By Anoop Prajapati | Dec 14, 2024
दिल्ली कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी की फायर ब्रांड नेता अलका लांबा लंबे समय से एक सच्चे सैनिक की तरह पार्टी की सेवा कर रही हैं। उन्होंने 26 दिसंबर 2014 को आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी थी। फरवरी 2015 में लांबा चांदनी चौक से दिल्ली विधानसभा के लिए चुनी गईं। उन्होंने पार्टी के भीतर उनके प्रति अनादर का हवाला देते हुए सितंबर 2019 में आप छोड़ दी। 6 सितंबर 2019 को वह औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी में लौट आईं। हालांकि, दागी दलबदलुओं को कड़ी चेतावनी देने के एक इशारे पर पार्टी परिवर्तन के नियमों का उल्लंघन करने के लिए उन्हें दिल्ली विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
अलका लांबा ने अपना करियर एक छात्र नेता के रूप में शुरू किया और वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पूर्व महासचिव और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की पूर्व सचिव हैं। वह एनजीओ गो इंडिया फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं। उन्हें दिल्ली पार्टी के मजबूत करने के इरादे से 5 जनवरी 2024 को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। अलका लांबा ने अपना राजनीतिक जीवन 1994 में शुरू किया था। 1994 में वह डीयू से बीएससी का कोर्स कर रही थीं। तभी उन्हें एनएसयूआइ की ओर से स्टेट गर्ल कन्वीनर का पद दिया गया और देखते ही देखते अलका एनएसयूआइ की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं।
जानिए कौन हैं अलका लांबा?
लांबा का जन्म 21 सितंबर 1975 को हुआ। अलका लांबा 1994 में कांग्रेस के छात्र संगठन NSUI से जुड़ीं। वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीएससी का करने के दौरान ही NSUI की स्टेट गर्ल कन्वीनर बनी थीं। साल 1997 में अलका लांबा NSUI की राष्टीय अध्यक्ष बनीं। 2002 में अलका को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। 2003 में उन्होंने भाजपा नेता मदन लाल खुराना के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सकीं।
पार्टी छोड़कर की थी वापसी
साल 2014 में अलका लांबा ने कांग्रेस छोड़ दी और वो आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं। 2015 के विधानसभा चुनाव में वो आप के टिकट से चांदनी चौक से विधायक बनीं। इस सीट से वो पहली महिला विधायक बनीं। 2019 में आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देकर वो कांग्रेस में आईं। 2020 में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर चांदनी चौक से चुनाव लड़ा, लेकिन वो हार गईं।
पति से 2003 में हुई थी अलग
हालांकि, आम आदमी पार्टी से तनातनी के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। अलका लांबा की शादी लोकेश कपूर से हुई थी। मगर कुछ समय बाद ही दोनों अलग हो गए। उनके पति लोकेश ने उन पर 2003 में आरोप लगाया था कि अलका ने लोकेश का सुभाष नगर वाला मकान अवैध तरीके से हथिया कर अपना राजनीतिक दफ्तर बना लिया है
आप नेता ने रोपड़ थाने में दर्ज कराया था मामला
रोपड़ थाना सदर में आम आदमी पार्टी नेता ने केस दर्ज कराया था कि वह समर्थकों के साथ लोगों की शिकायतें सुनने जा रहे थे। तब कुछ नकाबपोश लोगों ने घेरकर उन्हें खालिस्तानी कहा। आप नेता का दावा है कि यह सब तब शुरू हुआ, जब कुमार विश्वास और अलका लांबा ने केजरीवाल के अलगाववादियों से संबंध होने के आरोप लगाए।
विवादों से रहा नाता
अगस्त 2015 में चांदनी चौक निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने जाने के कुछ महीनों बाद लांबा पर उनके ही निर्वाचन क्षेत्र में हुई एक घटना में बर्बरता और संपत्ति को नष्ट करने का आरोप लगाया गया था। 10 अगस्त 2015 को लाठी, डंडे और क्रिकेट के बल्ले से लैस भीड़ ने पुरानी दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में स्थित एक शराब की दुकान पर हमला किया और बुरी तरह तोड़फोड़ की। सीसीटीवी फुटेज में दर्ज लांबा को हमले का नेतृत्व करते और अपने समर्थकों के साथ दुकान में तोड़फोड़ करते हुए दिखाया गया है। फुटेज में उन्हें सीधे दुकान के काउंटर तक पहुंचते और हिंसक रूप से धक्का देते, काउंटर पर रखे सामान को गिराते और फेंकते हुए दिखाया गया है। इसके बाद उनके समर्थकों ने भी दुकान में तोड़फोड़ की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दुकानदार भाजपा समर्थक था
16 जुलाई 2012 को राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रतिनिधित्व करते हुए 2012 के गुवाहाटी छेड़छाड़ मामले की जाँच दल के सदस्यों में से एक के रूप में लांबा ने गुवाहाटी छेड़छाड़ मामले की पीड़िता से मुलाकात की। एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस आयोजित की और पीड़िता की पहचान उजागर की। 'सूचना' ने स्थानीय मीडिया घरानों को पीड़िता की असली पहचान का पता लगाने के लिए ओवरटाइम काम करने पर मजबूर कर दिया। कुछ टीवी चैनलों ने पीड़िता के पड़ोसियों का साक्षात्कार लिया ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि लड़की का नाम वह नहीं था जो उससे छेड़छाड़ और लगभग निर्वस्त्र करने की घटना को रिकॉर्ड करने वाले चैनल द्वारा जबरन कहा गया था। लांबा के ऐसे कृत्यों की व्यापक रूप से आलोचना की गई। इसके बाद उन्हें एनसीडब्ल्यू की तथ्य-खोज समिति से हटा दिया गया।