदान किया गया। 

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21 मई 2009

दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से पुलिस के दावों की जांच कर दो महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा।

22 जुलाई 2009

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई।

26 अगस्त 2009

दिल्ली हाईकोर्ट ने एनएचआरसी की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए न्यायिक जांच से इनकार किया।

30 अक्टूबर 2009

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी न्यायिक जांच से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच से पुलिस का मनोबल प्रभावित होगा।

19 सितंबर 2010

बटला हाउस एनकाउंटर के दो साल पूरे होने पर दिल्ली की जामा मस्जिद के पास मोटर साइकिल सवारों ने विदेशी पर्यटकों पर गोलीबारी की। इसमें दो ताइवानी नागरिक घायल हुए।

6 फरवरी 2010

पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मौत के सिलसिले में पुलिस ने शहज़ाद अहमद को गिरफ़्तार किया।

20 जुलाई 2013

अदालत ने शहज़ाद अहमद के मामले में सुनवाई पूरी करने के बाद फ़ैसला सुरक्षित किया।

25 जुलाई 2013

अदालत ने शहजाद अहमद को दोषी क़रार दिया।

30 जुलाई 2013

अदालत ने शहजाद अहमद को उम्रकैद की सजा दी

24 मई, 2016

आतंकी संगठन आईएसआईएस की ओर से जारी एक वीडियो में दो संदिग्‍ध आतंकी आतंकी अबु राशिद और मोहम्‍मद साजिद नजर आए। राशिद बटला हाऊस एनकाउंटर के बाद से फरार है, जबकि साजिद अहमदाबाद और जयपुर ब्‍लास्‍ट में शामिल था। दोनों साल 2008 के बाटला हाऊस कांड के बाद से फरार चल रहे हैं। 

10 बार वीरता पदक प्राप्त करने वाले मोहन चंद शर्मा

साल 2005 में अयोध्या राम जन्मभूमि वाले लोकेशन पर आतंकी संगठ जैश -ए -मोहम्मद के कुछ आतंकियों ने फिदायीन हमले को अंजाम दिया था। उन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने एक विशेष टीम का गठन किया। इस फिदाइन हमले को अंजाम देने वाले और साजिश रचने में पाकिस्तानी आतंकी आसिफ उर्फ कारी उर्फ सैफुल्ला भी शामिल था। इस विशेष ऑपरेशन में मोहन चंद शर्मा के साथ इंस्पेक्टर कैलाश बिष्ट , इंस्पेक्टर धर्मेंद्र कुमार , इंस्पेक्टर देवेन्द्र सिंह , एएसआई निसार अहमद शेख और एएसआई प्रवेश राठी ने बहुत ही हिम्मत और समझदारी से सफलतापूर्वक ऑपरेशन को अंजाम दिया था। स्पेशल सेल की टीम ने इस एनकाउंटर के बाद आतंकियों के पास से 63 लाख रुपये की नकदी , 5 किलोग्राग RDX, 12 हैंड ग्रेनेड , 10 इलेक्टॉनिक डेटोनेटर , 8 मोबाइल फोन, कई चाईनीज हथियार, एक सैटेलाइट फोन, जम्मू-कश्मीर के नाम से फर्जी पहचान पत्र और तीन गुप्त मैट्रिक्‍स कोड भी बरामद हुए थे। जो जैश के कोड वर्ड थे। इस मामले में पिछले कई सालों से मामला कोर्ट में लंबित पड़ा हुआ था। करीब 12 साल चली सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने  सैफुल्ला सहित अन्य आरोपियों को इलाहाबाद कोर्ट ने पिछले साल 18 जून 2019 को दोषी माना। इसके बाद स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद कुशवाहा ने इस मामले को पिछले साल पुरस्कार वाली श्रेणी के लिए पुलिस मुख्यालय के जरिये गृहमंत्रालय को भेजा था. जहां पर इसे स्वीकार कर लिया गया। मोहन चंद शर्मा के नाम अभी तक 9 वीरता पुरस्कार दर्ज थे। इस पदक के साथ ही उनकी संख्या 10 हो गई। इसके साथ ही मोहन चंद शर्मा दिल्ली पुलिस के इकलौते ऐसे पुलिस अधिकारी भी हैं। जिनको अशोक चक्र से नवाजा गया था। - अभिनय आकाश

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